Thursday, October 27, 2011

आवश्यकता है हिंदुओं की मानसिकता बदलने की, ताकी वो बदलाव और सुधार ला सकें

भौतिक(PHYSICAL) धर्म के भाग को संतों ने गुलामी के समय सोच समझ कर घटाया था, 
क्यूँकी 
उस समय जिस माहोल मैं हिंदू, किसी तरह से जी रहा था, उसके लीये भौतिक(PHYSICAL) धर्म निभाना संभव नहीं था |
हिन्दुस्तान मैं जो भी समस्याएँ हैं वो इस लीये हैं क्यूंकि हिंदू पूरी तरह से कर्महीन जीवन बिता रहा है; इस मानसिकता को बदलना होगा | यह मानसिकता १००० वर्ष की गुलामी की देंन है | आजादी के बाद इसे बदलने का कोइ प्रयास नहीं करा गया |

निम्लिखित कुछ PHYSICAL VERIFIABLE PARAMETERS हैं जो कि धर्म की सफलता/असफलता समाज मैं दर्शाते है:-

1. Female foeticide
2. Lack of education for girls,
3. Dowry deaths, 
4. Suicides among farmers,
5. Increase in court cases among relatives,
6. Corruption, mistrust and discontent

जब की बात यह है कि इन ६७ वर्ष मैं हिंदुओं का व्वय धर्म और तथाकथित धर्म के कार्यों मैं जबरदस्त बढा है,
लकिन;
उसका कोइ भी लाभ हिंदू समाज मैं रहने वालों को नहीं मिल पा रहा है | सरकारी आकडे बताते हैं कि गरीबी रेखा से नीचे रहने वालो कि संख्या, आजादी के बाद बढ़ी है |
हरेक धर्म/RELIGION के ३ प्रमुख भाग होते हैं:
{निचे दिए होए पहले दो भावनात्मक(EMOTIONAL) तरीकें हैं धर्म से जुड़ने के; तथा तीसरा
भौतिक (PHYSICAL) }

१. पूजा या भक्ती;
२. विधी, जैसे कि अगरबत्ती जलाना, फूल अर्पण करना, हवनं ..
३. धर्म, या आपकी धर्मानुसार जिम्मेदारियां या कर्म जिसे की PHYSICALLY करना है
**३ के उद्धारण (धर्म, या आपकी धर्मानुसार जिम्मेदारियां)==&gt
*हरे पेड को काटना पाप है,*यह हमारा प्रमुख धर्म है, कि हमारे परिवार मैं तथा जिस समाज मैं हम रह रहे हैं, उसकी उनत्ती के लीये प्रयास करें; इसीलीये जिस छेत्र मैं जो रह रहा है वहाँ के मंदिर मैं नियमित तोर से जाना अनिवार्य माना गया है |
*शादी पर जब हमसब दावत का आनंद लेते हैं तो वह एक संकल्प है कि नवदंपती की समाज हर संभव मदद करेगा; यही सोच नवजात शिशु के पैदा होने पर भी है |
          *अपने स्वंम के, अपने परिवार और अपने समाज की उन्नत्ति के लिए प्रयत्नशील रहें!

ऊपर दिए गए पहले २ भावनात्मक (EMOTIONAL) तरीके हैं धर्म से जुड़ने के, तो तीसरा भौतिक(PHYSICAL) .|

इस भौतिक(PHYSICAL) धर्म के भाग को संतों ने गुलामी के समय सोच समझ कर घटाया था, क्यूँकी उस समय जिस माहोल मैं हिंदू, किसी तरह से जी रहा था, उसके लीये भौतिक(PHYSICAL) धर्म निभाना संभव नहीं था |

उस समय कर्मवीर श्री कृष्ण को एक बालगोपाल के रूप मैं सूरदास जी ने प्रस्तुत करा, जो कि गोपियों के साथ रास रचाते हैं | तुलसीदास जी ने हिंदी मैं रामचरितमानस की रचना करी और कर्म से हट कर भक्ती को प्रमुखता दी | माहाऋषि वाल्मिकी द्वारा दिये गयी इतिहासिक तत्वों पर भी तुलसीदास जी ने समझौता करा |

अनेक उद्धरण दिए जा सकते हैं कि किस तरह से धर्म से कर्म घटा कर भावनात्मक भाग बढ़ा दिया गया था | अफ़सोस इस बात का है कि आजादी के बाद उसे ठीक नहीं करा गया, बलिक भावनात्मक भाग और बढ़ा दिया गया है |

ध्यान रहे कि कर्म का भाग कम करके और भावना का भाग बढाने का गुलामी के समय संतो का उद्धेश यह था कि किसी तरह से उस घोर मुसीबत के समय ज्यादा से ज्यादा हिंदू धर्म परिवर्तन से बच सके | इसमें संतो को कामयाबी भी मिली| ज्यादातर हिंदू बाहर से आये हुए हमलावरों, जो अब उन पर राज्य कर रहे थे, का कठोर दवाव सह कर भी धर्म परिवर्तन से बच पाए| कर्म कम करके कर्महीनता बढाने का संतो का प्रयास, उस समय, हिंदू समाज को धर्म परिवर्तन से बचाने मैं सफल रहा |
यह हमारी कर्महीनता का मुख्य कारण है |

ज़ाहिर है आजादी के बाद धर्म मैं कोइ बदलाव लाने का प्रयास नहीं करा गया | कर्म का जो भाग गुलामी के समय हटा दिया गया था, संतो द्वारा, उसे वापस धर्म मैं लाने का कोइ प्रयास नहीं करा गया | उलटा भावनात्मक भाग, क्यूँकी समाज को ज्यादा लुभाता है, उसे और बढ़ा दिया गया | इसका उद्देश कपट से ही लकिन समाज को भावनात्मक बना कर रखना था, ताकि धर्मगुरु इनको मनचाहे तरीके से ठग से | इस ठगाई के कार्य मैं पूरे भारत के संस्कृत विद्वानों ने धर्मगुरुओ का पूरा सहयोग दिया |

कर्महीनता और बढ़ गयी, और हिंदू समाज को लोकतंत्र मैं रहने के कोइ लाभ नहीं मिल पा रहा है | गरीबी और बढ़ गयी |

इसे बदलना है; उसके बिना मैं निसंकोच कह सकता हूं कि हम लोग गुलामी की तरफ दुबारा बढ़ रहे हैं |
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ध्यान से पढ़े  :
सनातन धर्म मैं बहुत ही आसान तरीका है कर्म भाग को बढाने का :-

जब समाज कम विकसित होता है, और विज्ञानिक विकास नहीं होता है, या आरंभिक स्तर पर हो, तब प्राय अवतार पर मिथ्या की चादर लपेट दी जाती है, जिसमें अवतार को अलोकिक और चमर्त्कारिक शक्ति से परिपूर्ण दिखा दिया जाता है, ........
और ... >
चुकी उस समाज मैं प्राय अवतार के समय के विकास को समझने की क्षमता भी नहीं होती है, तो प्रमुख भौतिक धर्म जो की बिना चमत्कारिक शक्तियुओं के ही समझे जा सकते हैं, उन धर्म को नहीं बताया जाता, और समाज को भक्ति प्रमुख बना कर छोड दिया जाता है|
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परन्तु.......
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विकसित , शिक्षित समाज के लिए, 
बिना अलोकिक शक्ती और चमत्कारिक शक्ती के , जैसा की आजादी के बाद के समाज के साथ होना था, 

READ CAREFULLY ::
The history of Avatars with supernatural powers will increase the Emotional content of religion, while history of Avatars WITHOUT such powers will reduce the emotional content of religion and increase the Karmic content. 

INCREASE IN KARMIC CONTENT OF RELIGION WILL MAKE SOCIETY LESS PASSIVE, AND ABILITY TO FIGHT PROBLEMS (like corruption, atrocities) IN THE SOCIETY IMPROVES.

This FACT can be ascertained from any Social Scientist/expert

परन्तु नहीं हुआ| 

1 comment :

Unknown said...

सही में ऐसा करने की जरूरत है

ABOUT ME:

A Consulting Engineer, operating from Mumbai, involved in financial and project consultancy; also involved in revival of sick establishments.

ABOUT MY BLOG: One has to accept that Hindus, though, highly religious, are not getting desired result as a society. Female feticide, lack of education for girls, dowry deaths, suicides among farmers, increase in court cases among relatives, corruption, mistrust and discontent, are all physical parameters to measure the effectiveness or success/failure of RELIGION, in a society. And all this, despite the fact, that spending on religion, by Hindus, has increased drastically after the advent of multiple TV channels. There is serious problem of attitude of every individual which need to be corrected. Revival of Hindu religion, perhaps, is the only way forward.

I am writing how problems, faced by Indian people can be sorted out by revival of Hindu Religion.