Sunday, October 28, 2012

धर्मगुरु समाज को राक्षस और असुर कि भिन्नता की सूचना तो दें

इक्कीसवी सदी सूचना युग कहलाती है , और सूचना के अनेक सोत्र उपलब्ध हैं |एक प्रमुख कारण हमारी कर्महीन मानसिकता का यह भी है , कि हमारे धर्म गुरु, धन और शोषण के उद्देश हेतु, समाज तक सही सूचना नहीं पहुचने देते हैं | 
गुरुजानो का कम ज्ञान भी एक कारण है , की गलत सूचना समाज तक पहुच रही है | यह पोस्ट इसलिए जरूरी हो गयी कि बहुत से लोग यह प्रश्न पूछ रहे हैं कि यदि यह सत्य है तो यह सूचना हमें गुरुजनों से क्यूँ नहीं मिली | सारी प्रतिक्रिया तब शुरू होई जब इस विषय मैं एक पोस्ट ब्लॉग मैं आई ; लीजिए लिंक पर जा कर आप भी पढ़ें : धर्मगुरु समाज को यह तो बताओ कि राक्षस और असुर अलग हैं

कम ज्ञान के कारण या शोषण हेतु , यह गलत सूचना हिंदू समाज को पहुचाई जा रही है , कि राक्षस और असुर एक हैं | नहीं राक्षस और असुर दोनों भिन्न हैं , और जहाँ राक्षस उन मानव को कहते हैं जो की मनुष्य का मॉस खाने लगे थे, असुर प्रकृति मैं सामंजस्य की विपरीत स्थिति को कहते हैं | फिर से बता रहा हूँ : > “असुर, प्रकृति मैं सामंजस्य की विपरीत स्थिति को कहते हैं” |

यह सब समझने के लिए यह जान लेना आवश्यक है कि “हिंदू समाज, धर्म तथा ज्ञान, क्रमागत उन्नति को विशेष महत्त्व देता है ! हम मानते हैं कि क्रमागत उन्नति ही श्रृष्टि के सृजन का कारण है ! इस पर स्पष्ट रूप से अनेक संकेत आपको हिंदुओं के प्राचीन इतिहास में मिलेंगे ! हिंदुओं की मान्यता है कि ईश्वर ने ब्रह्मांड का निर्माण करा परन्तु उसके आगे सृजनका कार्य क्रमागत उन्नति द्वारा ही हुआ है ! अत: क्रमागत उन्नति ही पृथ्वी के विकास का कारण है, न की सृजन |

“यह भी ध्यान देने की बात है कि हिंदू ईश्वर के अवतार में विश्वास रखते हैं; हिंदू यह नहीं मानते कि स्वर्ग में बैठे ईश्वर समाज या मनुष्य की कोइ मदद करते है ! यदि समाज घोर पतन की और जा रहा है, तो ईश्वर मनुष्य रूप में अवतरित होते हैं, समाज की दिशा में आवश्यक सुधार मनुष्य के रूप में ही लाते हैं, और मनुष्य को प्रेरित करते हैं, समाज को प्रगति के मार्ग पर बढाने के लीये ! यही अवतार का उद्देश है ! 

“जब जुल्म और अत्याचार असहनीय हो जाते हैं तो ईश्वर अवतरित होते हैं मनुष्य रूप में, समाज की सहायता के लीये....स्पष्ट है कि स्वर्ग में बैठा हुए ईश्वर कुछ नहीं कर सकते ! हिंदू सृजन में नहीं, क्रमागत उन्नति में विश्वास रखते हैं !”

पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए लिंक : पृथ्वी का विकास.. सृजन या क्रमागत उन्नति

राक्षस की उत्पत्ति कैसे होती है , इसे जाने के लिए पढ़ें: कलयुग का अंत..एक नए कल्प का प्रारम्भ और मत्स्य अवतार

इसी पोस्ट से उद्दत कर रहा हूँ : 

“धीरे धीरे आधुनिक तकनीक से बनाए होए पानी के जहाज़ संसाधन और इंधन के अभाव से तोड़ फोड कर पुराने ढाचे के कर दिये गये! अब हर मनुष्य को काम करना पड़ रहा था ! यह सही था कि वोह पहाड़ियों कि चोटी जो अब टापू कहलाने लगे थे, पर जा कर रहने का प्रयास कर सकते थे, लेकिन वहाँ पर लूट मार कि वजह से वोह असुरक्षित थे !

“अब कुछ लोग भोजन के आभाव में मनुष्यों को मार कर उनका मांस खाने लगे थे! उनको राक्षस कहा जाने लगा !”

आपके प्रश्नों का उत्तर देना का सदेव प्रयास रहेगा| ब्लॉग से जुड़ने के लिए बहुत बहुत धन्यवाद!!!

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ABOUT ME:

A Consulting Engineer, operating from Mumbai, involved in financial and project consultancy; also involved in revival of sick establishments.

ABOUT MY BLOG: One has to accept that Hindus, though, highly religious, are not getting desired result as a society. Female feticide, lack of education for girls, dowry deaths, suicides among farmers, increase in court cases among relatives, corruption, mistrust and discontent, are all physical parameters to measure the effectiveness or success/failure of RELIGION, in a society. And all this, despite the fact, that spending on religion, by Hindus, has increased drastically after the advent of multiple TV channels. There is serious problem of attitude of every individual which need to be corrected. Revival of Hindu religion, perhaps, is the only way forward.

I am writing how problems, faced by Indian people can be sorted out by revival of Hindu Religion.