Tuesday, April 17, 2012

गोस्वामी तुलसीदास कर्त रामचरितमानस..उस समय कि सामाजिक पृष्ठभूमि में समीक्षा

गोस्वामी तुलसीदास सोल्वी शताब्दी(१५३२-१६२३) के महाकवि थे, जिन्होंने हिंदी कि अवधि भाषा में रामचरितमानस कि रचना करी ! उनका योगदान हिंदू धर्म कि रक्षा के लीये सरहानीय है ! 

कुछ लोगो का मत है की वोह हनुमान जी के अवतार थे, तो कुछ कहते हैं की हनुमान जी की उनपर असीम कृपा थी; तो कुछ उन्हें महारिषि वाल्मीकि का अवतार मानते हैं ! 

जो भी हो, सचाई यह है की हिंदू समाज उस समय घोर संकट मैं था, और गोस्वामी तुलसीदास ने तथा अन्य संतो ने अनेक बदलाव धर्म मैं करके, किसी तरह से हिंदू समाज को बचा लिया !

उस समय हिंदू समाज अनेक जटिल समस्याओं से जूंझ रहा था ! एक तरफ मुस्लिम शासको का अत्याचार, दूसरी और अपने चारों तरफ मुस्लिम समुदाय कि बढती होई आबादी, जिनको शासन का संगरक्षण प्राप्त था और जो शासन के साथ मिल कर हिंदू समुदाय पर अत्याचार कर रहे थे ! और भरसक प्रयास कर रहे थे कि हिंदू समाज मैं अधिक से अधिक धर्म परिवर्तन हो जाय ! जगह, जगह से समाचार आते रहते थे कि अब यह पूरा गाव धर्म परिवर्तन करके मुसलमान हो गया है ! 

अत्यंत कमजोर स्तिथि थी हिंदू समाज कि ! जवान अविवाहित कन्याओं को अगवा करलिया जाता था, और यदि अगवा करने वाला उससे निकाह करले तो उसे जुल्म नहीं माना जाता था, इसलिए कन्याओं कि शादी कम उम्र में होने लगी ! ऐसे में हिंदू समाज को धर्म परिवर्तन से बचाना एक अत्यंत जटिल और महत्त्वपूर्ण कार्य था !

हिंदू धर्म सर्वथा कर्मप्रधान धर्म रहा है ! कर्मवीर श्री कृष्ण का कर्मछेत्र कहलाता है , जहाँ धर्म की परिभाषा कर्म की व्याख्या से शुरू होती है ! परन्तु समस्या इतनी जटिल थी की कर्मवीर हिंदू समाज बच नहीं सकता था ! वक्त इतना बुरा था कि विदेशी शासको से संघर्ष का अर्थ था हिंदू समाज कि समाप्ति ! यह तो हमसब को विदित है कि धर्म मैं सदैव उचित अनुपात कर्म और भावना का होता है ! बिना भावना या भक्तिरस के कर्म और कर्म प्रधान धर्म समझाया नहीं जा सकता ! लकिन अब समस्या यह थी कि कर्म प्रधान धर्म का कोइ प्रयोग नहीं था ! किसी तरह से कर्म का भाग घटा कर भावना(भक्ति) भाग बढ़ाना था !

बुरा वक्त तो सर झुका के ही निकाला जा सकता है, और इसी सोच से उस समय के संतो ने धर्म से कर्म का भाग पूरी तरह से घटा कर भावना का भाग बढ़ा दिया ! कर्महीन समाज बुरा वक्त सर झुका कर काट सकता था !

सभी संतो ने समय समय पर उस कठिन समय मैं इसके लिए प्रयास करा ! भक्त सूरदास ने कर्मवीर कृष्ण को गूपियुओं के साथ लीला करते हुए दर्शाया, कृष्ण की कर्म प्रधान योगीराज कि छबी को अलग रख कर बाल गोपाल कृष्ण की लीला से, समाज को भक्तिरस की तरफ मोड दिया ! स्वंम गोस्वामी तुलसीदास जी ने रामायण के इतिहास के स्वरुप मैं कुछ संशोधन कर के रामचरितमानस कि रचना करी ! रामचरितमानस स्थानिये अवधि भाषा मैं रचित है तथा अत्यंत लोकप्रिय है ! पूरी रामचरितमानस मैं अत्यंत रसीले और भक्ति से प्ररित भाव से यह बताया गया है कि कैसे विष्णु अवतार श्री राम ने, दुराचारी राक्षस रावण का सर्वनाश करा ! समाज को यह समझाने कि कोशिश करी गयी कि दुराचारी कि समाप्ति तो निशित है , बस श्री राम पर विश्वास रखो ! और उस समय के समाज के पास भक्ति और भाव के अतरिक्त और कोइ विकल्प था भी नहीं !

वैसे भी रामचरितमानस अत्यंत रसीली और सरल भाषा मैं लिखी होई है ! संभवत: यह पहला महाकाव्य है जो कि संस्कृत मैं नहीं था ! मानस की लोकप्रियता समय के साथ साथ बढ़ती गयी ! आज पूरे भारत मैं यह अत्यंत लोकप्रिय है !

हिंदू समाज के अत्यंत कठिन समय मैं महान संत गोस्वामी तुलसीदास का योगदान सदैव प्ररित करता रहेगा !
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