Monday, January 12, 2015

सामाज का शोषण होता रहे इसलिए संस्कृत विद्वान शिव को क्रोधित दिखाते हैं

इश्वर शिव परम पूज्य परमेश्वर हैं, जिनकी कोइ भी सीमाएं मानव के लिए निर्धारित करना संभव नहीं है, और चुकी समाज मानसिक रूप से पूरी तरह दास हो चूका है, इसलिए वोह कुछ प्रश्न पूछता नहीं , और इश्वर शिव जो की पूर्ण योगी भी हैं, और वैरागी भी, उनके वैराग मैं खोट दिखा दिया जाता है, यह कह कर की शिव क्रोधित हो कर तीसरी नेत्र खोल देते हैं |
क्रोधित होकर उन्होंने कामदेव को तीसरा नेत्र खोल कर भस्म कर दिया|

और हिन्दू समाज की दास मानसिकता देखीये, वोह कभी धर्मगुरुओ से यह भी नहीं पूछते कि एक पूर्ण वैरागी और इश्वर कैसे क्रोधित हो सकते हैं, तथा क्या यह संभव नहीं है कि इश्वर शिव ने प्रसन्न होकर तीसरे नेत्र को खोल कर कामदेव को शरीर रूपी बंधन से मुक्त कर दिया हो ?

सबसे पहले तो यह समझ लें कि इश्वर सदेव श्रृष्टि हित, समाज हित और मानव हित मैं सोचते हैं, परन्तु आपकी मानसिकता दासता वाली रहे तभी शोषण संभव है, इसलिए आपको सबकुछ तोड़ मरोड़ कर इश्वर पर आपका विश्वास कम करने की नियत से बताया जाता है| तभी धर्मगुरु आपकी मानसिकता पर हावी होकर समाज का शोषण बे रोकटोक कर सकते हैं| और इसमें संस्कृत विद्वान, जो विद्यालयों और विश्वविद्यालयों में समाज से जो अनुदान मिलता है उस पैसे से पढ़ कर ज्ञान प्राप्त करते हैं, समाज के शोषण के लिए धर्मगुरुओ का साथ देते हैं |

कामदेव को शरीर रूपी बंधन से मुक्त करने की कहानी आपने भी सुनी है, मैंने भी सुनी है; एक बार फिर से उसपर नज़र डाल लेते हैं:-
१. इश्वर शिव कलयुग के अंत मैं जब पृथ्वी जलमग्न हो जाती है, तो समाधि मैं चले जाते हैं , और यह समाधि नए महायुग के सत्ययुग के आरम्भ से ठीक पहले, प्रकृति के विस्तार हेतु [या यह कह लीजिये माता पार्वती , जो की प्रकृति हैं, से मिलन के लिए] अत्यंत प्रसन्न मुद्रा मैं खुलती हैं | 
२. उसी तरह से जब श्रृष्टि चक्रिये नहीं थी, प्रकृति सति होईं, इसके बाद हिमालय का विस्तार हुआ, तो भी नई श्रृष्टि के आरम्भ मैं जब सति पार्वती बनी तो, नई प्रकृति के स्वागत के लिए, इश्वर शिव प्रसन्न मुद्रा मैं अपनी समाधि तोड़ते हैं | 
३. इश्वर समाधि तोड़ कर नई श्रृष्टि के आरम्भ का सन्देश देंगें, यह अपने आप मैं अत्यंत हर्ष उल्लास का विषय है, तथा इस नई श्रृष्टि के विकास के लिए कामदेव को भी प्रमुख भूमिका निभानी है, तो वे भी इश्वर शिव की समाधि की समाप्ती के शुभ अवसर का सुंदर तरीके से प्रबंध करते हैं| 
४. शिव जी की समाधि समाप्त हुई, कामदेव ने जिस तरह से शिव जी की समाधि की समाप्ति के पर्व को अपनी रचना से और सुंदर बनाया, उसके लिए शिव जी ने प्रसन्न होकर उसको शरीर रूपी बंधन से मुक्त करा |
शिव जी की समाधि समाप्त हुई, कामदेव ने समाधि की समाप्ति के पर्व को अपनी रचना से और सुंदर बनाया, उसके लिए शिव जी ने प्रसन्न होकर उनको शरीर रूपी बंधन से मुक्त करा~~इसे पुरूस्कार समझ कर आगे बढ़ेंगे तो निष्कर्ष विज्ञान के अनुकूल होगा, और जैसा कि धर्मगुरु चाह रहेहैं, शिवजी ने क्रोधित होकर दण्डित करा तो समाज का शोषण होता रहेगा; वैसे सबकुछ गलत बताकर जिन्दा लाश तो बना दिया है समाज को

अब प्रश्न यह है कि सही क्या है, और क्या गलत; इसका निर्णय कैसे हो | चलिए यह भी मान लिया की तथ्य एक ही हैं सिर्फ प्रस्तुति का अंतर है| 

लकिन अब तब धर्मगुरु समाज को कायदे से समझाते रहे हैं की सबकुछ सकारात्मक था, शिव पार्वती के विवाह/मिलन से ज्यादा सकारात्मक बात क्या हो सकती है, बस, अगर नकारात्मक था तो इश्वर शिव का क्रोधित होना, और क्रोध मैं कामदेव को भस्म करना | 

और यह पोस्ट बता रही है कि शिव इश्वर है, क्रोधित हो ही नहीं सकते, और उन्होंने प्रसन्न होकर कामदेव को शरीर रूपी बंधन से मुक्त करा |

कैसे निर्णय हो कि क्या सही है और क्या गलत ?
बहुत आसान , आप और मैं वर्तमान सोच को ही सही मानते हैं, और सूचना यह है कि श्रृष्टि के आरम्भ मैं प्रकृती का फैलाव अभूतपूर्ण था, बड़े बड़े जीव जंतु उत्पन्न हुए ;तथा पुराण भी इन्ही तथ्यों की पुष्टि करती है,
यानि कि कामदेव को शरीर रूपी बंधन से मुक्ति एक सकारात्मक सोच थी|

यह भी समझ लें की आज हमसबको मालूम है कि अब श्रृष्टि और प्रकृति सिमटती जा रही है, सिकुडती जा रही है, और त्रीव गति से,....
तथा कामदेव को शरीर रूपी बंधन की सीमाएं दे दीगयी द्वापर युग के अंत मैं, जो की सूचक है कि अब प्रकृति सिमटेगी |

यानी की पुराण की सूचना वर्तमान सोच से मेल खाती है,

निर्णय आपको करना है, दासता छोडनी है, बहु बेटियों को सुरक्षित रखना है,
या,
इन धर्म गुरुजनों की बात मानकर दुबारा गुलाम होना है |


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