Monday, March 3, 2014

युगों को परिभाषित करने केलिए राहू केतु आवश्यक खगोल बिंदु

कृप्या संस्कृत विद्वानों से इस विषय मैं प्रश्न अवश्य करें , क्यूँकी स्पष्ट संकेत मिल रहे हैं कि पिछले ६५ वर्षो मैं संस्कृत का दुरूपयोग हिन्दू समाज को नीचे ले जाने के लिए करा गया है |
कष्ट इस बात का है कि हर विशविध्यालय मैं संस्कृत विभाग है, लकिन हिन्दू समाज के पास जो विश्व इतिहास धरोहर के रूप मैं है, उसपर कोइ शोघ नहीं हुआ |
शोघ गंभीरता से मात्र हिन्दू युवा विध्यार्थी ही करेगा, क्यूँकी उसके संस्कार इन सब विषयों से जुड़े हुए हैं; 

परन्तु उसको प्रोहित्साहित करने की जगह उसको हतोत्साहित कर जा रहा है, संस्कृत विद्वानों द्वारा; ऐसा क्यूँ ? 

जितने भी पाठक, मित्र संस्कृत जानते हैं, या उन व्यक्तियों से सम्बन्ध है जो संस्कृत मैं उच्च शिक्षा ग्रहण करे हुए है ,

उनसे निवेदन है की इस नीचे दिए हुए प्रयास मैं आवश्यक योगदान दें :

महाभारत, रामायण और पुराण मैं इतिहास है; 

इनकी सहायता से निम्लिखित, बिना अलोकिक और चमत्कारिक शक्ति के निर्माण करना अति आवश्यकता है, और बहुत आसान भी है:

1. युगों को खुगोलिक और भौतिक बिन्दुओं के अनुसार परिभाषित करना ;यह सत्य है की इसमें परेशानी आयेंगी, क्यूँकी कुछ पुस्तकों आसानी से नहीं मिलेंगी, लकिन प्रयास तो शुरू हो !

2. विश्व का इतिहास, जो की पुराणों मैं है, उसे बिना अलोकिक और चमत्कारिक शक्ति के निर्माण और प्रस्तुति,

3. युगों का निर्माण; इतिहास की प्रष्टभूमि मैं, दोनों खुगोलिय और भूगोलिक !
जब इतना कर देंगे तो युवा हिन्दू छात्र शोघ आसानी से कर पायेगा |

कुछ प्रयास इस ब्लॉग ने कर दिए हैं , जिसका प्रयोग कोइ भी कर सकता है |
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सबसे पहले राहू केतु की परिभाषा :

राहू और केतु, चन्द्र के कक्षीय नोड्स हैं,
चन्द्र जब अपनी धुरी सूर्य के संधर्भ में बदलता है, 
तो जो बिंदु पार करके उत्तर दिशा मैं जाता है, उसे राहू कहते हैं,
और ठीक उसके विपरीत, १८० डिग्री दूर केतु, जब वोह दक्षिण दिशा मैं जाता है;

स्वाभाविक है कि तीन आयामी सेटअप मैं, जिसके अंदर सौर्यमण्डल मैं सब गृह घूम रहे हैं, तो गणित के छात्रों के लिए यह समझना आसान है कि सूर्य ग्रहण और चन्द्र ग्रहण जबही संभव है जब सूर्य, राहू या केतु के नज़दीक आ जाएगा, 

और यही अमृत बाटते समय राहू के वध की कहानी बताने का प्रयास करती है, जिसका प्रयोग इस महत्वपूर्ण विज्ञानिक बिंदु को समझाने के लिए होना था, जो नहीं हुआ |
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"तीन आयामी सेटअप मैं छात्रों के लिए यह समझना आसान हैकि सूर्यग्रहण और चन्द्रग्रहण जबही संभव है जब सूर्य राहू या केतु के नज़दीक आ जाएगा, और यही अमृत बाटते समय राहू के वध की कहानी बताने का प्रयास करती है"

क्या यह युगों को परिभाषित करने के लिए खोगोल बिंदु हैं?

राहू और केतु की मृत्य , अर्थात चन्द्र का सूर्य के सन्दर्भ मैं धुरी न बदलने पर समुन्द्र स्थिर हो जाएगा, 

और कलयुग और सतयुग के बीच का अंतराल, जिसमें पृथ्वी जलमग्न रहती है !

जो की लाखो वर्ष का बताया जाता है, और जिसमें पृथ्वी फिर से उत्साहित होगी, आरम्भ हो जाएगा; 

इतना संकेत तो पुरानो से अवश्य मिल रहा है, क्यूँकी राहू केतु का जन्म, सतयुग मैं समुन्द्र मंथन के साथ ही जताया गया है,

अर्थात राहू केतु युगों को परिभाषित करने मैं खुगोल बिंदु है...

यह भी स्पष्ट संकेत है, जिसपर शोघ आवश्यक है :

कि महाभारत युद्ध मैं चक्रव्यूह को तोड़ते समय वीर अभिमन्यु ने कौरवो के चन्द्रमा पर सैनिक ठिकानों पर गंभीर प्रहार करे, जिसमें परमाणु शास्त्रों का भी उपयोग हुआ;

जिसमें राहू केतु की गति मैं बदलाव आ गया, और सूर्य ग्रहण एक मॉस पहले हो गया, जिससे जयद्रथ की मृत्यू मैं सहायता मिली |

इस संकेत से (राहू केतु की गति मैं बदलाव आ गया, और सूर्य ग्रहण एक मॉस पहले हो गया), दो विषय पर शोघ आवश्यक है:
१) क्या यह बिंदु द्वापर युग का अंत और कलयुग का आरम्भ दिखा रहा है ?
२) क्या यह बिंदु दुबारा कामदेव को शरीर प्रदान करता है ?
ध्यान रहे कि कामदेव बिना शरीर के सतयुग आरम्भ होने से पहले हो जाते हैं, जब शिव जी उनको भस्म कर देते हैं, हालाकि यह खगोल बिंदु कौन सा है, इसपर आवश्यक शोघ नहीं हुआ है |

इतिहास एक खगोल बिंदु का उल्लेख करता है कि श्री कृष्ण के सुपुत्र प्रद्युम्न के जन्म पश्च्यात कामदेव को दुबारा शरीर मिल जाएगा | सिर्फ अनुमान है, बिना शोघ के और कहा भी क्या जा सकता है, कि यह वोह खगोल बिंदु हो सकता है |

कष्ट इस बात का है कि हर विशविध्यालय मैं संस्कृत विभाग है, लकिन हिन्दू समाज के पास जो विश्व इतिहास धरोहर के रूप मैं है, उसपर कोइ शोघ नहीं हुआ |

शोघ गंभीरता से मात्र हिन्दू युवा विध्यार्थी ही करेगा, क्यूँकी उसके संस्कार इन सब विषयों से जुड़े हुए हैं; 

परन्तु उसको प्रोहित्साहित करने की जगह उसको हतोत्साहित कर जा रहा है, संस्कृत विद्वानों द्वारा; ऐसा क्यूँ ? 

जितने भी पाठक, मित्र संस्कृत जानते हैं, या उन व्यक्तियों से सम्बन्ध है जो संस्कृत मैं उच्च शिक्षा ग्रहण करे हुए है ,

उनसे निवेदन है की इस नीचे दिए हुए प्रयास मैं आवश्यक योगदान दें :

महाभारत, रामायण और पुराण मैं इतिहास है; 

इनकी सहायता से निम्लिखित, बिना अलोकिक और चमत्कारिक शक्ति के निर्माण करना अति आवश्यकता है, और बहुत आसान भी है:
1. युगों को खुगोलिक और भौतिक बिन्दुओं के अनुसार परिभाषित करना ;यह सत्य है की इसमें परेशानी आयेंगी, क्यूँकी कुछ पुस्तकों आसानी से नहीं मिलेंगी, लकिन प्रयास तो शुरू हो !
2. विश्व का इतिहास, जो की पुराणों मैं है, उसे बिना अलोकिक और चमत्कारिक शक्ति के निर्माण और प्रस्तुति,
3. युगों का निर्माण; इतिहास की प्रष्टभूमि मैं, और पुराणों के संकेतो के अनुसार;
दोनों खुगोलिय और भूगोलिक !
जब इतना कर देंगे तो युवा हिन्दू छात्र शोघ आसानी से कर पायेगा |

कुछ प्रयास इस ब्लॉग ने कर दिए हैं , जिसका प्रयोग कोइ भी कर सकता है |

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