रक्तबीज एक श्रृंखलित रसायन प्रतिक्रिया(chain chemical reaction) को कहा गया है, जिसमें श्रंखला बनती चली जाती है | ऐसा क्या हो रहा था, मैं अभी इसका अनुमान नहीं लगा पा रहा हूँ, निवेदन है, और EARTH SCIENCE से जुड़े हुए लोगो से कि इसके बारे मैं अनुमान लगाएं | विश्वास करीये यही आपका धर्म है, जो संस्कृत विद्वान समाज का शोषण हो सके इसलिए नहीं कर रहे हैं, लकिन आपको करना है| हाँ, पुराणों के अनुसार, इस असुरी श्रंखला को रोका गया और फिर समाप्त करा गया |
माता पार्वती/माता सति अति सुंदर और सुशील हैं, लकिन उनका एक रूप अत्यंत विकराल और भयंकर है, और वोह है महाकाली का रूप | इस रूप मैं वे अत्यंत शक्तिशाली असुर रक्तबीज का संघार करती हैं | सुर और असुर के बीच मैं बैर जग विदित है; जहाँ सुर पृथ्वी और श्रृष्टि का सुचारू रूप से संचालन पर केन्द्रित रहते हैं, असुर सदेव शक्ति अर्जत करने मैं और उसके दुरूपयोग मैं | स्वाभाविक है कि बैर है और रहेगा|
यह भी समझ लें कि माता पार्वती और माता सति दोनों ही आदि शक्ति का स्वरुप हैं, शिव की अर्धांगनी हैं, और सिर्फ पृथ्वी के विकास को समय सीमा के अंतर्गत समझने के लिए नामो का अलग प्रयोग होता है|
सबसे पहले यह घटना कब हुई इसपर चर्चा करलें |
पृथ्वी श्रृष्टि विहीन हो गयी थी, सति के देह त्यागने के उपरान्त | असुर सुरों पर हावी होते जा रहे थे, जिसका परिणाम था, तरह तरह की प्राकृतिक विपदा|
मात्र रसायन शास्त्र से यदि समझना है तो यह भी समझ लें की सुर वास्तव मैं पृथ्वी पर हर वास्तु मैं रसायनों के बीच का सामंजस्य है, बिगड़ जाए अगर तो प्राकृतिक विपदा होती है | उद्धारण पृथ्वी के अंदर अनेक तरह की रसायन क्रिया होती रहती है, कहीं कहीं इतनी अधिक गर्मी है कि सारे पधार्थ पिघल कर ज्वालामुखी बन कर बाहर निकलते है, कहीं अंदर की अधिक हलचल से भूचाल आ जाता है, तो यही है असुर; अधिक असुर होंगे तो अधिक विपदा |
मात्र रसायन शास्त्र से यदि समझना है तो यह भी समझ लें की सुर वास्तव मैं पृथ्वी पर हर वास्तु मैं रसायनों के बीच का सामंजस्य है, बिगड़ जाए अगर तो प्राकृतिक विपदा होती है | उद्धारण पृथ्वी के अंदर अनेक तरह की रसायन क्रिया होती रहती है, कहीं कहीं इतनी अधिक गर्मी है कि सारे पधार्थ पिघल कर ज्वालामुखी बन कर बाहर निकलते है, कहीं अंदर की अधिक हलचल से भूचाल आ जाता है, तो यही है असुर; अधिक असुर होंगे तो अधिक विपदा |
रक्तबीज एक श्रृंखलित रसायन प्रतिक्रिया(chain chemical reaction) को कहा गया है, जिसमें श्रंखला बनती चली जाती है | ऐसा क्या हो रहा था, मैं अभी इसका अनुमान नहीं लगा पा रहा हूँ, निवेदन है, और EARTH SCIENCE से जुड़े हुए लोगो से कि इसके बारे मैं अनुमान लगाएं | विश्वास करीये यही आपका धर्म है, जो संस्कृत विद्वान समाज का शोषण हो सके इसलिए नहीं कर रहे हैं, लकिन आपको करना है| हाँ, पुराणों के अनुसार, इस असुरी श्रंखला को रोका गया और फिर समाप्त करा गया |
और फिर पुराणों की माने तो माता, यह सब करते हुए, क्रोधित होकर, सिर्फ और सिर्फ असुरो का विनाश मैं लग गयी| वे भूल गयी की श्रृष्टि के संचालन के लिए और सुर की स्थिरता के लिए भी असुरो की आवश्यकता है | तब इश्वर शिव ने माता पार्वती को असुरो का और अधिक विनाश करने से रोका....विश्वास करीये, यह एक खगोलिक विषय भी है |
माता पार्वती प्रकृति हैं....और इश्वर शिव ने उनको मजबूर करा कि अब और नाश मत करो......
इश्वर की इच्छा थी कि माता यह समझें कि प्रकृति मैं सुर और असुर का सामंजस्य आवश्यक है......तो असुर रहने चाहीये,....नहीं तो श्रृष्टि आगे नहीं बढ़ सकती....यह विज्ञानिक दृष्टिकोण से भी तालमेल रखता है...
कैसे कराया होगा इश्वर ने माता को इस बात का अहसास....?
क्यूँकी कहानी किस्से से बाहर निकल कर देखें तो इश्वर का काम करने का ढंग अनोखा होता है...
क्या कोइ उल्का पृथ्वी पर आ कर गिरा,..और कोडित पुराण मैं इसका उल्लेख इस प्रकार हो गया..?
यह काम संस्कृत विद्वानों का है ,..जो धर्मगुरु की ठगाई मैं साथ दे रहे हैं,..समाज को विज्ञान जो पुराण मैं छिपा है, वोह नहीं बताना चाहते ...!
इस विषय पर भी मुझ जैसे अनपढ़ को लिखना पड़ा ...क्यूँकी समाज को बताना जरुरी है....इस खगोलिक विषय पर !
अब आगे इस विषय का विस्तार आपसब युवा हिन्दू बुद्धिजीवो पर है |यह भी पढ़ें:
सनातन श्रेष्ट सिद्ध धर्म है क्यूँकी सुर असुर के सामंजस्य को स्वीकारता है
No comments:
Post a Comment