“यहाँ जो कहा जा रहा है , उसपर निर्णय आप स्वंम लेंगे, कोइ और नहीं ले सकता यह निर्णय आपके लिए | आप ही को फैसला करना है की भीष्म पितामह ने युद्ध भूमि मैं अपनी प्रतिज्ञा तोडी अथवा नहीं”
यह प्रसन अत्यंत महत्वपूर्ण है , इसलिए की इससे हिंदू समाज की प्रगति और भारतवर्ष की उनत्ति जुडी होई है | क्या भीष्म पितामह ने धर्म युद्ध मैं अपनी प्रतिज्ञा तोडी? अभी तक आपको यही बताया गया है की देवव्रत(भीष्म पितामह) ने अपने पिता के सुख के लिए भीष्म प्रतिज्ञा ली जो की दो भाग मैं थी :
(1). “मैं ,देवव्रत , कभी विवाह नहीं करूँगा, और आजन्म ब्रह्मचारी रहने का प्रण लेता हूँ”
(2). “मैं देवव्रत,यह प्रतिज्ञा लेता हूँ की हस्तिनापुर के सिंघासन पर जो भी विराजमान होगा, उसमें अपने पिता की छबी देखूंगा , और इसी सोच से उनके सारे आदेश मान्य होंगे”
आपको यह भी बताया गया है कि उन्होंने इस भीष्म प्रतिज्ञा को मृत्यु तक निभाया | लकिन वोह आजादी से पहले की सोच थी , उस समय हम भक्ति मार्ग पर चल रहे थे, इसलिए सच आपके सामने होते हुए भी आपने सच पर पर्दा पड़े रहने दिया और यह स्वीकारा कि भीष्म पितामह ने प्रतिज्ञा अंत तक निभाई, हालाकि इस सोच के कारण आपकी मानसिकता और कमजोर हो गयी , संघर्षहीन हो गयी , लकिन तब भी आपने ऐसा करा |
परन्तु आज वक्त बदल गया है , अब हम गुलाम नहीं रहे | हमें अपनी संकीण और कमजोर मानसिकता से लड़ना होगा , जो की हमें विरासत मैं मिली है , और सत्य को सत्य कहना होगा | ध्यान रहे सत्य हमेशा व्यक्ति और समाज को नई उचाई तक ले जाता है |
यहाँ जो कहा जा रहा है , उसपर निर्णय आप स्वंम लेंगे, कोइ और नहीं ले सकता यह निर्णय आपके लिए | आप ही को फैसला करना है की भीष्म पितामह ने युद्ध भूमि मैं अपनी प्रतिज्ञा तोडी अथवा नहीं |
युद्ध चरम सीमा पर था, दोनों , पांडव और कौरव खेमे मैं आंकलन चल रहा था कि अब तक के युद्ध का क्या रुझान माना जाय | पांडव इस निष्कर्ष पर पहुंचे कि भीष्म , द्रोणाचार्य और कर्ण के होते युद्ध मैं विजय संभव नहीं है | किसी न किसी युक्ति से, कम से कम, एक को तो हटाया जाए , फिर आगे का मार्ग निश्चित करेंगे |
पांडव और श्री कृष्ण ने मिल कर यह निर्णय लिया कि युधिष्टिर , कौरवों के प्रधान सेनापति, और अपने पितामह भीष्म के पास जाएँ, और और युद्ध से पहले का विजय आशीर्वाद वापस कर के आएं ; तथा कारण पूछने पर यह भी बता दे कि जब तक स्वंम भीष्म पितामय युद्ध भूमि मैं हैं , उनकी विजय तो हो नहीं सकती |
ऐसा ही हुआ| पितामह ने भी यह स्वीकारा कि उनके रहते पांडवों की विजय संभव नहीं है , और करवों के प्रधान सेनापति ने किस तरह से उनको युद्ध भूमि से हटाया जा सकता है, यह समझा कर बता दिया |
और अगले दिन युद्ध भूमि मैं, उनके बताए हुए मार्ग पर चल कर, अर्जुन ने भीष्म पितामह को अत्यंत गंभीर और अपरिवर्तनीय , मृत्यु से पहले की स्थिती मैं पंहुचा दिया | भीष्म पितामह युद्ध भूमि से हट गए |
अब प्रश्न यह है कि कि भीष्म पितामह ने अपनी यह प्रतिज्ञा तोडी की नहीं .. “मैं देवव्रत,यह प्रतिज्ञा लेता हूँ की हस्तिनापुर के सिंघासन पर जो भी विराजमान होगा, उसमें अपने पिता की छबी देखूंगा , और इसी सोच से उनके सारे आदेश मान्य होंगे”
निर्णय आपको लेना है की युद्ध भूमि मैं अगर प्रधान सेनापति अपने स्वंम को हटाने का मार्ग शत्रु पक्ष को बता देता है , तो आप क्या कहेंगे | जी हाँ प्रतिज्ञा टूटी |
प्रश् यह है कि प्रतिज्ञा तोडी क्यूँ , और उससे उनका कद बढ़ा या घटा ?
धर्म युद्ध मैं धर्म का साथ देना अनिवार्य है , और वह व्यक्तिगत उप्लभ्दीयों और वचन से कहीं ज्यादा बड़ा | धर्म समाज और मानवता के लिए होता है , जबकि व्यक्तिगत वचन नहीं ; पितामह का कद इसके बाद बढ़ा है |
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