Sunday, February 10, 2013

शिव और पार्वती की अराधना प्रकृति की सुरक्षा के लिये बचनबद्धता है

शिव संघार के देवता क्यूँ कहलाते हैं, तथा भौतिक ज्ञान के आधार पर, भोगोलिक विकास कैसे हुआ, यह समझना आवश्यक है| 
इसके बाद, शिव पार्वती की अराधना कैसे करनी है, खुद समझ मैं आ जाएगा !
कभी आपने सोचा है कि हम सब शिव पार्वती की अराधना क्यूँ करते हैं? क्या कारण हैं कि वोह संघार के देवता कहलाते है? एक तरफ शिव को इश्वर मानते हैं, तो दूसरी तरफ संघार के देवता| क्या इसमें कोइ विरोध नहीं है? शिव ने हिमालय को अपना निवास बनाया, उसका क्या कारण है ?

सबसे पहले आप समझ लें कि इस महाकल्प से पहले हिमालय पर्वत इतने ऊचे नहीं थे| विज्ञानिको की माने तो हिमालय पर्वतो की नई शंखला करीब पांच से छह करोड वर्ष पहले विकसित हुई थी| यह भी सही है कि हिमालय इससे कहीं ज्यादा पुराने हैं, संभवत: ५० करोड साल या और अधिक, लकिन यह पहले इतनी ऊची शंखला नहीं थी; पढ़ें अंग्रेज़ी मैं: Birth of world's highest mountains may date back 500 million years

यह विज्ञानिक सोच है कि पहले हिमालय बहुत कम ऊचे थे, और श्रृष्टि के विकास मैं सहायक न हो कर अवरोधक हो रहे थे| 

हिमालय सति के देह त्यागने के पश्च्यात जो महाप्रलय थी, उसमें ऊचे हुए हैं| ‘कम ऊची श्रंखला’ श्रृष्टि के विकास मै अवरोधक हो रही थी| इसी परिपेक्ष मैं दक्ष से सम्बंधित कथाए समझ मैं आती हैं, यह भी समझ मैं आता है, की दक्ष क्यूँ, प्राकृती के नियमों के विरुद्ध, ऐसी श्रृष्टि का विकास कर रहे थे, जो संघार रहित हो, अथार्थ शिव का उसमें कोइ भाग न हो| चुकी सति का दूसरा स्वरुप प्रकृति है, वोह यह कैसे सहन करती| एक तरफ शिव संघार के देवता, और पृथ्वी के इश्वर, जिनका अपमान हो रहा था, दक्ष के इस प्रयास से, दूसरी और दक्ष, सति के पिता| ऐसे मैं सति करती भी तो क्या करती|

दक्ष उनके पिता, स्वंम सति के प्रमुख स्वरुप प्रकृति का संघार करें, नई श्रृष्टि के विकास के लिए, जो की इश्वर विरुद्ध, प्रकृति विरुद्ध, और स्वंम श्रिष्टी विरुद्ध था, तो सति के पास क्या विकल्प था? उन्होंने स्वंम देह त्याग दी| आप समझना चाहें तो यह भी समझ सकते हैं, कि प्रकृती के देह का क्या अर्थ है? 

प्रकृती के देह का अर्थ है, प्रकृति का संतुलन, अथार्थ देह त्यागने का अर्थ हुआ, प्रकृति का संतुलन पूरी तरह  बिगड गया; यह भी कह सकते हैं सुर(HARMONY) और असुर(DISHARMONY) मैं सामंजस्य  समाप्त हो गया| बिगड़ने पर भूचाल आते हैं, ज्वालामुखी फटते हैं, लकिन सामंजस्य समाप्त होने पर प्रलय आती है|

और प्रलय आ गयी|

यह प्रलय काफी लंबी चली| कब आई यह प्रलय? करीब ८ करोड साल पहले; पढ़ें अंग्रेज़ी मैं: DURATION OF A KALP

परन्तु यह प्रलय, जो की सुर और असुर के असामंजस्य के कारण हुई, उसका लाभ यह भी हुआकी हिमालय पर्वत ऊचे हो गए, अभूतपूर्ण विकास हुआ, इस श्रंखला का| आज भी कुछ विज्ञानिक यह मानते हैं कि हिमालय ५ से ७ करोड वर्ष पुराने हैं, यह गलत है, सही यह है कि हिमालय की श्रंखला का अभूतपूर्ण विकास, लम्बाई और उचाई, दोनों तरीके से ५ से ७ करोड वर्ष पहले शुरू हुआ|

आज हिमालय जीवन और पूर्ण विश्व मैं श्रिष्टी के प्रमुख दाता हैं| यह विज्ञानिक तथ्य है, इसे कोइ भी विज्ञानिक ठुकरा नहीं सकता| “हिमालय जीवन और पूर्ण विश्व मैं श्रिष्टी के प्रमुख दाता हैं”, इस बात का किसी धर्म और समाज से कोइ सम्बन्ध नहीं है, यह विज्ञानिक तथ्य है| प्रत्यक्ष रूप से हिमालय ७५% विश्व का पोषण करते हैं, और बाकी २५% का अप्रत्यक्ष रूप से| जीवन और प्रकृती को सीचने के लिए सदा तैयार रहते हैं, हिमालय| प्रकृति का पिता कहा जाए, विज्ञान के परिपेक्ष मैं तो, एकदम सही होगा, क्यूँकी विज्ञानिक ही मानते हैं, की श्रृष्टि का मुख्य साहयक यदि कोइ है, तो हिमालय|
इश्वर श्रृष्टि का विकास बिना प्रकृति के सामंजस्य के नहीं कर सकते| माता पार्वती जो हिमालय की पुत्री हैं, उनका मुख्य स्वरुप प्रकृति है| स्वाभाविक है कि इश्वर का उद्देश प्रकृति से सामंजस्य बना कर ही पूरा हो सकता है| शिव पार्वती का विवाह यही दर्शाता है, प्रकृति और इश्वर मैं, श्रृष्टि विकास हेतु सामंजस्य|
अब उत्तर शिव संघार के देवता क्यूँ कहलाते हैं?
जैसा कि ऊपर बताया गया है, श्रृष्टि के विकास के लिए आवश्यक है, सीमित संघार, अथार्थ कोइ भी जीव उत्पन्न होता है, पनपता है, फिर, विनाश की और बढ़ जाता है, ताकी नया जीवन उत्पन्न हो सके| यह चक्र हम सब को स्वीकार भी है, और मान्य भी|  इश्वर शिव इसमें सहायक होते हैं, और हम सबको भी यह स्वीकार और मान्य है| और यही कारण है शिव संघार के देवता कहलाते है | पार्वती जो की प्रकृति का स्वरुप हैं, उनसे विवाह का अर्थ हुआ प्रकृति की रक्षा, और इसके लिए सीमित संघार से सुर और असुर मैं सामंजस्य बना कर रखना |
तो कैसे संभव है, शिव और माता पार्वती की अराधना, बिना प्रकृति की सुरक्षा हेतु, बचनबद्धता के? कमसे कम सनातन धर्म को मानने वाले तो प्रकृती की सुरक्षा हेतु पूर्ण रूप से वचनबद्ध हैं| इश्वर शिव और माता पार्वती पर पूर्ण श्रद्धा हमारी ही है |
ओम नम: शिवाय! जय माता पार्वती!
नोट: आज १०, जनवरी, २०१३, को प्रयाग मैं मौनी अमावस्य का महा-कुम्भ पर्व पर महा-नहान है, और सुबह से टीवी बता रहा है की मुख्य धारा कितनी प्रदूषित हो गयी है | मन खिन्न हो गया| यह भी सही है की प्रदुषण ऊपर के शहरों और उद्योगों से आ रहा है, और हम हिंदू हो कर इसके लिए कोइ प्रयास नहीं कर रहे हैं|
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1 comment :

Richa Raj Singh said...

very useful information..thanks
mjaayka

ABOUT ME:

A Consulting Engineer, operating from Mumbai, involved in financial and project consultancy; also involved in revival of sick establishments.

ABOUT MY BLOG: One has to accept that Hindus, though, highly religious, are not getting desired result as a society. Female feticide, lack of education for girls, dowry deaths, suicides among farmers, increase in court cases among relatives, corruption, mistrust and discontent, are all physical parameters to measure the effectiveness or success/failure of RELIGION, in a society. And all this, despite the fact, that spending on religion, by Hindus, has increased drastically after the advent of multiple TV channels. There is serious problem of attitude of every individual which need to be corrected. Revival of Hindu religion, perhaps, is the only way forward.

I am writing how problems, faced by Indian people can be sorted out by revival of Hindu Religion.