अनेक बार आपने आँख मैं पट्टी बांधे और तराजू लिए हुए न्यायदेवी की तस्वीर देखी होगी, लकिन यह न्यायदेवी कौन है, कोइ नहीं बताता |
यूरोप के कुछ देशो मैं इस विषय पर कथाएँ हैं, जो स्वाभाविक भी है , लकिन फिर से इसका मर्म और भेद प्राचीनता मैं कही लुप्त हो गया है |
क्या मानक होने चाहीये कि माता सीता या और कोइ और देवी न्यायदेवी कहलाएं और ‘क़ानून अँधा होता है’ इसको दर्शाने के लिए आँख मैं पट्टी बांधे और दुसरे हाथ मैं तराजू उठाए की न्याय में भी, तराजू की तरह, एकदम उचित हिसाब होगा |
प्रश्न कोइ मुश्किल नहीं है, मानक तो ‘आँख मैं पट्टी बांधे और तराजू लिए हुए’ न्यायदेवी ही निर्धारित कर दे रही हैं , जिसको यहाँ संशिप्त मैं बता रहा हूँ | आँख मैं पट्टी बंधे हुए का अर्थ एकदम साफ़ है , न्याय वही देखेगा, जो की उसके सामने प्रस्तुत करा जाएगा | न्यायधीश अपनी व्यक्तिगत सूचना और भावनाओं का प्रयोग बिलकुल नहीं करेंगे | और तराजू न्याय की व्यवस्था मैं न्याय देते समय समानता और निष्पक्षता दर्शाती है |
माता सीता का अपहरण रावण द्वारा हुआ था, स्वंम जटायु ने यह बात श्री राम को बताई थी, फिर सुग्रीव ने भी बताई थी, और वैसे भी श्री विष्णु के अवतार श्री राम और माँ लक्ष्मी की अवतार माता सीता कोइ अलग तो हैं नहीं , उनको सब मालूम था, और है |
अब संशिप्त मैं पूरी कथा इस संधर्भ मैं कि माता सीता ही न्यायदेवी हैं:-
सीता अपहरण उपरान्त राम रावन युद्ध हुआ, जिसमें राम विजई हुए, और फिर उस समय की अपहरण हुई स्त्री के लिए धार्मिक मर्यादा/नियम के अनुसार सीता ने अग्नि परीक्षा दी, सफल हुई, और फिर अयोध्या पहुच कर महारानी बनी|
ब्राह्मणों द्वारा राम का विरोध हो रहा था, वे जनता को सीता के विरुद्ध भड़का रहे थे, यह कह कर कि सीता का अपहरण तो हुआ ही नहीं था, वोह तो स्वेच्छा से रावण के साथ गयी थी | अंत मैं राम ने अपनी अध्यक्षता मैं एक न्याय पीठ का गठन करा जिसमें सीता के वकीलों को उसकी बात कहने का मौका मिलेगा, और जनता को अपनी |
पढ़ें: सीता अपहरण के पीछे रावण की कूटनीति
इस न्यायपीठ के सामने सीता कोइ भी ऐसा प्रमाण नहीं प्रस्तुत कर पाई जो यह प्रमाणित करे कि सीता स्वेच्छा से रावण के साथ नहीं गयी थी |ध्यान दे राम और सीता दोनों एक दुसरे को बहुत प्यार करते थे, पूर्ण विश्वास था, और दोनों को यह भी व्यक्तिगत सूचना के आधार पर मालूम था कि सीता का अपहरण हुआ था |लकिन यहाँ ‘अंधे क़ानून’ की बात हो रही है , और माता सीता न्याय देवी क्यूँ है, इस विषय पर चर्चा है |
सीता की और से, अपनी पवित्रता के प्रमाण मैं, धार्मिक मान्यता प्राप्त अग्नि परीक्षा का उल्लेख करा गया जो सबके सामने हुआ था, लकिन राम ने अग्नि परीक्षा के परिणाम को निरस्त कर दिया यह कह कर की सफल अग्नि परीक्षा के लिए विशेष कौशल की आवश्यकता होती है, ना की पवित्रता की, तथा भविष्य मैं अग्नि परीक्षा को अधर्म और दंडिनीय अपराध घोषित कर दिया |
चुकी न्यायपीठ के समक्ष सीता कोइ भी भौतिक प्रमाण अपने अपहरण का नहीं प्रस्तुत कर पाई, राम ने सीता को त्याग दिया, तथा उनको स्वतंत्र कर दिया कि वे जहाँ चाहें जाए और रहें |
पढ़ें: सीता का त्याग राम ने क्यूँ करा... सही तथ्य
तो यह है सबसे बड़ा प्रमाण कि क़ानून अँधा होता है| श्री राम माता सीता पर पूरा विश्वास करते थे, उनको मालूम था कि अपहरण हुआ है, लकिन यह धर्म भी स्थापित करना आवश्यक था कि ‘क़ानून अँधा होता है’|ध्यान रहे धार्मिक मान्यता प्राप्त अग्नि परीक्षा को निरस्त करना और न्याय मूर्ति के लिए सिद्धांत कि ‘‘क़ानून अँधा होता है’, दोनों आवश्यक धर्म है , वोह बात दूसरी है कि संस्कृत विद्वान और धर्म गुरुजनों ने निजी स्वार्थ और समाज शोषण के लिए सब कुछ गलत बता दिया |
आप बत्ताएं कि क्या माता सीता के अतिरिक्त और कोइ देवी ने इतनी स्पष्टा से न्याय देवी के आचरण को परिभाषित करा है?
माता सीता को त्यागने के बाद श्री राम के यह शब्द कोइ नहीं भूल सकता:
"इस बात का संतोष अवश्य है कि अग्नि परीक्षा को एक गंभीर आपराधिक कृत्य घोषित करके, इस एक ऐतिहासिक फैसले के बाद समाज मैं महिलाओं को कुछ राहत होई | लेंकिन इस फैसले को लेने में व्यक्तिगत अंदरूनी संघर्ष और निर्दोष सीता को त्यागने का कष्ट भी मेरे हिस्से आया | सीता निर्दोष है ये में व्यक्तिगत सूचना के आधार पर कह रहाहूं !
"साक्ष्य विधि को भौतिक तथ्यों पर निर्भर और संतुलित करना आवश्यक था | निर्णय, महत्वपूर्ण इसलिए भी है कि भविष्य मैं महिला के अपहरण से संबंधित साक्ष्य, दूसरों से प्रभावित तो नहीं है, को सिद्धांत मान लिया गया है |
"क्रूर धार्मिक कानून अग्नि परीक्षा अब अधर्म और गंभीर आपराधिक कृत्य घोषित कर दिया गया है ! ढेरो महिलाओ के अपहरण सम्बंधित मामले पर अब भौतिक तथ्यों पर ही निर्णय होगा, बिना धार्मिक हस्ताषेप के, जिससे महिलाओं को राहत मिलेगी!
"यह सब निर्दोष महारानी सीता के समाज हित मैं त्याग के कारण संभव हुआ है, जिसे मुझे त्यागना पड़ा क्यूंकि वे कोइ प्रमाण प्रस्तुत नहीं कर पाई कि उनका अपहरण हुआ था| कानून अब अँधा है, और आगे भी रहेगा |
"क्यूँ ना सिता का चित्रण न्यायदेवी के रूप मैं हो, जिनकी आँखों मैं पट्टी बंधी हुई है ?" श्री राम ने पुछा!
हम सब पूरी निष्ठां से श्री राम और माता सीता को इश्वर अवतार मानते हैं, और यह भी जानते हैं कि व्यक्तिगत कष्ट उठा कर वे दोनों समाज में सुधार करने के लिये अवतरित होए थे ! श्री राम और माता सीता ने घोर कष्ट सहे ताकी समाज को यह समझा सकें कि अग्नि परीक्षा एक क्रूर अपराध और अधर्म है !
No comments :
Post a Comment