जनवरी १९८९ का महीना था, और मैं इलाहाबाद, महा-कुम्भ के दर्शन हेतु ही पंहुचा था| चुकी इलाहाबाद में ही पैदा और बड़ा हुआ था, इसलिए मुख्य नहान, जैसे की मकर संक्रांति और मौनी अमावस्या पर संगम मैं दुबकी लगाना बंद था, और उसकी वजह थी अत्यंत ही ज्यादा भीड़, इन पर्वो पर|
परन्तु मैं इन यात्राओ मैं नित्य कुम्भ मेले मैं अवश्य जाता था, सिर्फ उस भव्य मेले का अंग बनने के लिए| हिंदू संस्कृति मैं इतना है की आप सिर्फ इस सांस्कृतिक मेले मैं पहुच जाईये, जुड आप स्वंम जायेंगे|
ऐसी ही एक शाम मेरी कुम्भ मेले मैं एक साधू से मुलाक़ात होई| वैसे तो कुम्भ मेला साधू-संतो से ही भरा रहता है, और आप की किस्मत है की इश्वर आपको किस्से मिला दे| औपचारिकता उपरान्त, और यह देखते हुए की वोह बार बार माता सीता और श्री राम की जय-जयकार कर रहा था, मैंने उससे आदर-पूर्वक प्रश्न पुछा “श्री राम जब माता सीता को इतना प्यार करते थे, तो उन्होंने सीता से अग्नि परीक्षा के लिए क्यूँ कहा ?”
कुछ देर शांत बैठने के उपरान्त उन्होंने बताया कि वोह काफी शिक्षित हैं, आगरा विश्वविद्यालय से स्नातक की उपाधि प्राप्त करी है, लकिन अब संसार त्याग दिया है| संसार का त्याग वास्तविक और भौतिक होना चाहिए | उन्होंने यह भी बताया कि वोह काफी भ्रमण करते रहते हैं|
उन्होंने बताया कि किसी को भी रामायण के पूर्ण उत्तर तब तक नहीं मिल सकते जब तक वोह इंसान उस समय के सामाजिक वातावरण को समझने का प्रयास नहीं करेगा| परन्तु समस्या यह है कि लोग अभी तब इस बात को भी पूरे विश्वास से नहीं मान पाए हैं कि रामायण त्रेता युग का इतिहास है, जिसमें श्री विष्णु अवतार, श्री राम के मनुष्य रूप मैं सांसारिक भ्रमण के वृत्तांत है, और स्वाभाविक है कि जब तक आप इस बात को पूरे विश्वास से नहीं मानेंगे, आपके उत्तर गलत हो सकते हैं |
या तो सिर्फ आस्था है, तो मनुष्य रूप मैं श्री विष्णु अवतार, अर्थ-हीन हो जाता है, और जब आप इतिहास मानेंगे तो इतिहास के परिपेक्ष मैं ही सही उत्तर मिलेंगे, जो आपकी आस्था बढ़ाएगा| उन्होंने फिर दोहराया, ‘ध्यान रहे, बिना इतिहास, आस्था के उत्तर भावनात्मक होंगे, लकिन जरूरी नहीं कि सही हों, लकिन इतिहास मान कर जब आप उत्तर ढूँढेंगे, तो आपको धर्म भी मिलेगा, और आस्था भी बढ़ेगी| इतिहास मानने के बाद आपको श्री राम और माता सीता द्वारा हर प्रकरण/घटना जिससे उनका सम्बन्ध था, एक धर्म मिलेगा, जो की आज भी मान्य होगा| यही अवतार का उद्देश है| कभी कभी, दो घटनाओं को जोड़ कर एक धर्म मिलता है’|
‘अग्नि परीक्षा, और सीता का त्याग, सम्बंधित घटना हैं, और इन दोनों को जोड़ कर ही आपको सही धर्म मिलेगा| श्री राम ने माता सीता का त्याग, राजा बनने के उपरान्त, अग्नि परीक्षा के परिणाम को अस्वीकार करके किया, और वोह भी एक निष्पक्ष न्याय प्रक्रिया के बाद’|
दूसरी समस्या यह है कि रामायण, क्यूँकी अत्यन्त प्राचीन मानव इतिहास है, जिसका उपयोग हिंदू समाज, समय समय के सामाजिक वातावरण के अनुसार करता रहा है, तो उसमें बहुत कुछ जोड़ा और घटाया गया है, स्वाभाविक है कि ऐसे मैं कुछ स्थान रिक्त भी हो गए हैं जिन्हें भरना आवश्यक है, तभी आप रामायण समझ पायेंगे|
काफी साधू हैं, उन्होंने बताया, जो इस बात को मानते हैं, कि सूर्पनखा के दण्डित होने के पश्यात, और खर-दूषण के वध बाद, रावण श्री राम से मिलने पंचवटी पंहुचा, जब लक्ष्मण भी नहीं थे|”आपने मुझे लालकारा है, और मैं युद्ध के लिए तैयार हूँ, अगर आप विष्णु अवतार हैं, तो मैं कुछ नहीं कर सकता, अन्यथा मेरी जीत निश्चित है” रावण ने कहा|
“मैं यहाँ पर समस्त दुष्ट राक्षसों को मारने आया हूँ, जो की मानव जाती को कष्ट पंहुचा रहे हैं, और मेरा अभियान पूर्ण होने तक युद्ध चलता रहेगा, इसलिए यह आपको सुनिश्चित करना है, कि सभी दुष्ट राक्षसों का वध युद्ध मैं हो जाए, वर्ना, राक्षस जाती का पूर्ण संघार ही हो जाएगा| इसलिए आप पहले समस्त दुष्ट राक्षसों को ही युद्ध मैं भेजीयेगा” श्री राम ने समझाया| “यह कैसे संभव है”, रावण बोला, “उसमें तो अधिकाँश मेरे सम्बन्धी हैं, और पुत्र भी; कोइ अपने सम्बंधीयों का इस तरह से संघार कैसे देख सकता है”, रावण ने पुछा|
“आप ज्ञानी हैं, और सिद्ध भी, आप अपनी सिद्ध संहारकारिणी देवी से अनुरोध कर सकते हैं की वे आपकी किसी वाटिका मैं महल से दूर रहें, ताकि आप उस वाटिका मैं, अपने सम्बन्धियों(जो की मृत्यु को प्राप्त हो चुके हैं) से मिल सकें, और देख सकें की वे खुश, और कष्ट-हीन हैं”, श्री राम ने सुझाव दिया|
माता सीता कुछ दूर बैठी यह सब सुन रही थी | माता सीता को मालूम था कि वे ही वोह संहारकारिणी हैं, जो की माता लक्ष्मी का संघार स्वरुप है| अद्भुत रामायण मैं, महारिषि वाल्मीकि ने सीता को महाकाली का अवतार भी बताया है|
संभव है कि माता सीता के पास कोइ और विकल्प न रहा हो, जब उन्होंने स्वेच्छा से लक्ष्मण रेखा पार करी|
अंतिम निष्कर्ष जो निकालना है, वोह मैं आप सब पर छोड़ता हूँ|
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