इस प्रश्न का संतोषजनक उत्तर तो समाज को चाहीये कि एक के बाद दोसरे अवतार को क्यूँ अवतरित होना पड़ा| लकिन सबसे पहले यह समझ लें कि अवतार आते क्यूँ हैं?
जब ज़ुल्म और अत्याचार हद से ज्यादा हो जाय, और समाज विज्ञानिक दृष्टिकोण से भी विकसित हो तो मनुष्य रूप मैं अवतार अपना पूरा जीवन समाज कि दिशा परिवर्तन मैं लगा देते हैं , जिसके उद्धारण, परशुराम, राम और कृष्ण हैं|
श्री राम के समय मैं जुल्म कितना हो रहा होगा, इसका अंदाजा आप इस बात से लगा सकते हैं, कि अभी हाल के १००० साल की गुलामी मैं जब हमलावर लूट मार मचा रहे थे, जबरदस्ती धर्म परिवर्तन कर रहे थे, औरतो को सड़क पर बेईज्ज़त कर रहे थे, मासूम बच्चो को मार रहे थे, तब इश्वर अवतरित नहीं हुए |
और इश्वर तो निष्पक्ष हैं , तो फिर आप सोचीये कितना ज़ुल्म त्रेतायुग मैं हो रहा होगा कि एक के बाद दुसरे अवतार को आना पड़ा !
समस्या यह भी है कि आज के समाज को गुलाम बना कर रखना संस्कृत विद्वानों और हिन्दू धर्म गुरुजनों का उद्देश है, तो इसलिए सही सूचना समाज को किसी हाल मैं नहीं देंगे | यहाँ तक झूट बोला जा रहा है कि त्रेतायुग के सत्यवान और आदर्श समाज पर विशेष कृपा करने के लिए इश्वर बार बार अवतरित हुए, जो कि पूरी तरह से गलत है, निराधार है, इतिहास तक के विरुद्ध है |
1. गौतम ऋषि ने अपनी पत्नी अहेलिया को बिना कारण, मात्र शक के कारण मार डाला, और कोडित ग्रंथो मैं यह छपा है कि श्राप से पत्थर बना दिया| इन समाज विरोधी संस्कृत विद्वानों को कोइ यह समझाए कि इतिहास मैं किसी के पास अलोकिक शक्ति नहीं होती |
2. गौतम ऋषि की पुत्री अनजनी के वानर राजा केसरी से सम्न्बंध हो गए, विवाह हुआ कि नहीं , इतिहास इस पर प्रकाश नहीं डाल रहा, और गौतम ऋषि ने अनजनी को पर्वतो मैं रहने के लिए भेज दिया, जहाँ से शिशु हनुमान को वायु मार्ग से केसरी के पास जाना पड़ा , और उनको हमलोग पवनपुत्र कहने लगे| यही कारण था कि हनुमान केसरी राजा कि संतान हो कर भी राज्य के उत्तराधिकारी नहीं बन पाए, सदा खामोश रहते थे, बाल ब्रह्मचारी बन गए |
3. परशुराम के पिता ने तो हद कर दी |वे धार्मिक गुरु थे, उन्होंने अपने पुत्रो को आदेश दे डाला कि वे अपनी माता रेणुका को मार दें | पंडित और महाऋषि पिता जमदग्नि के स्वम के जन्म में कुछ हेरफेर हुई थी, जिसकी गहराई मैं ना जाए तो अच्छा है |
4. कुछ कथा बताती है कि सीता राजा जनक को, एक शाही परंपरागत हल चलाते समय, खेत मैं मिली; कन्याओं कि क्या दुर्दशा थी यह इसका प्रमाण है | कहानी किस्से छोड़ दीजिये, जो सत्य है उसको स्वीकार करीये; कन्या को जन्म के बाद फेक दिया गया ! इतिहास यह भी बताता है कि माता सीता ने गौतम ऋषि से, जो कि महाराज जनक के राज पुरोहित थे, उनसे शिक्षा लेने से इनकार कर दिया था, क्यूंकि उन्होंने अपनी पत्नी अहेलिया को मार डाला था |
5. रावण से युद्ध मैं विजय उपरान्त श्री राम को सीता की अग्नि परीक्षा सबके सामने लेनी पडी क्यूँकी अग्नि परीक्षा को उस समय धार्मिक मान्यता प्राप्त थी, और अगवा स्त्री को समाज मैं वापस जाने के लिए और कोइ धार्मिक विकल्प नहीं था |
श्री राम, माता सीता को अयोध्या की महारानी बनाना चाहते थे , तो, आप ही बताएं उनके पास क्या विकल्प था? यह बात इसलिए भी विशेष महत्त्व रखती है क्यूंकि अयोध्या का ब्राह्मण समाज उस समय श्री राम और राज्य परिवार के विरुद्ध था , जिसका प्रमाण है |
फिर से ==> ब्राह्मण समाज उस समय श्री राम और राज्य परिवार के विरुद्ध था , जिसका प्रमाण है |
इसका सबसे बड़ा प्रमाण यह है कि विजय उपरान्त अयोध्या पहुचने पर राम के राजतिलक के लिए अयोध्या के ब्राह्मणों ने मना कर दिया तब बनारस से ब्राह्मण बुलाने पड़े थे, तथा सीता के विरुद्ध अयोध्या मैं उल्टी सीधी बाते भी ब्राह्मणों ने करी, अन्य जातियों को भी उकसाया, जिसके पश्च्यात सीता का त्याग हुआ | और तभी से बनारस के ब्राह्मण सरयू पारी ब्राह्मण कहलाने लगे; इतनी बात तो आप आज भी पूर्वी उत्तर प्रदेश मैं किसी भी बुजुर्ग ब्राह्मण से मालूम कर सकते हैं |
श्री राम, माता सीता को अयोध्या की महारानी बनाना चाहते थे , तो, आप ही बताएं उनके पास क्या विकल्प था? यह बात इसलिए भी विशेष महत्त्व रखती है क्यूंकि अयोध्या का ब्राह्मण समाज उस समय श्री राम और राज्य परिवार के विरुद्ध था , जिसका प्रमाण है |
फिर से ==> ब्राह्मण समाज उस समय श्री राम और राज्य परिवार के विरुद्ध था , जिसका प्रमाण है |
6. अयोध्या का धार्मिक समाज जनता को सीता के विरुद्ध उकसाता रहा, और अंत मैं श्री राम को एक निष्पक्ष न्यायपीठ का गठन करना पड़ा, जिसमें सीता अपना बचाव नहीं कर पाई | सीता अग्नि परीक्षा के अतिरिक्त कोइ प्रमाण अपनी निष्ठां का नहीं दे पाई, और श्री राम और माता सीता तो अग्नि परीक्षा जैसे क्रूर कर्म को अधर्म घोषित करना चाहते थे, तो राजा राम ने अग्नि परीक्षा को अधर्म घोषित कर दिया और श्री राम को सीता को त्यागना पड़ा ! पढ़ें: सीता का त्याग राम ने क्यूँ करा... सही तथ्य
उपरोक्त से यह स्पष्ट है कि स्त्री जाति के विरुद्ध धर्म ने ऐसा जाल बुन रखा था, कि स्त्री को मारा जा सकता था, शोषण तो होही सकता था, और उसके पास कोइ विकल्प भी नहीं था| दूसरी और मानव की नई प्रजाति जो वन मैं पनप रही थी , वानर, उसको मानव समाज ने मानव तक मानने से इनकार कर रखा था | इन सबपर विस्तृत जानकारी के लिए पढ़ें : परशुराम का अवतार वानर प्रजाति और स्त्रियों की रक्षा के लीये
तो परशुराम क्षत्रियों को सुधारने मैं तो पूरी तरह से सफल हुए, लकिन धार्मिक समाज और ब्राह्मण समाज को सुधार नहीं पाए | धार्मिक समाज और ब्राह्मण समाज पूरी तरह से धर्म का दुरूपयोग स्वंम की स्वार्थ सिद्धि के लिए कर रहा था | परशुराम को ब्राह्मणों पर कितना अविश्वास हो गया था, वोह इस बात से साफ़ होता है कि शिव धनुष (WEAPON OF MASS DESTRUCTION) को उन्होंने एक क्षत्रिय राजा जनक के पास रखवाया, न कि किसी ब्राह्मण राजा के पास |
उधर राक्षस भी आंतक मचाए हुए थे, और उनका नेत्रित्व भी एक ब्राह्मण राजा, रावण, कर रहा था | चुकी ब्राह्मणों ने क्षत्रियों के विरुद्ध परशुराम की सहायता करी थी, इसलिए, तत्पश्च्यात श्री विष्णु को श्री राम के रूप मैं अवतरित होना पड़ा, और इस बार एक क्षत्रिय के भेष मैं !
स्पष्ट है श्री विष्णु, परशुराम के अवतार मैं अनेक महत्वपूर्ण दिशा परिवर्तन कर पाए, लकिन ब्राह्मण समाज और राक्षसों को नहीं सुधार पाए, जिसके लिए श्री राम को अवतरित होना पड़ा |
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