“हिंदू धर्म सर्वथा कर्मप्रधान धर्म रहा है ! कर्मवीर श्री कृष्ण का कर्मछेत्र कहलाता है , जहाँ धर्म की परिभाषा कर्म की व्याख्या से शुरू होती है ! परन्तु समस्या इतनी जटिल थी की कर्मवीर हिंदू समाज बच नहीं सकता था ! वक्त इतना बुरा था कि विदेशी शासको से संघर्ष का अर्थ था हिंदू समाज कि समाप्ति ! यह तो हमसब को विदित है कि धर्म मैं सदैव उचित अनुपात कर्म और भावना का होता है !
बिना भावना या भक्तिरस के कर्म और कर्म प्रधान धर्म समझाया नहीं जा सकता ! लकिन अब समस्या यह थी कि कर्म प्रधान धर्म का कोइ प्रयोग नहीं था ! किसी तरह से कर्म का भाग घटा कर भावना(भक्ति) भाग बढ़ाना था”
TULSIDAS IS WRONGLY BLAMED FOR DEPARTING FROM ORIGINAL TEXT OF HISTORICAL DETAILS MENTIONED IN VALMIKI’S RAMAYAN. HIS EFFORTS WERE HINDU SAMAAJ CENTRIC.
यह प्रश्न रह रह कर हर उस व्यक्ति के सामने आता रहता है, जो रामचरितमानस को भक्ति का सोत्र मानता हैं | अनेक बार यह प्रश्न हमसब के सामने आया है, और कारण स्पष्ट है ; समस्त हिंदू समाज रामायण को त्रेता युग का इतिहास मानता है | स्वाभाविक है, फिर यह प्रश्न, कि अयोध्या का राज्य संभालने के पश्च्यात , मानस मैं सीता के त्याग से सम्बंधित महत्वपूर्ण तथ्य क्यूँ नहीं है ? क्यूँ तुलसीदास जी ने सीता का त्याग, जो श्री राम ने अयोध्या का राज्य संभालने के पश्च्यात करा , उसे मानस का अंग नहीं बनाया ? कुछ लोग यहाँ तक कह देते है कि संभवत: श्री राम का अस्तित्र्व काल्पनिक है, और यह सिर्फ पुराणिक कथा मात्र है, इतिहास नहीं |
पहले तो इस बात को अच्छी तरह से समझ लें कि तुलसीदास जी एक सिद्ध पुरुष थे, और उन्होंने रामचरित्रमानस की रचना, रामायण को त्रेत्ता युग का इतिहास मान कर ही करी थी | रामायण त्रेता युग का इतिहास है, इस अटूट विशवास के बाद ही इतने सुंदर, और रसीले काव्य मैं, रामचरितमानस की रचना संभव थी | परन्तु उस समय कि कुछ सामाजिक समस्याओं का संबोधन अत्यंत आवश्यक था, और यह एक प्रमुख कारण था महाकाव्य की रचना का | उन समस्याओं का उल्लेख विस्तार से मुख्य पोस्ट मैं है जो कि आप अवश्य पढ़ें :
गोस्वामी तुलसीदास कर्त रामचरितमानस...उस समय कि सामाजिक पृष्ठभूमि में समीक्षा
अब मुख्य पोस्ट से उद्धृत कर रहा हूँ :
“सचाई यह है की हिंदू समाज उस समय घोर संकट मैं था, और गोस्वामी तुलसीदास ने तथा अन्य संतो ने अनेक बदलाव धर्म मैं करके, किसी तरह से हिंदू समाज को बचा लिया !
“उस समय हिंदू समाज अनेक जटिल समस्याओं से जूंझ रहा था ! एक तरफ मुस्लिम शासको का अत्याचार, दूसरी और अपने चारों तरफ मुस्लिम समुदाय कि बढती होई आबादी, जिनको शासन का संगरक्षण प्राप्त था और जो शासन के साथ मिल कर हिंदू समुदाय पर अत्याचार कर रहे थे ! और भरसक प्रयास कर रहे थे कि हिंदू समाज मैं अधिक से अधिक धर्म परिवर्तन हो जाय ! जगह, जगह से समाचार आते रहते थे कि अब यह पूरा गाव धर्म परिवर्तन करके मुसलमान हो गया है ! अत्यंत कमजोर स्तिथि थी हिंदू समाज कि ! जवान अविवाहित कन्याओं को अगवा कर लिया जाता था, और यदि अगवा करने वाला उससे निकाह करले तो उसे जुल्म नहीं माना जाता था, इसलिए कन्याओं कि शादी कम उम्र में होने लगी ! ऐसे में हिंदू समाज को धर्म परिवर्तन से बचाना एक अत्यंत जटिल और महत्त्वपूर्ण कार्य था !
“हिंदू धर्म सर्वथा कर्मप्रधान धर्म रहा है ! कर्मवीर श्री कृष्ण का कर्मछेत्र कहलाता है , जहाँ धर्म की परिभाषा कर्म की व्याख्या से शुरू होती है ! परन्तु समस्या इतनी जटिल थी की कर्मवीर हिंदू समाज बच नहीं सकता था ! वक्त इतना बुरा था कि विदेशी शासको से संघर्ष का अर्थ था हिंदू समाज कि समाप्ति ! यह तो हमसब को विदित है कि धर्म मैं सदैव उचित अनुपात कर्म और भावना का होता है ! बिना भावना या भक्तिरस के कर्म और कर्म प्रधान धर्म समझाया नहीं जा सकता ! लकिन अब समस्या यह थी कि कर्म प्रधान धर्म का कोइ प्रयोग नहीं था ! किसी तरह से कर्म का भाग घटा कर भावना(भक्ति) भाग बढ़ाना था !
“बुरा वक्त तो सर झुका के ही निकाला जा सकता है, और इसी सोच से उस समय के संतो ने धर्म से कर्म का भाग पूरी तरह से घटा कर भावना का भाग बढ़ा दिया ! कर्महीन समाज बुरा वक्त सर झुका कर काट सकता था !
“सभी संतो ने समय समय पर उस कठिन समय मैं इसके लिए प्रयास करा ! भक्त सूरदास ने कर्मवीर कृष्ण को गूपियुओं के साथ लीला करते हुए दर्शाया, कृष्ण की कर्म प्रधान योगीराज कि छबी को अलग रख कर बाल गोपाल कृष्ण की लीला से, समाज को भक्तिरस की तरफ मोड दिया ! स्वंम गोस्वामी तुलसीदास जी ने रामायण के इतिहास के स्वरुप मैं कुछ संशोधन कर के रामचरितमानस कि रचना करी ! रामचरितमानस स्थानिये अवधि भाषा मैं रचित है तथा अत्यंत लोकप्रिय है ! पूरी रामचरितमानस मैं अत्यंत रसीले और भक्ति से प्ररित भाव से यह बताया गया है कि कैसे विष्णु अवतार श्री राम ने, दुराचारी राक्षस रावण का सर्वनाश करा ! समाज को यह समझाने कि कोशिश करी गयी कि दुराचारी कि समाप्ति तो निशित है , बस श्री राम पर विश्वास रखो ! और उस समय के समाज के पास भक्ति और भाव के अतरिक्त और कोइ विकल्प था भी नहीं !”
स्पष्ट है , हिंदू समाज , कर्म के रास्ता त्याग कर भक्ति मार्ग पर ही आगे बढ़ सकता था | हाँ यह प्रश्न अवश्य है कि आजादी मिलने के बाद उसे बदला क्यूँ नहीं गया ? इसका कोइ उत्तर देने को तयार नहीं है | एक सिद्ध पुरुष ने उस समय अन्य संतो के साथ मिल कर हिंदू समाज को बचा लिया |
लकिन आज हम यदि कर्म मार्ग पर वापस न लौटें तो महान संत, गोस्वामी तुलसीदास जी का अपमान कर रहे हैं | और उसके लिए हमें कोइ विशेस प्रयास भी नहीं करना, आपको मात्र रामायण को इतिहास समझ कर समझना है | ऐसे मैं यह भी स्पष्ट हो जाता है कि अब रामायण को समझते हुए यह आवश्यक है कि किसी भी चरित्र के पास अलोकिक व् चमत्कारिक शक्ति नहीं थी | जब आप यह समझ कर रामायण का इतिहास स्वरुप समझेंगे , तो आपको हर प्रमुख घटना से एक धर्म का ज्ञान होगा, जो आज भी महत्वपूर्ण है |
रामायण वास्तव मैं हिंदू समाज को प्रगति के मार्ग पर अग्रसर करेगी, और गोस्वामी तुलसीदास जी का उद्देश और सपना पूरा होगा |
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