जबभी किसी स्त्री पर कहीं भी अत्याचार होता है, समाज के कुछ लोग यह कह कर उसकी आलोचना करते हैं कि भगवान श्री राम ने भी सीता कि अग्नि परीक्षा ली थी और इसके बाद भी माता सीता का त्याग कर दिया !
यह अविवादित मान्यता है कि यदी कोइ राजा निष्पक्ष न्याय करता है, तथा कोइ भेदभाव या सत्ता मैं रहने से प्ररित नियम नहीं बनाता है, तथा समाज कल्याण ही उसका उद्देश होता है तो ऐसे राज्य मैं अकाल मृत्यु नहीं हो सकती, तथा माता पिता के जीवित रहते संतान की मृत्युं भी संभव नहीं होती| रामराज्य ऐसा ही राज्य था |
अब हम हिंदुओं की मानसिकता देखिये |
हम यह भी नहीं समझ पा रहें हैं कि एक साधारण मनुष्य भी ऐसे राज्य मैं अपनी पत्नी का त्याग बिना निष्पक्ष न्याय प्रक्रिया के नहीं कर सकता था| तो महारानी सीता का परित्याग बिना निष्पक्ष न्याय प्रक्रिया के संभव था?
और वोह भी जब, जब माता सीता ने पूरे सेना के सामने अपने चरित्र का प्रमाण अग्नि परीक्षा से दिया!
त्रेतायुग मैं महिलाओ पर अनेक अत्याचार होरहे थे, अग्निपरीक्षा जिसका प्रमाण है|
कृप्या शालीनता के मानको मैं बदलाव और हेरफेर करके अग्नि परीक्षा सेजो महिलाओं केसाथ बर्बरता होरही थी, उसको समझाने का प्रयास नकरें|उदहारण, स्पष्टीकरण:श्री राम ने असली सीता को अग्निदेव से वापस लेनेके लिए यहसब किया|समाज ऐसेसब स्पस्टीकरण अस्वीकार करता रहाहै, श्री राम और माता सीता ने अग्निपरीक्षा को अधर्म स्थापित करा |
और उसका कारण यह है कि ...
जब सुचना का अभाव था तो उस समय हिंदू समाज को संतुष्ट करने के लीये एक स्पष्टीकरण डाल दिया गया था, कि श्री राम ने सीता को चुपके से(ध्यान रहे चुपके से –बिना किसी को बताए; और जब लक्ष्मण भी नहीं थे) अग्नि देव को सौंप दिया और सीता कि छाया रख ली| उस स्पष्टीकरण से यह समझाने कि कोशिश करी गयी कि अग्नि परीक्षा का उद्देश असली सीता को वापस लाना था| जब सुचना का अभाव था, तो शायद यह स्पष्टीकरण समाज को संतुष्ट करने के लीये पर्याप्त था, लकिन आज नहीं ---हम सुचना युग मैं जी रहे हैं| यह भी बात गौर करने लायक है कि सीता को अग्नि देव को सौपा अकेले मैं, और अग्नि परीक्षा सब के सामने लीगयी|
इसी विवास्पद स्पष्टीकरण के कारण आज जब भी किसी स्त्री पर अत्याचार होता है, लोग, प्रेस. टीवी, मीडिया, यह कह कर भगवान श्री राम का अपमान करते हैं कि श्री राम ने भी तो सीता कि अग्नि परीक्षा ली थी|
ध्यान रहे स्पष्टीकरण इतिहास का तत्त्व नहीं होता है | आप अपने आसपास किसी से भी पूंछइये कि क्या रामायण इतिहास है? आपको येही उत्तर मिलेगा कि हाँ यह इतिहास है; शायद कुछ लोग यह भी कहें कि उस समय विमान भी थे|
अब यहाँ से आपकी लड़ाई शुरू होती है अपनी मानसिकता से>> क्या आप मैं इतनी शक्ती है कि आप रामायण को इतिहास मान सके?
ध्यान रहे इतिहास मानने के लिये आपको यह मानना पड़ेगा कि किसी के पास भी चमत्कारिक या आलोकिक शक्ती नहीं थी| कभी आप ने सोचा है कि अवतार और भगवान मैं क्या अंतर होना चाहीये, या है?
और हम हिंदूओं की मानसिकता देखिये कि हम एक छोटी सी बात नहीं समझ पा रहे हैं कि किसी छोटे से छोटे गांव के मुखिया के लीये भी यह संभव नहीं था न है, की वो अपनी पत्नी का त्याग बिना अग्नि परीक्षा के परिणाम को निरस्त करे बगैर कर सके | और हम विष्णु अवतार श्री राम की बात कर रहे हैं जिन्होंने रामराज्य के स्थापाना करी |
नहीं, बिलकुल नहीं! विष्णु अवतार, श्री राम, धर्म की स्थापना करने आये थे और धर्म की स्थापना उचित उद्धारण से ही हो सकता थी, इतनी छोटी से बात तो हम समझ ही सकते हैं|
प्रश्न यह है कि माता सीता और श्री राम इस उद्धरण से क्या धर्म स्तापित करना चाहते थे ?
प्रश्न हमारी मानसिकता का भी है जो कि इतनी शक्तिहीन है कि जो बात एक साधारण हिंदू को,,, नहीं एक गंवार हिंदू को भी समझ मैं आ जायेगी; वो अपनी कर्महीनता कि वजह से हम कह नहीं पाते |
अब आपको वो सब सोचना पड़ेगा जो कि हिंदू समाज के लीये लाभकारी है, तथा दुर्भागवश पिछले ६४ वर्षों मैं नहीं सोचा गया|
आप गर्व से पूरे समाज को यह कह पायेंगे कि श्री राम और माता सीता ने अग्नि परीक्षा को अधर्म घोषित करने के लीये व्यक्तिगत मानसिक यातनाये/कष्ट उठाये|
यह सर्वविदित है कि सत्ययुग और त्रेता युग मैं कमजोर वर्ग और स्त्रीओं पर अत्याधिक अत्याचार होए हैं जिसके कारण भगवान को अनेक बार अवतार लेना पड़ा |
यह बात भी समझने लायक है कि जिस युग मैं जितने ज्यादा अवतार होते हैं उस युग मैं अधर्म और अत्याचार अधिक होता है क्यूँकी भगवान तो अवतार तभी लेतें हैं जब अधर्म और अत्याचार को समाप्त करने का कोइ और विकल्प बचता नहीं है |
इसी परीपेक्ष मैं जब हिन्दूओं पर होए पिछले १००० वर्ष की गुलामी मैं जुल्म, अत्याचार, अमान्विये व्यवाहर के बारे मैं सोचेंगे तो आपको एक मापदंड का आभास होगा कि कितना जुल्म, अत्याचार, अमान्विये व्यवाहर पर्याप्त है भगवान को मनुष्य रूप मैं अवतार लेन के लीये| यह निशित है कि पिछले १००० वर्ष की गुलामी मैं जुल्म, अत्याचार, अमान्विये व्यवाहर पर्याप्त नहीं था भगवान को मनुष्य रूप मैं अवतार लेन के लीये|
रामायण यदी इतिहास है तो बहुत स्पष्ट रूप से आपको यह दिख जाएगा कि :
१. राम के जनम से पूर्व स्त्री जाती पर अत्याधिक अत्याचार हो रहे थे, जिसमे धार्मिक लोग का भी हाथ था|
२. अग्नि परीक्षा भी एक ऐसा अत्याचार था, जो कि उन मजबूर और लाचार स्त्रीयों पर करा जाता था, जिनको की जबरदस्ती अगवा कर लिया जाता था
ऐसे मैं यदी हम रामायण को इतिहास मानते हैं और श्री राम को अवतार, तो यह भी मानना पडेगा कि श्री राम और माता सीता ने अग्नि परीक्षा को अधर्म घोषित करने के लीये अवतार लिया था| इस सच को स्वीकार करते ही स्र्तीयों पर अत्याचार कम हो जायेंगे|
इसके लीये आपको विशेष प्रयास भी नहीं करने न तो किसी तत्त्व को तोड़ मरोड़ कर पेश करना है>>आपको केवल सच और इमानदारी का सहारा लेना है|
श्री राम ने यदी सच मैं कभी भी राम राज्य की स्थापना करी थी तो यह बात बिलकुल तय है कि वोह किसी के साथ अन्याय नहीं होने दे सकते थे ---यहाँ तक कि अपनी पत्नी के साथ भी >>श्री राम ने सीता का त्याग एक निष्पक्ष न्याय प्रक्रिया के बाद करा जिसमे सीता को अपनी बात कहने का मौका मिला तथा वो अल्पसंख्यक लोग जो सीता को महारानी के रूप मैं नहीं देखना चाहते थे, उनको भी अपनी बात कहने का मौका मिला|
दुर्भाग्य से सारे तत्त्व सीता के विरुद्ध थे, तथा खाली एक ठोस तत्त्व सीता कि सहाय्र्ता कर रहा था और वोह था “सब के सामने सीता का सफल अग्नि परीक्षा”
यह भी घोषणा करी कि भविष्य मैं अग्नी परीक्षा को अधर्म माना जायेगा|
आप चाहें तो एक बार फिर से शांती से सोच लें कि “क्या श्री राम के लीये सीता का त्याग, बिना अग्नि परीक्षा के परिणाम को निरस्त करे बगैर संभव था?”
यदी सारे भौतिक तत्त्व सीता के विरुद्ध थे तो चाहे आज की न्याय प्रक्रिया हो या श्री राम के समय की सीता का त्याग तो निश्चित था | हमें अब यह भी समझ मैं आ जायेगा कि अग्नि परीक्षा जैसा विस्फोटिक प्रसंग रामायण का भाग क्यों बना |
अब हम अधर्म और पाप से भी बच पायेंगे और यह भी समाज को समझा सकेंगें कि श्री राम और माता सीता ने अग्नि परीक्षा को अधर्म घोषित करने के लीये व्यक्तिगत मानसिक यातनाये/कष्ट उठाये|
हमसब के लीये अब यह संकल्प लेना आसान भी है और धर्मअनुसार जरूरी भी कि अब हम श्री राम की आलोचना व् अपमान मिथ्या कारणों से नहीं होने देंगे|
2 comments :
Pehli baat to yet spasht kar diya jana chahiye ki Shri Ram dwara Sita ki Agni Pariksha kisi prakar ka anyay nahi thi. Is baat ko samajhne ke 2 pehlu ho sakte hein. Par jis bhi pehlu se aap samajhna chahen use dusre pehlu se mix mat karen.
Mera maanna hai ki Shri Ram Agnidev ke samaksha maryada sthapit karne ke liye he Sita Mata se aisa kaha tha. Unke apne man me Sita ji ke prati koi bhi sandeh nahi tha. Fir is vishay me tark ki avashyakta he kahan hai.
Aaj jitne bhi log Shri Ram ki maryada par sawal uthate hein, unhe ye sochna chahiye ki Shri Ram jaante the ki logon ka munh kisi bhi tarah se band nahi kiya ja sakta. Isiliye mehez praja me kisi tarah ka koi apvad na rahe isiliye unhone Sita Mata se aisa karne ko kaha.
Aap ise is tarah se bhi samajh sakte hein ki yadi apki apni bahu-beti ko gunde utha le jaayen aur kai dino tak apne paas rakhkar use mukta kar den. Bhale he unhone uske saath kuchh bhi galat na kiya ho aap to us ladki ki baat par vishwas karke uski baat man lenge ki uske saath kuchh galat nahi hua. Par aap samaj ka munh kaise band karenge???
Isi tarah Shri Ram ki aalochana karne wala samaj swayam apni he aalochana kar raha hai.
Bonny Ji,
आपके कमेंट्स के लिए धन्यवाद !
यदि आप “ सीता का त्याग राम ने क्यूँ करा... सही तथ्य” , जिसका लिंक ऊपर पोस्ट मैं दिया हुआ है, को पढ़े, तो आप पायेंगे की सीता की अग्नि परीक्षा को लेकर मेरे विचार और आपके विचार मैं कोइ विशेष मतभेद नहीं है, मतभेद है तो सिर्फ इतना कि, मेरा मानना है की इतिहास मैं किसी पास अलोकिक और चमत्कारिक शक्ति होने कि कोइ संभावना नहीं है !
इस संधर्ब में, त्रेता युग के विज्ञान का उल्लेख करना चाहता हूं, जब विमान तक थे, लेकिन आज के सूचना युग में हमें उसका लाभ नहीं मिल पा रहा है, क्यूँकी अलोकिक और चमत्कारिक शक्ति की मिथ्या चादर बना कर उस विज्ञान को ढक दिया गया है !
इसलिए जब अलोकिक और चमत्कारिक शक्ति किसी चरित्र के पास नहीं हैं तो अग्नि देव वाला स्पष्टिकरण मान्य नहीं है !
श्री राम ने सीता का त्याग करते समय अग्नि परीक्षा को अधर्म घोषित करा ! आप सोच कर देख लें , और कोइ तरीका श्री राम के पास था भी नहीं सीता का त्याग करने के लिए !
फैसला आपको करना है कि धर्म प्रचार जो हो रहा है, उसमें हिंदू समाज के हित की बात कही जायेगी, या हिंदू समाज को और भावनात्मक बना कर उसका शोषण हो सके, ऐसी बात बताई जायेगी !
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