DEFINITION OF DHARMIC, SPIRITUAL, SAADHU, GURU~~यह पोस्ट आपको धार्मिक, अध्यात्मिक, साधू तथा गुरु का अर्थ, तथा उनमें क्या अंतर है उसपर प्रकाश डालेगी !
पूजा, विधी, गुरु के आश्रम मैं जाकर सेवा करना धर्म करने के लिये प्रेरित करता है | वह अपने आप मैं धर्म नहीं है |
धर्म वह भौतिक प्रयास है, जो आप अपना, अपने परिवार, अपने पूरे, या कहीये सामूहिक परिवार तथा समाज की प्रगती केलिए करते हैं |
हिंदी मैं ब्लॉग पोस्ट लिखने का यह लाभ अवश्य मिल रहा है कि ज्यादा से ज्यादा लोग अब ब्लॉग से जुड रहें हैं |
सिर्फ चार पोस्ट लिखने के बाद पत्रों के संख्या बढ गयी! ज्यादातर लोग फिलहाल चार पोस्ट के संधर्भ मैं ही प्रश्न कर रहे हैं ! अधिकाँश लोग की इस बात मैं जिज्ञासा है, या यूँ भी कह सकते हैं कि उनको पूरी तरह से कथित बात पर विश्वास नहीं है कि पूजा और विधी धर्म का पालन करने के लिये पर्याप्त नहीं है !
इस बात से भी तकलीफ है कि गुरु के आश्रम पर जा कर जो सेवा की जाती है वो स्वर्ग पहुचाने के लिये काफी नहीं हैं! परंतु यही सत्य है!
स्वर्ग का द्वार धर्म करने से ही खुलता है| यहाँ तक यह बात बिलकुल सच है ! लेकिन जो बात यहाँ पर कही जा रही है, व जो बात अब तक आपको समझाई गयी है उसमें इतना विरोध क्यूँ हैं ? क्या पूजा, विधी (हवन, मंदिर मैं जा कर नारियल फोडना, धुप बत्ती करना, आदी,,), धर्म नहीं है?
तथा क्या अब तक की जो मान्यता है कि गुरु के आश्रम मैं जा कर सेवा करना धर्म नहीं है?
इन सब प्रश्नों का उत्तर आपको यहाँ मिलेगा |
हरेक धर्म/RELIGION के ३ प्रमुख भाग होते हैं:
१. पूजा या भक्ति;
२. विधी, जैसे कि अगरबत्ती जलाना, फूल अर्पण करना, हवनं ...;
३. धर्म, या आपकी धर्मानुसार जिम्मेदारियां या कर्म जिसे की भौतिक प्रयास ( PHYSICALLY) से करना है | धर्म वह भौतिक प्रयास है, जो आप अपना, अपने परिवार, अपने पूरे, या कहीये सामूहिक परिवार तथा समाज की प्रगती के लिए करते हैं|
eg:• हरे पेड को काटना पाप है,
• अपने परिवार, तथा समाज मैं रह रहें है, उसकी तरक्की के लीये प्रयास करें;
• शादी पर जब हमसब दावत का आनंद लेतें हैं तो वह एक संकल्प है कि नवदंपती की समाज हर संभव मदद करेगा;
पूजा, विधी, गुरु के आश्रम मैं जा कर सेवा करना धर्म करने के लिये प्रेरित करता है! वोह अपने आपमैं धर्म नहीं है! गुरु के आश्रम मैं सेवा वास्तव मैं एक विधि ही है!
इसके बारे मैं विस्तार से जानकारी के लिये आप पढें :
हिंदू धर्म मैं यह परेशानी इस लिये भी है की धर्म शब्द के दो अलग अर्थ और प्रयोग हैं |
एक तो सनातन धर्म या HINDU RELIGION जो की इस बात की जानकारी देता है की सनातन धर्म क्या है और कौन उसमें आतें हैं ! दूसरा धर्म का अर्थ है भौतिक तरीके से अपनी समाज मैं जिम्मेदारियों को निभाना ! यही दूसरा धर्म स्वर्ग की सीडी है !
अब आप सरल भाषा मैं पूर्ण परिभाषा समझीये :
सनातन धर्म समय समय पर समाज की अवस्था देख कर, समाज के लिए जो नियम व धार्मिक दिशा निर्देश देता है, जिससे :
१) समाज की रक्षा हो सके,
२) समान अवसर के आधार पर पूरे हिंदू समाज के विकास, व् अवसर प्रदान करना !
३) समाज मैं आपसी प्रेम और भाईचारा बना रहे, और परस्पर सहयोग से हर समस्या से निबटने के लिए क्षमता विकसित हो सके,
४) धार्मिक प्रवचन मैं उचित अनुपात भावना और कर्म(भक्ति और कर्म) का सुनिश्चित करना, समाज की स्तिथी के अनुसार|
जैसे की अभी हाल की १००० वर्षों की गुलामी मैं समाज का स्वरुप एक अबोध बालक की तरह था, तो भक्ति भाग बढ़ा दिया गया, और यहाँ तक की कर्मवीर श्री कृष्ण को गोपियों के साथ रास रचाते दिखा दिया|
ठीक उसी तरह आज समाज की क्षमता है, युवा व्यवस्था है, हिंदू समाज की , और अब भक्ति भाग घटा कर कर्म का भाग बढ़ना था, जो की नहीं हुआ, और हिंदू समाज कर्महीन हो गया ..
यह अति आवश्यक है|
ध्यान रहे यह सब करते हुए इस बात का विशेष ध्यान रखना है की पर्यावर्हन की रक्षा हो सके और प्राकृतिक संसाधन का प्रयोग इस प्रकार हो की वे समाप्त न होने लगे|
धार्मिक व्यक्ति:
वह व्यक्ति जो की अपनी, और अपने परिवार की उनत्ती के लिए पूरी निष्ठा व् इमानदारी से कार्यरत रहता है , तथा अपने पूरे या बड़े परिवार , तथा जिस समाज, मोहल्लें, या सोसाइटी मैं वो रह रहा है, उसकी उनत्ति के लिये भी इमानदारी से कार्यरत रहता है वो धार्मिक व्यक्ति है! ऐसा करते हुए वो समाज मैं प्रगती भी कर सकता है व् घन अर्जित भी कर सकता है !
यहाँ यह स्पष्टीकरण आवश्यक है कि निष्ठा व् इमानदारी से कार्यरत रहने का यह भी आवश्यक मापदंड है कि वह व्यक्ति समस्त नकरात्मक सामाजिक बिंदुओं का भौतिक स्थर पर विरोध करेगा , जैसे कि भ्रष्टाचार, कमजोर वर्ग तथा स्त्रीयों पर अत्याचार, पर्यावाह्रण को दूषित करना या नष्ट करना, आदी, ! ऐसा व्यक्ति सत्यम शिवम सुन्दरम जैसी पवित्र शब्दावली मैं सत्यम है!
अध्यात्मिक व्यक्ति: धार्मिक व्यक्ति व् अध्यात्मिक व्यक्ति मैं अंतर केवल इतना ही है कि जहां धार्मिक व्यक्ति अपने धार्मिक प्रयास से धन अर्जित करता है, आद्यात्मिक व्यक्ति समाज को देनें मैं ज्यादा विष्वास रखता है न कि लेनें मैं! भौतिक संसार मैं यदी कोइ व्यक्ति देनें मैं ज्यादा विश्वास रखता हो न कि लेनें मैं, तो ऐसे व्यक्ति के लिये धन अर्जित करना कठिन हो जाता है! उसको जीवन मैं अपने इस अध्यात्म व्यवाहर के कारण अनेक कष्ट भोगने पड़ते हैं, समाज उसे असफल कहता है | परन्तु वोह अपनी ‘समाज को देनें मैं ज्यादा विश्वास रखता है’ वाली आदत सुधार नहीं पाता, वोह कष्ट झेलते हुए, असफल के ताने सुनते हुए, ना कभी साधू कहलाता है, ना ही धार्मिक व्यक्ति, तथा गुमनाम की जिन्दगी बिताता है |
अध्यात्मिक व्यक्ति सत्यम शिवम सुन्दरम जैसी पवित्र शब्दावली मैं शिवम है!
साधू या संत:यहाँ त्याग पूर्ण है ! ऐसे व्यक्ति ने जीवन के समस्त भौतिक सुख त्याग दिये हैं! उसके जीवन का एक ही लक्ष्य है; वोह की संसार को और अधिक सुन्दर बनाना ; ऐसा व्यक्ति हर जीवन को सुखी बनाना चाहता है ! वोह सत्यम शिवम सुन्दरम जैसी पवित्र शब्दावली मैं सुन्दरम है!
गुरु: प्राचीन काल मैं गुरु, पूर्ण शिक्षा देने के पश्यात शिष्य से गुरु दक्षिणा स्वीकार करता था! तथा इससे पूर्व वो समाज के सामने भौतिक मापदंडो से शिष्य का परिक्षण भी लेता था! अफ़सोस कि आज धर्म की पिछले ६४ वर्षों की उपलब्धियों के बारे मैं यदी भौतिक मापदंड से बात करें तो धर्म नकरात्मक या विपरीत दिशा मैं जाता हूआ पाएंगें !
इतिहास और श्री कृष्ण के अनुसार, गुरुकुल शिक्षा प्रणाली का सबसे अधिक दुरूपयोग द्रोणाचार्य ने करा| और तब से धर्मगुरु समाज का शोषण ही कर रहे हैं, जिसमें संस्कृत विद्वान अत्यंत घृणित और गैर व्यावसायिक तरीके से इनका साथ दे रहे हैं |
आजादी के बाद धार्मिक गुरुओं ने धर्म सिखाया या समाज को गुमराह करके स्वयं के लिये धन और शक्ति अर्जित करी, इसका आंकलन आप स्वंम करें!
You can also read:
No comments :
Post a Comment