I CAN DISCHARGE MY OBLIGATIONS AS FATHER ONLY BY HONESTLY BEING AN AGENT OF GOD.
This is the most important mental condition one must cultivate to successfully perform the parental duties~~सृजन इश्वर का कार्य है| संतान आपको इश्वर की देंन है| उसका पोषण पूर्णता तभी संभव है जब आप इस विश्वास को धर करलें कि पोषण इश्वर का कार्य है, और आप, इश्वर का, इस कार्य मैं, प्रतिनिधित्व कर रहे हैं !
आरम्भ मैं संतान को विशेष देख रेख की आवश्यकता होती है , जो कि आप और आपका परिवार खुशी खुशी पूरा करता है | उसके रोने का अर्थ होता है कि वोह तो कुछ बता नहीं पाता, इसलिए आप स्वंम ही समझने का प्रयास करते हो कि उसकी क्या आवश्यकता है , या कष्ट है , तथा अपनी समझ से उसका निवारण करते हो |
अब बालक ६-८ महीने का हो गया, और आप और आपका परिवार उसके भावों को कुछ कुछ समझने लगे हैं , आज भी वोह कुछ कह नहीं पाता , इसलिए उसका विशेष ध्यान रखना पड़ता है |
अब बालक कुछ और बड़ा हो गया ; ठुमक ठुमक के चलने लगा | पोषण की मांग है कि उसे कुछ खतरों से सावधान कर दिया जाए , और वोह आप करते हैं | आग और चूल्हे के पास वोह न जाए , इसका ध्यान रखा जाता है , उसे समझाया भी जाता ही कि उसे ऐसा नहीं करना है , और जरुरत पड़े तो झूट मूढ का नाटक भी करना होता है, उसे डाटने का |
बालक भी अब कुछ समझदार हो चला है | अपनी जिद वोह माता से मनवा लेता है और समस्या अपने पिता से | यदि कोइ खिलौना उसका खराब हो जाए तो उसे विश्वास है कि उसके पिता उसे ठीक कर देंगे , या कुछ नया दे देंगे, और अब तक ऐसा हुआ भी|
इस बालक को यह विश्वास हो चला है कि उसकी हर समस्या का समाधान उसके पिता के पास है , परन्तु आज जब खिलौना टूट गया और वह अपने पिता के पास उसे ठीक कराने के लिए पंहुचा , तो पिता समझ गए कि यह ठीक नहीं हो सकता , और उसका ध्यान बाटने के लिए उसे कुछ नए काम मैं उलझाने से ज्यादा जरूरी था उसे बताना कि उसके पिता वास्तव मैं उसकी सारी समस्या का समाधान नहीं कर सकते | “यह खराब हो गया है , अब ठीक नहीं होगा", उसके पिता ने बताया|
बालक रोया , और पिता ने उसे रोने दिया | उसे आज पहली बार अहसास हुआ कि उसके पिता उसकी सारी समस्या का समाधान नहीं कर सकते |
अब बालक स्कूल जाने लगा , शिक्षा अब उसे स्कूल मैं मिल रही है , माता पिता का कार्य अब पहले से कुछ अलग हो गया था | अब माता पिता, बच्चा जो शिक्षा सम्बन्धी कार्य घर मैं लाता था, उसमें उसकी सहायता कर देते थे , तथा यदि कुछ उसे समझना हो तो उसे या तो माता पिता अपनी शिक्षा और क्षमता के आधार पर उसकी सहायता कर देते हैं , या हर जगह शिक्षा सम्बन्धी कोअचिंग क्लास्सेस (COACHING CLASSES) जो हर शहर मैं उपलब्ध हैं उसमैं वोह जाने लगता है |
बालक अब युवा अवस्था मैं पहुच गया था | अब माता पिता का उत्तरदायित्व कुछ भिन्न है , उसे आत्म निर्भर बनाना है | और यहीं से उसका व्यक्तिगत जीवन, निजी अस्तित्व के शुरू होता है | उसे अब अपने निर्णय स्वंम करने है , माता से तो अभी भी उसके भावनात्मक सम्बन्ध रहते हैं , लकिन पिता से व्यवहारिक सम्बन्ध रह जाता है तथा किसी विशेष समस्या मैं ही उसे पिता की आवश्यकता पड़ती है |
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यह लेख इसलिए ज़रुरी हो गया था ताकि आप एक तो यह बात समझ लें कि माता पिता का उत्तरदायित्व संतान को अच्छा नागरिक बनाने का है , और कार्य आपको इश्वर ने सुपुर्द करा है , इसलिए इसमें कुछ त्रुटि या कमी नहीं रहनी चाहिए |
दूसरा , आप जरा इस बात पर विचार करलें कि बालक अपने माता पिता मैं ईश्वर की झलक देखता है और जिस तरह से ईश्वर पर विश्वास और निष्ठां होनी चाहिए, उसी तरह से उनपर पूरी निष्ठां, विश्वास करता है , तो क्या माता पिता बालक को अपने मोह मैं केवल भावनात्मक ही बनाए रहते हैं ? नहीं , ऐसा तो किसी परिवार मैं नहीं होता , तो फिर क्यूँ, हिंदू समाज के साथ ऐसा क्यूँ ?
हिंदू समाज भी तो आजादी के बाद युवा, अथार्त जवान हो गया है , उसे सिर्फ भक्ति मार्ग, अथार्त भावनात्मक क्यूँ बताया जा रहा है ; जबकि इसका सीधा परिणाम यह है कि भक्ति मार्ग का रास्ता सुझाने से हिंदू समाज कर्महीन समाज हो गया है , और अपने ही देश मैं द्वित्व श्रेणी का नागरिक समझा जाने लगा है | बिना कर्म की शिक्षा के भक्ती, समाज को कर्महीन ही बनाएगी|
जबतक हिंदू समाज इस विषय पर उचित प्रश्न रह रह कर नहीं पूछेगा, हमारे धर्म गुरु, समाज को सही मार्ग नहीं दिखाएंगे |
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