Wednesday, November 30, 2011

सीता का त्याग राम ने क्यूँ करा... सही तथ्य

FACTS LEADING TO DISOWNMENT OF SITA~~राम और माता सीता ने घोर कष्ट सहे ताकी समाज को यह समझा सकें कि अग्नि परीक्षा एक क्रूर अपराध और अधर्म है ! 
यह एक ऐसा विषय है जिस पर कोइ भी विवाद संभव नहीं होना चाहिये ! श्री राम ने माता सीता का त्याग अयोध्या का राज्य संभालने के उपरांत क्यूँ करा ?
रावण वध, तथा विभीषण के राज तिलक बाद, जब, रावण द्वारा हरण करी हुई माता सीता को श्री राम के सामने लाया गया तो श्री राम ने सीता को अग्नि परीक्षा उपरान्त स्वीकार कर लिया !

यहाँ यह जानना आवश्यक है कि अग्नि परीक्षा उस समय कि एक उचत्तम मर्यादा थी जिसको धार्मिक मान्यता भी प्राप्त थी ! स्त्रियों के अनेक तरह के शोषण हो रहे थे तथा धर्म ने अग्नि परीक्षा को मान्यता दे कर स्त्रियों को भोग की वस्तु स्वीकार कर रखा था| विजई सेना के प्रमुख की हैसियत से श्री राम का उस समय की मर्यादा का पालन सर्वथा उचित्त भी था !

तत्पश्यात अयोध्या पहुँच कर श्री राम ने अयोध्या का राज्य संभाल लिया, तथा सीता अयोध्या की महारानी बन गयी ! राज्य के दूत, नियमित रूप से राजा को, राज्य की समस्त सुचना दिया करते थे! कुछ सूचनाएं सीता से सम्बंधित थी! शुरू मैं तो उनकी अपेक्षा कर दी गयी, परन्तु जब व्यापक शेत्र से सूचना आने लगी तो विषय गंभीर हो गया ! राजा राम के पास सीमित विकल्प थे ! उन्होंने अपनी स्वंम की अध्यक्षता मैं एक न्याय पीठ का गठन करा जिसमे सीता को अपनी बात कहने का मौका दिया तथा प्रजा को अपनी |

मुख्य आरोप सीता के विरुद्ध जनता का यह था, कि रावण एक प्रतिष्ठित ब्राह्मण था तथा सर्व संपन्न था ! स्वम सीता ने अपने आपको भिक्षा के रूप मैं रावण को अर्पित कर दिया ! सीता लक्ष्मण रेखा लांघ कर स्वेच्छा से रावण के साथ गयी थी! बाद मैं राम के पास कोइ अधिकार नहीं था कि वो इतना खून बहा कर सीता को वापस लाये, तथा महारानी बना दें!

न्याय पीढ के समक्ष सीता के पक्ष से यह बताया गया कि किस तरह से रावण, भिक्षुक के भेष मैं, छल करने की इच्छा से पंहुचा ! छल करने की इच्छा से ही उसने यह कहा कि वोह जहाँ बैठ गया है वहीं भिक्षा लेगा ! ताकी ब्राह्मण का अपमान न हो, सीता लक्ष्मणरेखा लांघ कर भिक्षा देने हेतु रावण के पास पहुँची, और रावण ने बल प्रयोग कर उनका अपहरण कर लिया!

लक्ष्मण ने बताया कि किस तरह जटायू ने सीता को जोर जबरदस्ती से ले जाते होए रावण का विरोध करा, तथा लड़ते होए अपने प्राण गवां दिये ! सुग्रीव ने बताया कि किस तरह से राम का नाम विलापते लेते होए सीता ने गहने उनके पास विमान से डाल दिये! हनुमान जी ने सीता की हृदयग्राही अवस्था, जो कि उन्हे सीता कि अशोक वाटिका मैं मिली, उससे सब को अवगत कराया!

जनता पक्ष से दोहराया गया कि रावण अत्यंत ज्ञानी ब्राह्मण थे और भिक्षुक के भेष मैं इसलिये आये कि सूर्पनखा विवाद के उपरान्त मन मुटाव समाप्त कर सकें| राम के अत्याचारों से परेशान सीता ने स्वंम को भिक्षा मैं अपने आप को अर्पित कर दिया ! स्वंम सीता ने भी यह स्वीकारा है कि बिना बल प्रयोग के उन्होंने सुरक्षा रेखा, य लक्ष्मण रेखा पार करी !

जटायु के प्रश्न पर जनता पक्ष ने स्पष्ट करा कि वोह पक्षी थे जिसकी भाषा लक्ष्मण ही समझते थे, तथा वोह अब मर भी चुके हैं, इसलिये लक्ष्मण मृतक साक्षी की और से कुछ नहीं बोल सकते ! 

साक्षी सुग्रीव पर जनता पक्ष ने कहा कि उनका बयान इस बात का समर्थन करता है कि सीता स्वेच्छा से गयी थी, चुकी वीरान कुटिया मैं गहने न छोड कर सीता ने सुग्रीव को देख कर गहने त्याग दिये, और अब जब सीता गर्भवती हैं तो वोह अब राम के समर्थन मैं दूसरी बात कह रही हैं !

उन्होंने इसी बात को आगे बढाते होए हनुमान के बयान का उल्लेख करा जिससे यह स्पष्ट था कि सीता लंका नहीं छोडना चाहती थी| “क्या कोइ असहाय नारी दूत को अशोक वाटिका से फल तोड़ कर खाने के लिये प्रेरित करेगी ताकी वोह पकड़ा जाय” ? जनता पक्ष ने पूछा !

सीता कि और से अग्नि परीक्षा का उल्लेख करा गया! यह भी स्पष्ट करा गया कि जहाँ अन्य प्रमाण के कोइ साक्षी नहीं हैं, अग्नि परीक्षा सीता ने सब के सामने दी थी; तथा अग्नि परीक्षा को धार्मिक मान्यता भी प्राप्त है, इसलिये वोह किसी न्याय पीठ की स्वीकृती की मोहताज़ भी नहीं है|

जनता पक्ष ने इस बात को माना कि सीता ने अग्नि परीक्षा सब के सामने दी थी लेकिन न्याय पीठ से निवेदन करा कि चुकी अग्नि परीक्षा किसी तरह से भी किसी स्त्री की शुद्धता, सतित्व्, व् चरित्र का प्रमाण नहीं दे सकती, इसलिये उसे निरस्त करा जाय, और केवल भौतिक प्रमाण और तथ्यों पर निर्णय आधारित करा जाय !

दोनों पक्ष की लंबी बहस के बाद श्री राम ने यह निर्णय दिया 
कि
सीता कोइ भी भौतिक प्रमाण नहीं दे पायी हैं कि वोह स्वेच्छा से नहीं गयी थी| 

बिना बल प्रयोग के सुरक्षा रेखा(लक्ष्मण रेखा) स्वंम पार करना और रावण को सुरक्षा रेखा के बाहर जा कर भिक्षा देने को स्वेच्छा से रावण के पास जाना भी माना जा सकता है | उन्होंने यह भी माना कि आज क्यूँकी वोह गर्भवती हैं तथा पूरी तरह से उनके नियंत्रण मैं हैं उनके किसी भी बयान को स्वतंत्र नहीं माना जा सकता ! 
श्री राम ने अग्नि परीक्षा के परिणाम को निरस्त करते होए सीता को त्याग दिया!

यह भी आदेश पारित करा कि अग्नि परीक्षा किसी तरह से भी किसी स्त्री की शुद्धता, सतित्व्, व् चरित्र का प्रमाण नहीं दे सकती, इसलिये भविष्य मैं उसके प्रयोग को अपराध माना जायेगा, तथा अग्नि परीक्षा और उसके इस दुरूपयोग को सदा के लिये अधर्म घोषित कर दिया !
माता सीता को त्यागने के बाद श्री राम के यह शब्द कोइ नहीं भूल सकता: 

"इस बात का संतोष अवश्य है कि अग्नि परीक्षा को एक गंभीर आपराधिक कृत्य घोषित करके, इस एक ऐतिहासिक फैसले के बाद समाज मैं महिलाओं को कुछ राहत होई | लेंकिन इस फैसले को लेने में व्यक्तिगत अंदरूनी संघर्ष और निर्दोष सीता को त्यागने का कष्ट भी मेरे हिस्से आया | सीता निर्दोष है ये में व्यक्तिगत सूचना के आधार पर कह रहाहूं !

"साक्ष्य विधि को भौतिक तथ्यों पर निर्भर और संतुलित करना आवश्यक था | निर्णय, महत्वपूर्ण इसलिए भी है कि भविष्य मैं महिला के अपहरण से संबंधित साक्ष्य, दूसरों से प्रभावित तो नहीं है, को सिद्धांत मान लिया गया है |

"क्रूर धार्मिक कानून अग्नि परीक्षा अब अधर्म और गंभीर आपराधिक कृत्य घोषित कर दिया गया है ! ढेरो महिलाओ के अपहरण सम्बंधित मामले पर अब भौतिक तथ्यों पर ही निर्णय होगा, बिना धार्मिक हस्ताषेप के, जिससे महिलाओं को राहत मिलेगी! 

"यह सब निर्दोष महारानी सीता के समाज हित मैं त्याग के कारण संभव हुआ है, जिसे मुझे त्यागना पड़ा क्यूंकि वे कोइ प्रमाण प्रस्तुत नहीं कर पाई कि उनका अपहरण हुआ था| कानून अब अँधा है, और आगे भी रहेगा | 

"क्यूँ ना सिता का चित्रण न्यायदेवी के रूप मैं हो, जिनकी आँखों मैं पट्टी बंधी हुई है ?" श्री राम ने पुछा!

हम सब पूरी निष्ठां से श्री राम और माता सीता को इश्वर अवतार मानते हैं, और यह भी जानते हैं कि व्यक्तिगत कष्ट उठा कर वे दोनों समाज में सुधार करने के लिये अवतरित होए थे ! 
श्री राम और माता सीता ने घोर कष्ट सहे ताकी समाज को यह समझा सकें कि अग्नि परीक्षा एक क्रूर अपराध और अधर्म है !
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