Tuesday, March 18, 2014

संस्कृत भाषा से समाज को शोषित करने के प्रमाण

नोट: कृप्या इस पोस्ट को पढ़ें, और जितने भी शिक्षित संस्कृत विद्वानों को आप जानते हैं, उनसे साथ यह पोस्ट शेयर अवश्य करें| हर बिंदु पर चर्चा का स्वागत है !
इससे पहले दो पोस्ट इस विषय को लेकर आ चुकी हैं कि संस्कृत भाषा का दुरूपयोग समाज के शोषण के लिए कैसे पिछले ५००० वर्षो से हो रहा है | 

पोस्ट का नाम और लिंक नीचे दी जा रही हैं , अब और गंभीर विषय पर आते हैं जहाँ जानबूज कर सिर्फ समाज का शोषण हो सके, इसलिए संस्कृत विद्वान , संस्कृत पुस्तकों मैं से गलत सूचना समाज तक पंहुचा रहे हैं, ताकी हिन्दू समाज कभी पनप ना पाय, वोह गुलाम ही रहे | और इसमें पूरा साथ दे रहे हैं संस्कृत भाषा और धार्मिक शिक्षा प्राप्त करे हुए, डिग्री प्राप्त करे हुए, शास्त्री, आचार्य आदि | दो पोस्ट इस विषय पर, जैसा उपर उल्लेख करा है आ चुकी हैं, और इसपर विस्तृत चर्चा बहुत आवश्यक है | 
लकिन पहले वे दो पोस्ट जो इस विषय पर अब तक आ चुकी हैं , उनके नाम:
  1. संस्कृत भाषा का प्रयोग सनातन धार्मिक कार्यकर्मों मैं बंद होजाना चाहिए
  2. संस्कृत भाषाका दुरूपयोग हिन्दू समाज को शोषित रखने केलिए विद्वान कररहे हैं
अब देखीये, और इन विद्वानों से प्रमाण माँगीए की यह कैसे ठगी और शोषण की नियत से गलत सूचना हिन्दू समाज तक पंहुचा रहे हैं | ध्यान रहे संस्कृत का श्लोक कोइ प्रमाण या मानक नहीं होता | फिर से अच्छी तरह समझ लीजिये: संस्कृत का श्लोक कोइ प्रमाण या मानक नहीं होता |

दूसरी बात जो ध्यान रखने की है कि;
पुराण मैं अलग अलग समय का इतिहास है, और इतिहास हमेशा उस विशिस्ट अवधि के लिए तथ्य की प्रस्तुति है, जो की उस समय की मांग है(HISTORY IS ALWAYS FACTS PLUS PRESENTATION FOR THAT PERIOD)| इसलिए निर्माण विवेकपूर्ण होना चाहिए |
1. कलयुग सबसे खराब युग है | 

आपको इस विषय पर श्लोक भी सुना दिया जाएगा कि कैसे कलयुग सबसे खराब युग है, और यह भी आपको समझा दिया जाएगा कि आपके उपर सारी मुसीबत इसी कारण हैं | मैं मानता हूँ कि आजादी से पहले समाज पर घोर संकट के बादल थे, और भावनात्मक तरीके से समझाने के अतिरिक्त कोइ विकल्प नहीं था, तब यह बात परम ज्ञानी संतलोग भी कह देते थे कि भाई यह तो कलयुग है, कष्ट तो झेलने पड़ेंगे, और हम एक नादाँन छोटे बालक की तरह से यह भी भूल जाते थे कि जो कष्ट दे रहा है, वोह तो सब सुख भोग रहा है, और हम गुलामो की जिन्दगी जी रहे हैं | तबभी गुलामी के समय यह भावनात्मक तरीका समाज को समझाने का समझ मैं आता है, लकिन आजादी के ६५ वर्ष बाद क्यूँ?
सत्य तो यह है कि सनातन धर्म के मापदंडो और सूचना के अनुसार, कलयुग सबसे श्रेष्ट युग है |
2. सतयुग सबसे अच्छा युग है | 

यह ‘सतयुग सबसे अच्छा युग है’ पूरी तरह से गलत और झूट है | सनातन धर्म के सारे मापदंड और पुराणों मैं जितनी भी सूचना है, उससे, आज के सूचना युग मैं कोइ भी सतयुग का निर्माण कर सकता है, और तब आपको पता पड़ जाएगा कि सतयुग मानव के लिए सबसे कष्टदायक युग था | तब आपके मन से यही निकलेगा कि इश्वर कभी भी किसी आत्मा को सतयुग मैं मानव शरीर न दे|
यह बिलकुल शोषण के उद्देश से मक्कारी से भरा हुआ झूठा सन्देश आपको देता है कि आप तो बदनसीब हो गलत युग मैं पैदा हुए हो इसलिए कष्ट तो झेलने पड़ेंगे | सतयुग को श्रेष्ट युग बता कर धर्मगुरु और संस्कृत के विद्वान अपनी नैतिक जिम्मेदारी से पिछले ५००० वर्षो से पडला झाड़ते रहे हैं |
3. सनातन धर्म सर्जन मैं विश्वास रखता है | यह पूरी तरह से गलत है

ईसाई, इस्लाम दोनों धर्म की आस्था सर्जन मैं है, और चुकी इश्वर की बनाई होई दुनिया/श्रृष्टि को इश्वर की इच्छा के अनुकूल ही चलना चाहीये, इसलिए यह दोनों धर्म/मजहब नियम प्रधान हैं, और इनमें नियमो को बदलने मैं बहुत कष्ट होते हैं| 

जिस तरह से चाणक्य ने २३०० वर्ष पूर्व भारत मैं राष्ट्रत्रियता की बात करी और कुछ विरोध के बाद सफलता भी मिली, उसी तरह से फ्रांस मैं १५वी सदी मैं जोन आर्क (Joan of Arc) नाम की एक किसान की लडकी ने राष्ट्रत्रियता की बात करी, और ईस्सईयो के गिरजाघर के बड़े पादरियों ने उसे WITCH(चुडैल/डाइन) घोषित करके जिन्दा जला दिया ; पढ़ें Joan of Arc
सत्य तो यह है कि हर उस व्यक्ति की तरह से, जो इश्वर पर आस्था रखता है, सनातन धर्म भी इश्वर पर पूर्ण आस्था रखता  है, और यहाँ तक सूचना देता है कि ब्रह्माण्ड के फलने फूलने और विकास के लिए उर्जा शिवलिंग से मिल रही है |
लकिन श्रृष्टि का चक्रिये विकास पूरी तरह से क्रमागत उन्नति(EVOLUTION) पर आधारित है, और स्वम सनातन धर्म यह मानता है कि अगर इश्वर को भी श्रृष्टि के इस चक्रिये विकास को कुछ दिशा देनी हो, तो उसे ‘अवतार’ लेना पड़ता है, और पृथ्वी पर आ कर दिशा देनी होती है | 

सनातन धर्म मैं स्वर्ग मैं बैठ कर इश्वर व्यक्तिगत समस्याओं का तो समाधान कर देता है, लकिन समाज और श्रृष्टि से सम्बंधित समस्याओं के लिए ‘अवतार’ लेना पड़ता है | क्रमागत उन्नति(EVOLUTION) पर मात्र सनातन धर्म ही विस्वास करता है, और बाकी सब धर्म/मजहब सर्जन(CREATION) मैं विश्वास करते हैं; और यह भी एक मुख्य कारण है कि सनातन धर्म नियम प्रधान धर्म नहीं है | पढ़ें: पृथ्वी का विकास.. सृजन या क्रमागत उन्नति

अभी तो बहुत सारे विषय हैं कि किस तरह से शोषण की नियत से बहुत सारे विषय पर गलत सूचना और कही कहीं तो झूट भी जैसे कि ‘सतयुग सबसे अच्छा युग है’ बोला जाता रहा है, और यह मानना आसान नहीं है कि बिना किसी कारण यह हो रहा है ,

और हिन्दू समाज धीरे धीरे दुबारा गुलामी की तरफ बढ़ रहा है |
जय महाकाली; जय महाकाल !!

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