साम्यता , सामंजस्य , सुर जो की किसी भी परिस्थिति को पूर्णता की और ले जाता है ,
उसीके विपरीत शब्द हैं :> असाम्यता , असामंजस्य और असुर ;
जो की किसी भी परिस्थिति को अराजकता की और ले जाते हैं |
आज का युग सूचना युग है | इन्टरनेट और कंप्यूटर के कारण सूचना हर विषय मैं सुलभता से उपलब्ध है |
आज धर्म गुरुजनों का यह प्रथम कर्तव्य है कि समाज को अधिक से अधिक सूचना उपलब्ध कराएं | खेद की ऐसा हो नहीं रहा है ; और यह भी प्रमुख कारण है हिंदू समाज के कर्महीन होने के |
पुरानो मैं राक्षस और असुर दो का रह रह कर वर्णन है ,
परन्तु सूचना और परिभाषा के अभाव मैं दोनों को एक मान लिया गया है |
साम्यता , सामंजस्य , सुर जो की किसी भी परिस्थिति को पूर्णता की और ले जाता है , उसीके विपरीत शब्द हैं असाम्यता , असामंजस्य और असुर जो की किसी भी परिस्थिति को अराजकता की और ले जाते हैं |
विज्ञान से जुड़े बुद्धीजन आपको यह बता सकेंगे की सुर और असुर दोनों की आवश्यकता होती है , किसी तरह के विकास के लिए; यहाँ तक की एक बच्चे को गर्भ मैं स्तापित होने से पैदा होने तक भी दोनों सुर और असुर का सही मिश्रण आवश्यक है |
सुर और असुर , साम्यता , असाम्यता, तथा सामंजस्य और असामंजस्य से ही श्रृष्टि का विकास होता है , और जब भी इसमें गडबडी होती है तो प्राकृतिक विपदा के रूप मैं यह तुरंत प्रकट हो जाती है , और नया संतुलन स्थापित करने का प्रयास करती है |
इसी लिए यह कहावत प्रसिद्ध है कि PERFECTION IS MOMENTARY AND CHAOS ETERNAL , अथार्थ ‘पूर्णता क्षणिक और अराजकता अनन्त है’ |
स्पष्ट है कि राक्षस और असुर , दोनों अलग हैं | जहाँ राक्षस उन मनुष्यों को कहा जाता है , जो कि मनुष्य का मॉस खाने लगते हैं , वहाँ असुर प्रकृति मैं उत्पन्न होई अधिक असाम्यता और असामंजस्य स्थिति को कहते हैं | प्रश्न फिर यह उठता है कि हमारे पुरानो मैं उनको मनुष्य शरीर क्यूँ दे दिया गया है ?
इसका उत्तर भी स्पष्ट है ;
पुराण कुछ विशेष लक्षण , विशेषताओं को दर्शाने के लिए पर्वतो को , नक्षत्रों को , नदियों को, तथा असुरों को शरीर दे कर व्याख्या करते हैं | लकिन इसका अर्थ यह तो नहीं हुआ कि यह सब मनुष्य हैं ? यह कार्य तो धर्म गुरुओं का है कि समाज को उनकी शमता, और सूचना ग्रहण करने की योगता अनुसार समझाया जाए |अफ़सोस , धर्म गुरुजनों की योगता पर ही प्रश्न चिन्ह है | ऐसे मैं समाज की प्रगति कैसे होगी ?
अब परिभाषा राक्षस और असुर की :
राक्षस : वह मनुष्य जो की अन्य मनुष्य का मॉस खाने लगे | राक्षस और मनुष्य मैं केवेल यही भिन्ता है |
असुर : जैसा की ऊपर समझाया गया है , जिस तरह से प्रकर्ति मैं सुर, साम्यता , सामंजस्य है वह तभी संभव है जब सही मिश्रण सुर और असुर , साम्यता , असाम्यता, तथा सामंजस्य और असामंजस्य का हो , अन्यथा प्राकृतिक विपदा , जैसे की भूचाल, तूफ़ान , अन्य प्राकृतिक आपदाओं से नया समीकरण स्थापित होता है |
हिंदू धार्मिक ग्रन्थ हमें अनेक विषयों पर जानकारी प्रदान करते हैं | समस्या केवल इतनी है कि हमारे धर्म गुरु उसका लाभ समाज तक पहुचाने मैं असमर्थ हैं |
जब माता सती ने अपनी देह श्रृष्टि के सही विकास के लिए त्यागी, तो प्राकर्तिक अराजकता, जिसको की परिभाषित नहीं करा जा सकता, उसने विश्व पर अपना अधिपत स्थापित करा | और यह लाखों वर्ष तक रहा | उस समय पृथ्वी पर जनजीवन नहीं रहा | हिमालय के अवतरित होने के पश्यात और शिव पारवती के विवाह उपरान्त ही श्रृष्टि फिर से पनपी | |
अब आपके गुरुजन इसे असुर राज्य बता कर समझाएं , या विज्ञानिक दृष्टिकोण से यह बात समझाएं , यह वास्तव मैं समाज की सूचना ग्रहण करनी के शमता पर निर्भर करना चाहिए , न की गुरुजनों के ज्ञान के अभाव पर |
ॐ नमः शिवाय | ॐ श्री दुर्गाय नमः |
कृप्या यह भी पढ़ें :
Wish My Sanskrit Script Was As Good As Reading Roman English Script??
ReplyDeleteIt is NOT Sanskrit, but Devnaagri script in which Hindi is written...I am told Sanskrit can be written easily in most of the language, which has strong Grammar.
ReplyDeleteIf you want to read this post in English you can copy paste the link provided here-in-under, through your browser, and read the English post...
HINDU SOCIETY MUST KNOW THAT RAKSHAS ARE DIFFERENT FROM ASURS
HINDU SOCIETY MUST KNOW THAT RAKSHAS ARE DIFFERENT FROM ASURS
ReplyDeletehttp://awara32.blogspot.in/2012/07/hindu-society-must-know-that-rakshas.html