EXTRAORDINARY EFFORTS BY SHANTANU TO SOLVE PROGENY PROBLEM, BY FORMING TEAM TO CLONE HIS SON USING GENETIC ENGINEERING
हर प्राचीन सभ्यता इस बात को मानती है, कि करीब ७००० से १०००० वर्ष पूर्व के बीच मैं एक जबरदस्त बाढ़ आई जिसमें बहुत कुछ नष्ट हो गया |
संभवत: उसके बाद महिलाओं का अकाल पड़ गया , और संतान पैदा होने मैं भी समस्या होने लगी |इसके पीछे कारण क्या थे यह किसी को पता नहीं |लकिन समस्या इतनी जटिल हो गयी कि स्वंम विश्वामित्र को कठोर प्रयास करना पड़ा इस समस्या के निदान के लिए | अंग्रेज़ी मैं पढ़ें :
‘THE GREAT FLOOD OF DWAPAR YUG AND THERE AFTER’
लकिन अब महाराज शांतनु हस्तिनापुर पर राज्य कर रहे थे | उनके सामने जटिल समस्या यह थी की अपने वंश को कैसे आगे बढाएं , तथा उनकी हार्दिक इच्छा थी की उनकी संतान के अतिरिक्त राज्य का उत्तराधिकारी किसी और को मनोनीत नहीं करा जाए |ध्यान रहे इससे पहले महाराज भरत के समय मैं ऐसा हो चुका था की राज्य का उत्तराधिकारी बाहर से मनोनीत करा गया | लकिन विवाह योग्य कन्या और फिर संतान एक बड़ी समस्या थी | और महाराज शांतनु इसमें अपने को असफल होता देख रहे थे |हताश हो कर उन्होंने जेनेटिक इंजीनियरिंग और मानव क्लोनिंग का सहारा लिया |
ऑपरेशन गंगा उसी प्रयास को कहा जा रहा है | प्रथम सात प्रयास विफल रहे, नवजात शिशु जीवित नहीं बच पाया . लकिन आठवा प्रयास सफल रहा , जेनेटिक इंजीनियरिंग की सहायता से , एक ऐसे शिशु की उत्पत्ति हुई, जो सदेव पिता का आज्ञाकारी रहेगा, तथा जो कई प्रतिस्थापन अंगों के कारण, आसाधारण आयु तक जीवित रह सकता था| चुकी यह प्रथम प्रयास था , देवव्रत को शुरू के कुछ वर्ष विशेषज्ञों के संगरक्षण मैं रहना पड़ा| महाराज शांतनु ने देवव्रत को अपनी संतान स्वीकार कर लिया , लकिन यह भी सुनिश्चित कर दिया की इस प्रकार के आसाधारण प्रयास दुबारा न हों | विस्तार के लीये पढ़ें:
जेनेटिक इंजीनियरिंग और मानव क्लोनिंग महाभारत युद्ध के कारण
परन्तु इतिहास इसके बाद के घटना क्रम पर कोइ प्रकाश नहीं डालता | क्यूँ महाराज शांतनु एक मछुआरे की कन्या से प्यार कर बैठे , और वोह जब , जब की उस कन्या का पूर्व विवाह से एक संतान भी थी , और इतिहास बताता है की वह देखने मैं सुंदर भी नहीं थी ?
क्या ऐसा तो नही की महाराज शांतनु एक प्राकृतिक तरीके से उत्पन संतान की चाहत रखते थे ?
सारे संकेत यही बताते है ; बहराल उसपर विस्तार से बाद मैं चर्चा कर लेंगे , लकिन यही मान कर आगे का इतिहास समझ मैं आता है | यह भी स्पष्ट नज़र आ रहा है कि उस समय गर्भ धारण करने वाली स्त्रियों का अभाव था , और सत्यवती तो महामुनि पराशर को एक संतान दे चुकी थी , और इसी योगता के कारण शांतनु, सत्यवती से विवाह करना चाहते थे |
और उसका पूरा लाभ भी मछुआरे ने उठाया | उसने यह शर्त रख दी कि सत्यवती से उत्पन्न हुई संतान ही महाराज शांतनु के बाद सिंघासन पर बैठेगी | महाराज शांतनु , इस शर्त को स्वीकार नहीं कर पाए, लकिन जब देवव्रत को इस बात का पता पड़ा तो वे उस मछुआरे के पास गए , और उसकी कन्या का हाथ अपने पिता के लिए माँगा , तथा यह प्रतिज्ञा ली की सत्यवती की संतान ही राज्य की उत्तराधिकारी होगी | परन्तु उससे मछुआरे संतुष्ट नहीं हुए , उन्होंने इस बात का डर जताया कि “हम आपकी संतान को कैसे रोक पायेंगे, यदी उन्होंने सत्यवती की संतान की संतान के राज्य करने मैं कोइ विपदा उत्पन्न करी तो”?
और तब देवव्रत ने एक भीष्म प्रतिज्ञा ले डाली ; उन्होंने प्रण लिया की वे जीवन भर अविवाहित रहेंगे, और ब्रह्मचारी भी , तथा हस्तिनापुर के सिंघासन पर जो भी बैठेगा उसमें अपने पिता की छबी देखेंगे | निश्चय ही भीषण प्रतिज्ञा थी , और इसके उपरान्त देवव्रत भीष्म के नाम से भी विख्यात हो गए |
परन्तु इस पोस्ट का उद्देश यह भी आपको समझना है कि उस समय की परिस्थिति क्या थी , कि एक मछुआरा ऐसी शर्त रख पा रहा था , और वह भी एक सम्राट के सामने ?
जब महाराज शांतनु को यह सब पता चला तो वे बहुत हताश हुए, और अब कर भी क्या सकते थे? उन्होंने देवव्रत को इच्छा-मृत्यु का वरदान दिया | चुकी यह ब्लॉग चमत्कारिक शक्तियों पर विश्वास नहीं रखता, इसलिए इसका अर्थ यह समझना चाहिए की देवव्रत को उस समय उसकी विशेष योगता से अवगत कराया गया >>>जी हाँ देवव्रत को अपनी विशेष योगता के बारे में जब पता पड़ा जब उन्होंने भीष्म प्रतिज्ञा ले ली |
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