Friday, July 5, 2013

महाभारत युद्ध के व्यापक प्रमाणों को महाभारत से अलग करने का षड्यंत्र

महाभारत पूर्व ज़बरदस्त विकास था|युद्ध मैं भीषण विनाश हुआ, और अंत मैं अश्वथामा ने ‘उत्तरा’ अथार्त जो बच गए थे, उनके लिए एक ऐसा रसायन अस्त्र छोड़ा, जो शेष बची होई महिलाओ के गर्भ का भी नाश कर दे
यह ब्लोग बार बार यह दावा कर रहा है, की महाभारत प्रथम विश्वयुद्ध था, ओर इतना भीषण था, की उसके उपरान्त सभ्यताएं नष्ट होगयी| विज्ञान महाभारत काल मैं इतना विकसित था, की महाभारत युद्ध का कारण कह लीजिये या धर्म, जिसको लेकर पूरे विश्व मैं यह युद्ध लड़ा गया, वह था, की भविष्य मैं मानव का उत्पादन होगा, जेनेटिक इंजीनियरिंग और मानव क्लोनिंग के प्रयोग से, या इश्वर के श्रिष्टी ने नियम अनुसार एक शिशु, माँ के गर्भ से जन्म लेगा| इस विश्वयुद्ध मैं हर तरह के अस्त्र शास्त्रों का प्रयोग हुआ, अन्तरिक्ष यान से लेकर, रसायन और अणु तकनीक का प्रयोग हुआ, और उसके प्रमाण पूरे विश्व मैं उपलब्ध हैं| 

सिर्फ यह ब्लॉग ही नहीं, अनेक हिन्दू बुद्धीजीवी, लम्बे समय से इस बात का दावा कर रहे हैं, और मांग कर रहे हैं की महाभारत को प्रथम विश्व युद्ध घोषित करा जाय|

अब समस्या यह आ रही है की वर्तमान विज्ञान और विकास का नेत्रत्व इसाई देश और समाज कर रहा है, और वे यह बिलकुल नहीं चाहते की विश्वभर मैं जो प्रमाण मिलें हैं उनको महाभारत युद्ध से जोड़ा जाय| यदी वोह प्रमाण महाभारत से नहीं जुड़ते तो यह साबित वे आसानी से कर लेंगे की महाभारत युद्ध कुरुशेत्र नामक स्थान मैं ही सीमित था, और मात्र १८ दिन का छोटा सा युद्ध था, जिसे बढ़ा-चढ़ा कर बताया जा रहा है| पूरे विश्व और भावी हिन्दू समाज को भी यह बात स्वीकार करनी पड़ेगी, अगर हिन्दू समाज स्वंम इस युद्ध के अप्रत्यक्ष विरोधी प्रमाणों को स्वीकृती दे देता है|

यह पोस्ट मूल पोस्ट ‘महाभारत प्रथम विश्व युद्ध, जिसे उपलब्ध प्रमाण सत्यापित करते हैं को लेकर पाठको के जो प्रश्न आये हैं, उनका उत्तर देने का प्रयास है| कृप्या मूल पोस्ट को पढ़ कर ही यह पोस्ट पढ़ें, तभी आपको पूरी बाते समझ मैं आयेंगी|

इसी संधर्भ मैं पता नहीं कहाँ से महाराज युधिष्टिर की वंशावली अब नेट पर घूम रही है, अनेक सोशल साइट्स जैसे की फेसबुक है, उसपर यह बताया जा रहा है की ‘देखो, अब कोइ महाभारत काल के इतिहास को झूट नहीं बता सकता, क्यूँकी युधिष्टिर के वंश ने भारत के एक भाग मैं मुग़ल हमलावरों से पहले तक राज्य करा है’|

समस्या यह है की वंशावली निरंतरता और अविच्छिन्नता का प्रतीक है, और महाभारत युद्ध से जो विनाश हुआ था, उससे सभ्यताएं तक नष्ट हो गयी थी, और विज्ञान भी धीरे धीरे समाप्त हो गया था| मनुष्य फिर पाषाणकाल से आगे का विकास करके बढ़ा, और यह हमारा इतिहास बताता है, जिससे किसी को कोइ इनकार भी नहीं है|

यदी युधिष्टिर के वंश ने १२०० वर्ष पूर्व तक राज्य करा, तो निरंतरता और अविच्छिन्नता से इनकार नहीं करा जा सकता और यह भी मानना पड़ेगा की जैसा पश्चिम देश कह रहे हैं, महाभारत अविकसित समाज का युद्ध था, और चुकी उस समय कोइ विकास नहीं था, इसलिए युधिष्टिर का वंश जिसने १२०० वर्ष पूर्व तक राज्य करा है, और जो निरंतरता और अविच्छिन्नता का प्रतीक है, वोह पाषाण काल के महाभारत युग के पूरी तरह अविकसित समाज का प्रतिनिधत्व करते हैं | तब यह बात भी जोर पकड़ेगी, जैसा पश्चिम देश चाहते हैं, की आर्य, इंडस घाटी की सभ्यता(INDUS VALLEY CIVILIZATION) समाप्त होने के बाद भारत आये हैं|

यह भी सत्य है की महाभारत पूर्व ज़बरदस्त विकास था जिसके प्रमाण पूरे विश्व को मालूम हैं , तो जब हम युधिष्टिर की वंशावली स्वीकार कर लेंगे, तो संभवत: इसाई यह साबित कर पाय की मिश्र और अन्य अफ्रीका देश उस विकास के केंद्र थे, और उसी विकसित सभ्यता से इसाई साम्राज्य का आरम्भ हुआ है| सत्य तो यह है की महाभारत युद्ध मैं इतना भीषण विनाश हुआ है, और अंत मैं अश्वथामा ने ‘उत्तरा’ अथार्त जो बच गए थे, उनके लिए एक ऐसा रसायन अस्त्र छोड़ा, जो शेष बची होई महिलाओ के गर्भ का भी नाश कर दे, जिसका उत्तर स्वंम श्री कृष्ण के पास नहीं था | श्री कृष्ण अभिमन्यु की पत्नी उत्तरा का गर्भ तो बचा पाय, लकिन सम्पूर्ण विश्व का क्या करते? इस कारण से और अनेक कारणों से लूट मार शुरू हो गयी, स्वंम श्री कृष्ण को यादवो का विनाश करना पड़ा, सभ्यताएं नष्ट हो गयी, और यही प्रमाण इंडस घाटी की सभ्यता(INDUS VALLEY CIVILIZATION) ने पूरे विश्व को दिया है|
इंडस घाटी की सभ्यता(INDUS VALLEY CIVILIZATION) ने यह स्पष्ट प्रमाण विश्व को दिए हैं की अवशेषों मैं जो पुरानी सभ्यताएं थी, वे ज्यादा विकसित थी, और जो नई सभ्यताएं थी वे कम विकसित थी| अब आप युधिष्टिर की वंशावली को स्वीकार कर के क्यूँ यह प्रमाण महाभारत से अलग करना चाहते हैं, और महाभारत को एक छोटा सा सीमित युद्ध बताना चाहते हैं| स्पष्ट है की विदेशी पैसे का प्रयोग करके इस वंशावली का प्रचार हो रहा है|    निर्णय हिन्दू समाज को करना है|   जय श्री कृष्ण !

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