Tuesday, February 28, 2012

परशुराम का अवतार वानर प्रजाति और स्त्रियों की रक्षा के लीये

परशुराम की सेना क्षत्रियों को मारने के लीये युद्ध कर रही थी; हाँ उन क्षत्रियों को जीवित छोड दिया जाता था जो यह प्रतिज्ञा ले रहे थे कि जिन स्त्रियों के साथ वह रह रहे थे, उनसे वह विवाह करेंगे !
यह प्रश्न बार बार उठता है कि श्री विष्णु ने परशुराम के रूप में अवतार क्यूँ लिया, तथा उन्होंने इक्कीस बार पृथ्वी को क्षत्रिय विहीन क्यूँ करा ?
इससे पहले की इसपर विस्तार से चर्चा हो, यह जानना आवश्यक है कि त्रेता युग में, उस समय की भूगोलिक व् सामाजिक स्थिती क्या थी ?

नई श्रिष्टी का आरम्भ सतयुग से होता है, तथा आरम्भ में सब कुछ अत्यंत धीमी गति से होता है ! आरम्भ में पृथ्वी का अधिकाँश भाग जलमग्न था, सीमित स्थान था मनुष्य को रहने के लीये ! कुर्म अवतार के साथ जब समुन्द्र में लहरों का गठन आरम्भ हो गया तो पृथ्वी का कुछ और भाग मनुष्य के रहने के लीये उपलभ्ध हुआ ! वराह अवतार उपरान्त पृथ्वी का प्रचुर भाग मनुष्य के रहने के लीये उपलभ्ध हुआ !

यह भी समझना आवश्यक है कि पिछले महायुग/कल्प से मनु इस नए महायुग में प्रवेश करते हैं , तथा अपने साथ पुराने युग के कुछ मानव को भी साथ लाते हैं, जिनमे से जो मनुष्य का मांस खाने लगे थे वे राक्षस कहलाते थे, और जो समुन्द्र में मनु के साथ निश्चित जाति वर्ग को मानते थे वे आर्य ! इन आर्यपुत्रो ने पृत्वी पर जगह जगह अपने रहने के लीये बस्ती बना ली, फिर वह धीरे धीरे राज्य कहलाने लगे ! राक्षस अलग रहने लगे तथा उनका अन्य मनुष्योंके साथ दुर्व्यवाहर और भी सक्रीय हो गया ! पढीये : कलयुग का अंत..एक नए कल्प का प्रारम्भ और मत्स्य अवतार

वराह अवतार के उपरान्त पृथ्वी अनेक पशु, पक्षी से सुशोभित हो उठी थी; पृथ्वी पर विशाल वन थे और मनुष्य सीमित जगह पर ही रह रहे थे ! वन में मनुष्य की नई प्रजाति जिसे वानर कहा जाता है वह भी विकसित हो रही थी ! सत्ययुग अत्यंत ही कष्टदायक युग था मनुष्य के लीये, जिसमें अधिकाँश समय राक्षसों का राज्य रहा था, जिसमें हिर्नाकश्यप और बलि प्रमुख थे !

परन्तु परशुराम के अवतार से पूर्ण स्थिती और भी जटिल हो गई, जिसमें क्षत्रिय, अर्थात विभिन् राज्यों के सैनिक एक नई शोषण करने वाली श्रेणी बन गई ! नारी का सम्मान पूरी तरह से नष्ट हो गया था ! उसे भोग की वस्तु बना दिया गया था ! धार्मिक गुरु भी चुपचाप उसे सहे कर रहे थे ! स्वंम परशुराम के पिता ने अपने पुत्रो को अद्देश दिया था कि वह अपनी माता कि हत्या कर दे ! और भी अनेक उद्धारण हैं पुराणों में जिससे यह ज्ञात होता है कि धार्मिक गुरु स्त्रियों के साथ कैसा दुर्व्यवहार कर रहे थे ; पढ़ें: राम से पूर्व... धर्म का उपयोग स्त्री जाती के शोषण के लिये 

उधर राक्षस तथा ज्यादा तर राज्य के सैनिक, वानर के साथ पशुओं जैसा व्यवहार कर रहे थे ! जहाँ राक्षस वानर का मांस खाने के लीये भी प्रयोग कर रहे थे, वहाँ राज्य वानर को पशु मान कर व्यवहार कर रहे थे, पशु की तरह उनसे काम लेते थे ! राज्य के सैनिक, व् कर्मचारी वानर का वन में शिकार करके पकड़ते तथा फिर उनका राज्युओं में पशु की तरह से उपयोग होता !
चुकी अधिकाँश राजा क्षत्रिये थे, और सैनिक भी, परशुराम ने पहले दण्डित कर के क्षत्रियों को सुधारा !

श्रृष्टि का पालन का भार तो भगवान विष्णु पर है, इसलिए जब मनुष्य की नई प्रजाति वानर , तथा स्त्रियों पर इतना दुर्व्यवहार हो रहा था, तो प्रभु को मनुष्य अवतार में आना पड़ा ! परशुराम ने कम से कम २१ बार राज्यों से युद्ध करा ! युद्ध में परशुराम की सेना, क्षत्रियों को मारने के लीये युद्ध कर रही थी ना की मात्र परास्त करने के लीये; 

हाँ यह अवश्य था कि उन क्षत्रियों को जीवित छोड दिया जाता था जो यह प्रतिज्ञा ले रहे थे कि जिन स्त्रियों के साथ वह रह रहे थे, उनसे वह विवाह करेंगे !
परशुराम ने मित्र राज्यों की सहायता से शिव धनुष(प्रलय स्वरूपि, विनाशकारी~Weapon of Mass Destruction) का निर्माण करवाया , तथा इस बात को भी सर्वविदित करा कि वे उसका प्रयोग उस राज्य पर निसंकोच करेंगे, जो की वानर तथा स्त्रिओं के साथ दुर्व्यवहार कर रहा है !
अंत में कम से कम उन राज्यों ने जिनके राजा क्षत्रिय थे, ने संगठित हो कर यह निर्णय लिया कि वे वानरों से किसी प्रकार का संबंध, अच्छा या बुरा नहीं रखेंगे, तथा स्त्रिओं के साथ व्यवहार धर्म अनुसार करेंगे (ध्यान दे;"धर्म अनुसार") ! क्षत्रिय जो उपद्रव कर रहे थे, वोह समाप्त हो गया |
भगवान परशुराम ने शिव धनुष जनकपुरी में महाराज जनक जो एक क्षत्रिय राजा थे के पास रखवा दिया|

कुछ समस्याओं का समाधान हुआ, वानर को मनुष्य का सम्मान तो नहीं दिला पाए, लेकिन दूरव्यवहार कम हो गया; उसी तरह स्र्त्रिओं के साथ शोषण तभी संभव था जब धर्म उसे उत्साहित करे, और अग्नि परीक्षा को धार्मिक मान्यता प्राप्तथी! परन्तु वह एक अलग विषय था जिस पर अंकुश परशुराम नहीं लगा पाए! यही मनुष्य रूप मैं अवतार की सीमाएं दर्शाता है, जिसको की अवतरित इश्वर को भी मानना पड़ता है | 

जैसा की विदित है, अग्नि परीक्षा एक ऐसा ही श्रोषण था जिसे धर्म से मान्यता प्राप्त थी! वानरों की भी समस्या समाप्त नहीं कर पाए; मात्र क्षत्रिय राजा ही परशुराम की बात मान रहे थे | रावण जो ब्राह्मण था और लंका के राजा थे वे, और उनके आदमी वानरों का खुले आम शिकार कर रहे थे, और अन्य राज्य मैं उसका व्यापार भी कर रहे थे| लकिन उस शोषण को और स्त्रियों पर शोषण को परशुराम रोक नहीं पाय | स्वंम उनके पिता ने अपनी संतान से अपनी माता को मारने को कहा | और ऋषि गौतम ने अपनी पत्नी को मार कर समाधि बनवा दि थी |

नई श्रृष्टि में अनेक प्रकार के श्रोषण होते हैं, विशेष कर जब, अलग अलग प्रजाति के मनुष्य हों , जैसे कि तब था; आर्य, राक्षस और वानर ! इसके अतिरिक्त समाज जातियों मैं भी बटा हुआ था |
अगले विष्णु अवतार श्री राम को सारे दुराचार समाप्त करने के लीये और रामराज्य की स्थापना के लीये जल्दी ही अवतरित होना पड़ा !
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A Consulting Engineer, operating from Mumbai, involved in financial and project consultancy; also involved in revival of sick establishments.

ABOUT MY BLOG: One has to accept that Hindus, though, highly religious, are not getting desired result as a society. Female feticide, lack of education for girls, dowry deaths, suicides among farmers, increase in court cases among relatives, corruption, mistrust and discontent, are all physical parameters to measure the effectiveness or success/failure of RELIGION, in a society. And all this, despite the fact, that spending on religion, by Hindus, has increased drastically after the advent of multiple TV channels. There is serious problem of attitude of every individual which need to be corrected. Revival of Hindu religion, perhaps, is the only way forward.

I am writing how problems, faced by Indian people can be sorted out by revival of Hindu Religion.