श्री विष्णु अवतार वासुदेव कृष्ण पृथ्वी पर अवतरित होते हैं धर्म की स्थापना के लिए | एक विशाल महायुद्ध का नायक उन्हें बनना पड़ता है, जिसको जीत तो वे जाते हैं, लकिन पूरे विश्व की बर्बादी के बात, अत्यंत ही भयंकर नर संघार के बाद |
उस युद्ध मैं इस तरह के आधुनिक अस्त्र शास्त्रों का प्रयोग हुआ कि नरसंघार के अतिरिक्त सामाजिक ढाचा भी पूरी तरह से कमजोर हो गया, और सौ साल के अंदर डह गया....विश्व पाषाण युग मैं चला गया | आज भी किसी को नहीं मालूम कि महाभारत काल के पिरामिड और अन्य विज्ञानिक दृष्टि से महत्वपूर्ण विकास किसका था, और किस लिए था | युधिष्टिर का वंश जनमेजय के बाद आगे नहीं बढ़ा; और पाषाण काल आ गया |
ऐसी मान्यता है कि श्री कृष्ण का अवतरण पूरी सोलाह कला के साथ हुआ था, श्री राम का चौदह कला के साथ | क्या होती हैं यह कला ?
अब फिर से वही समस्या आ जाती है, भावनात्मक उत्तर तो कुछ भी हो सकता है, क्यूँकी उससे कुछ प्राप्त नहीं होना है | भावनात्मक समाज सदैव भक्ती मैंही सारे समाधान खोजेगा, इसलिए अत्यंत आवश्यक हो तोभी बहुत सीमित समय के लिए बनाया जाता है| हिन्दू समाज को पिछले ५००० वर्ष से विद्वानों और गुरुजनों ने भावनात्मक बना कर रखा है, जिसका परिणाम यह है की ५००० वर्ष पहले अकेला विश्व मैं यह समाज था जो सिकुड़ता जा रहा है , और आज भारत मैं भी हिन्दू समाज का नागरिक द्वित्य श्रेणी का नागरिक है |हाँ धर्मगुरुजनों का वक़्त जरुर सुख और विलासता के साथ गुजर रहा है| और चुकी समाज पूरी तरह से कर्महीन है, भौतिक उत्तर कभी माँगता नहीं, जबकी भौतिक उत्तर ही समाज को कर्मठ बनाएगा | श्री कृष्ण ने क्या धर्म स्थापित करें वोह भी आपको तभी पता पड़ेंगे, जब आप भौतिक उत्तर पाओगे, और समाज के विकास का मार्ग भी तभी सुनिश्चित होगा |
अब समझते हैं कि ‘कला’ क्या होती है;
परमात्मा सर्व शक्तिमान है उनकी शक्ति, स्वरुप या महानता को परिभाषित नहीं करा जा सकता,
और यही परमात्मा जब आत्मा बन कर विभिन्न जीवो मैं पृथ्वी पर विचरता है, तो शक्तियां सीमित हो जाती है , विज्ञान उसे परिभाषित करता है, काफी कुछ सफलता के साथ |
परन्तु अवतार साधारण आत्मा नहीं है , इसलिए उसको परिभाषित करने के लिए एक मानक धर्म ने बना दिया जिसको ‘कला’ का नाम दे दिया| विभिन्न ज्ञानियों ने कला को परिभाषित करा, और विस्तार मैं जायेंगे तो पायेंगे की सब भावनात्मक है, अथार्त जैसे चाहो समझ लो | तो अब भौतिक स्तर पर अवतार को परिभाषित करने के लिए कला का प्रयोग कैसे होगा यह समझते हैं |
जैसा की उपर कहा गया है परमात्मा सर्व शक्तिमान है, इसलिए परिभाषित नहीं करा जा सकता , परन्तु अवतार को परिभाषित करने के लिए स्वंम सनातन धर्म एक मानक का प्रयोग करता है, जिसको ‘कला’ कहा जाता है | अधिकतम १६ कला हो सकती हैं , जिसके साथ श्री कृष्ण अवतरित हुए थे, और श्री राम १४ कला के साथ अवतरित हुए थे | जिसकी सीमाएं हैं वही परिभाषित हो सकता है, स्वाभिक है की अवतार सीमित शक्तियों के साथ ही अवतरित होते हैं क्यूँकी अवतार कभी भी अलोकिक और चमत्कारिक शक्तियों का प्रयोग नहीं करते, सिर्फ उद्धारण से धर्म स्थापित कर सकते हैं| इसीलिये उनकी सीमाएं १६ कला और १४ कला से आंकी जा सकती हैं |
यह सत्य आपको इसलिए धर्मगुरु नहीं बताते, क्यूँकी आपको भावनात्मक बना कर रखने मैं धर्मगुरु को दो लाभ हैं; समाज कर्महीन रहेगा तो चुपचाप से बिना कोइ सवाल करे उनकी बात मानेगा, और आर्थिक लाभ और शक्ती भी कर्महीन समाज के कारण अधिक अर्जित करी जा सकती है | बस इसीलिये भौतिक उत्तर आपको कोइ नहीं देगा|
लकिन यहाँ के पाठको को तो भौतिक उत्तर ही चाहीये;
क्या है यह कला ? संशिप्त मैं आप यह समझ सकते हैं :-
1. सनातन धर्म के अनुसार इश्वर सर्व शक्तिमान हैं, परिभाषित नहीं हो सकते , लकिन अवतार परिभाषित हो सकते हैं|
2. अधिकतम १६ कला का प्राविधान है, जिसके साथ श्री कृष्ण अवतरित हुए; तो आप यह समझ सकते हैं कि यदि इसे गणित मैं बदला जाए तो सर्व शक्तिमान अवतार को यदि २५६ नंबर मिल सकते हैं, तो श्री कृष्ण को १६x१६=२५६ नंबर ही मिल रहे हैं, और वोह पूरी शक्ती के साथ अवतरित हुए. लकिन इसके बाद भी भयंकर बर्बादी के बाद ही मानव जाती को बचा पाय| लकिन क्या कारण थे इस विश्व युद्ध के यह कोइ नहीं बताता, और आप भी नहीं पूछते|
3. श्री राम १४ कला के साथ अवतरित होते हैं , यानि की १४x१४=१९६ नंबर मिलते हैं, अधिकतम २५६ से, फिर भी श्री राम पूरी तरह से सफल होते हैं, और उनकी सफलता का प्रमाण है, राम राज्य | क्यूँ १४ कला के साथ राम पूरी तरह से सफल होते हैं, और कृष्ण १६ कला के साथ सफल तो होते हैं, लकिन उस सफलता के साथ मानव समाज को कष्ट भी बहुत मिले, ऐसा क्यूँ?
इसका कुछ उत्तर आपको पुरानी पोस्ट से मिलेगा:
क्या अवतार के पास अलोकिक और चमत्कारिक शक्ति होती हैं ?
अब सीधे उस पोस्ट से उद्धत होते हैं:
“आवश्यक है कि मनुष्य रूप मैं अवतार के सन्दर्भ मैं ‘बुरे वक्त’ और ‘बहुत बुरे वक्त’ को परिभाषित भी कर दिया जाए|
“बुरा वक्त:
जब अनेक कारणों से धर्म की हानि होती है, परन्तु समाज विज्ञानिक तौर पर पूरी तरह से विकसित नहीं होता, तो मनुष्य रूप मैं इश्वर के अवतार की आवश्यकता नहीं पड़ती है, या बहुत ही सीमित कार्य के लिए प्रभु अवतरित होते हैं, जैसे नरसिंह अवतार, हिर्नाकश्यप के वध के लिए, वामन अवतार, आदि...
“बहुत बुरा वक्त:
जब समाज विज्ञानिक तौर पर पूरी तरह से विकसित होता है, तब धर्म की हानी के कारण, आवश्यक सुधार, दिशा परिवर्तन के लिए इश्वर मनुष्य रूप मैं अपना पूरा जीवन काल उस सुधार के लिए लगा देते हैं, जैसे, भगवान परशुराम, श्री राम, श्री कृष्ण| यह भी ध्यान देने वाली बात है की त्रेता युग मैं एक के बाद तुरंत दुसरे विष्णु अवतार के रूप मैं श्री राम को आना पड़ा, क्यूँकी पहले अवतार, भगवान परशुराम, समस्त समस्याओं का समाधान करने मैं सक्षम नहीं हो पा रहे थे|
“अब प्रश्न का उत्तर देते हैं; जब समाज कम विकसित होता है, और विज्ञानिक विकास नहीं होता है, या आरंभिक स्तर पर हो, तब प्राय अवतार पर मिथ्या की चादर लपेट दी जाती है, जिसमें अवतार को अलोकिक और चमर्त्कारिक शक्ति से परिपूर्ण दिखा दिया जाता है, और चुकी उस समाज मैं प्राय अवतार के समय के विकास को समझने की क्षमता भी नहीं होती है, तो प्रमुख भौतिक धर्म जो की बिना चमत्कारिक शक्तियुओं के ही समझे जा सकते हैं, उन धर्म को नहीं बताया जाता, और समाज को भक्ति प्रमुख बना कर छोड दिया जाता है|”
तो एक बात तो उपर साफ़ हो रही है, समाज जितना अधिक विकसित होगा, अवतार की मुश्किलें बढेंगी | श्री कृष्ण के समय बहुत ही विकसित था, इतना विकसित कि हमसब विकसित समाज मैं रहते हुए भी उसकी कल्पना नहीं कर सकते; राम के समय मैं भी विकास था, लकिन आज के समाज से कुछ ज्यादा, उसकी कल्पना हो सकती है |
और विस्तार मैं उत्तर चाहीये तो ब्लॉग की रामायण और महाभारत से सम्बंधित पोस्ट पढीये !
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