Wednesday, August 17, 2016

कौन सा अच्छा कर्म था जिससे युधिष्टिर अकेले व्यक्ति बने जो सशरीर स्वर्ग गए

युधिष्टिर एकमात्र अकेले ऐसे व्यक्ति हैं जो सशरीर स्वर्ग गए ! 
यह प्रश्न इसलिए भी महत्वपूर्ण है कि सशरीर कोइ स्वर्ग जाता नहीं, यहाँ तक की अवतार भी नहीं , 
परन्तु रामायण, महाभारत और पुराण तो वास्तविक इतिहास है, इसलिए इस सत्य पर विवाद नहीं हो सकता!

अब सीधे प्रश्न यह उठता है कि ऐसा कौन सा पुनीत, श्रेष्ठ कर्म इन्होने करा था कि इनको ब्रहमांड की पूरी सकारात्मक उर्जा मिल गयी, जिससे यह संभव हो पाया ?

प्रश्न इसलिए भी जरुरी है क्यूंकि इस वृतांत का विशेष महत्त्व अवश्य है, नहीं तो इसका उल्लेख नहीं होता |

सनातन धर्म पूर्ण रूप से कर्म सिद्धांत पर आधारित है, 
जहाँ कर्म का निश्चित फल तो मिलता है , 
और 
चुकी ईश्वर अवतार को भी यह सुविधा उपलब्ध नहीं है कि वे सशरीर पृथ्वी लोक त्याग सकें ,
तो ...
इस प्रश्न का उत्तर आपने नहीं खोजा यह पूरी तरह से गलत है, आपकी दास भावना प्रदर्शित करता है |
और 
वैसे भी इसका उत्तर कठिन भी नहीं है, क्यूंकि महाभारत में युधिष्टिर का पूरा इतिहास उपलब्ध है |

युधिष्टिर सरल स्वभाव के व्यक्ति थे, विनर्मता और क्षमा उनके चरित में थी जो की एक राजा को उच्च श्रेणी में खड़ा कर देता है ! न्याय उनको प्रिये था, इसलिए धर्मराज भी कहलाते थे | इन्ही कारणों से उनकी विश्व में ख्याति थी, जनता भी उनको चाहती थी |

लकिन इससे भी कही अधिक, लोकप्रिय और गुणवान राजा हुए हैं, इसलिए हमें और आगे खोजना होगा | युधिष्टिर ने कुछ विशेष पाप भी करें हैं , विशेषकर :
1. जूथकीड़ा का शौक ,
2. एकलव्य का अंगूठा जब गुरु-दक्षिणा में लिया जा रहा था, उसका विरोध ना करना,
3. अपने राज्य को दांव पर लगाना,
4. अपने भाईयों को जूथ में दांव पर लगाना ,
5. स्वंम को हारने के पश्च्यात , जब उनके अधिकार ही समाप्त हो गए, द्रौपदी को दांव पर लगाना, और वैसे भी पत्नी को दांव पर लगाना घोर अधर्म है !
जब आप इन सबका आकलन करेंगे तो आप पायेंगे कि इनके पाप साधारण नहीं थे , 
तो...
फिर ऐसा कौन से विशेष श्रेष्ठ कर्म करा जो की किसी और के लिए कहना तो संभव है, करना नहीं |

ध्यान रहे कहने और करने में विशाल अंतर होता है , विशेषकर राजाओ या राजा-समान लोगो के लिए |

उद्धारण : 
राम-राज्य एक ऐसे राज्य को कहते हैं जिसमें सबको बराबर का अधिकार था, समाज में जीने के लिए और न्याय के लिए, और किसी प्रकार के समझौते के बिना न्याय मिलता भी था; यह कहना संभव है, करना बिलकुल नहीं, तब भी और आज भी !

युधिष्टिर का पूरा इतिहास उपलब्ध है, और इस विषय पर अनेक लोगो से मैंने प्रश्न भी करा परन्तु संतोषजनक उत्तर नहीं मिल पाया | और धीरे धीरे इसके पीछे की समस्या भी पता चली ; संस्कृत विद्वान और धर्मगुरु हिन्दू समाज को जो धर्म सिखा रहे हैं, वोह समाज की मानसिकता को दास की रखने के लिए सिखा रहे हैं | इसलिए इसका उत्तर उपलब्ध अवश्य है, लकिन महाभारत से ढून्ढ कर निकालना आपको ही पड़ेगा |

सत्य तो यह है कि युधिष्टिर ने एक अत्यंत पुनीत, कठोर और श्रेष्ठ कर्म करा जिसका विवरण तो महाभारत में पूरी तरह से है, लकिन संस्कृत विद्वान और धर्मगुरुजनो ने इसको पूरी तरह से घुमा दिया , और दास मानसिकता के कारण समाज कुछ प्रश्न पूछ नहीं पाता | महाभारत युद्ध में गुरु द्रोण , जब निहत्ते हो गए तो उनका वध ; यह अत्यंत कठोर कर्म था, अब समझते हैं कि यह पुनीत और श्रेष्ठ क्यूँ था |

गुरुद्रोण चाहे छलसे ही लकिन निहत्ते हो गए, तो युद्धभूमि के नियमो के अनुसार उनको बंदी बनाया जा सकता था, मारा नहीं जा सकता था | वोह तबभी और आजभी घोर अधर्म और अपराध है, अपराध और भी गंभीर हो जाता है क्यूंकि द्रोण, युधिष्टिर के गुरु थे | परन्तु श्री कृष्ण और युधिष्टिर में क्या विचार विमश हुआ, यह तो नहीं मालूम, लकिन युधिष्टिर ने निहत्ते द्रोण के वध की अनुमति देदी | 

देखने में यह अत्यंत पापयुक्त कर्म लगता है, जिसका कोइ भी निदान नहीं है, पर यह पोस्ट कह रही है कि यह कठोर, श्रेष्ट, पुनीत कर्म था , जिसके कारण युधिष्टिर सशरीर स्वर्ग गए |

चलिए महाभारत में गुरुद्रोण का पूरा इतिहास उपलब्ध है, समझते हैं:
  • द्रोण और उनकी पत्नी कृपी माता के गर्भ से नहीं पैदा हुए, ‘GENES’ में फेर बदल कर उस समय के विज्ञान और आधुनिक तकनीक से पैदा हुए |
  • कुछ यही हाल, उनके पुत्र अश्वथामा का भी है, उसको भी विशेष विज्ञानिक तकनीक से अत्यंत लम्बी आयु प्रदान करी गयी |
  • पैसे की विशेष लालसा ने उनको घर से बाहर रखा, संतान होने के बाद भी वे घर का उत्तरदायित्व संभालने के लिए नहीं गए , भाग्य ने साथ जब दिया जब संतान भी बड़ी हो चली; उनको हस्तिनापुर के राजकुमारों की शिक्षा का भार मिला |
  • शिक्षक के रूप में ही उन्होंने एकलव्य का अंगूठा काट कर विश्व को यह सन्देश भेजा कि उचित मूल्य पर वे कोइ भी अधर्म कर सकते हैं |
  • आगे भी संतान ‘GENES’ में फेर बदल कर उत्पन्न होगी या प्राकृतिक तरीके से, माता के गर्भ से, उसमें भी इन्होने अधर्म का साथ दिया |
  • हस्तिनापुर में रहते हुए उन्होंने अनेक आधुनिक(परमाणु, रसायन से भी अधिक आधुनिक) अस्त्र विकसित करे, लकिन संचालन या पुराणिक भाषा में कहें तो सिद्ध मन्त्र संचालित, जो केवल वे जानते थे, और कुछ उनकी संतान अश्वथामा |
  • महाभारत युद्ध का विस्तार अंतरिक्ष तक उन्ही के कारण हुआ |
यह कुछ सीमित कारण हैं , तबभी अपने गुरु को निहत्ता करके मारना तो अत्यंत दुश्यकर्म है, विशेषकर ‘धर्मराज’ कहलाने वाले युधिष्टिर के लिए | 

लेकिन यह भी सोचने वाली बात है कि यदि दोनों, श्री कृष्ण और युधिष्टिर ने यह अनुमान लगा लिया कि अब उनकी ज्यादा उम्र बची नहीं है, और उनको इतना समय अब नहीं मिल पायेगा कि धर्म में जो कुछ हेराफेरी आचार्यद्रोण ने करी है, उसमें सुधार कर पायेंगे, तो भविष्य को एक सन्देश देना तो अनिवार्य था, कि आगे गुरु को कभी भी 'आदर्श' ना माना जाए | 

तथा यह भी सन्देश भविष्य को दिया 
कि 
गुरुकुल शिक्षा पूरी तरह से भ्रष्ट हो चुकी है, और भविष्य के समाज को यह विशेष हानि पहुचाएगी !
और इसी लिए यह कर्म अत्यंत पुनीत और श्रेष्ठ बना | युधिष्टिर सशरीर स्वर्ग गए |

इसलिए सोचना तो हर पाठक को पड़ेगा; इस पोस्ट से सहमत है, या कोइ और पुनीत कर्म था, जिसका उल्लेख पाठक करना चाहे , और जिसके कारण युधिष्टिर सशरीर स्वर्ग गए | कमेंट और चर्चा अवश्य करें |
नीचे की दोनों पोस्ट भी कृपया पढ़ें:

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