शिव इश्वर हैं और पार्वती प्रकृति, और स्वाभाविक है कि इश्वर प्रकृति के साथ मिल कर ही श्रृष्टि को प्रोहित्साहित कर सकते हैं |
पार्वती ही आरंभिक जन्म/जन्मों मैं सति के नाम से प्रचलित थी, तो क्या प्रकृति, पार्वती से पूर्व, कुछ विस्तार पश्च्यात सति हो जाती थी, यानी की पूर्ण विनाश प्रकृति का कुछ प्रगति के पश्च्यात, स्वंम हो जाता था, क्यूंकि, संभवत: सुर और असुर मैं व्यवाहरिक सामंजस्य नहीं रह पाता था|
यह विज्ञानिक सत्य है कि मात्र इश्वर, प्रकृति का मिलन अपने आप मैं पर्याप्त नहीं है; श्रृष्टि को पनपने के लिए|
पूरे ब्रह्माण्ड की सहायता की आवश्यकता होती है, और पृथ्वी का स्वंम का जो भूगोलिक व्यवहार और स्वरुप होता है, तथा पृथ्वी के अंदर जो नए समीकरण बनते बिगड़ते रहते हैं, उससे भूविज्ञानिक बदलाव से जीवमंडल मैं व्यावारिक स्थिरता आनी और रहनी अवश्यक होती है, तभी श्रृष्टि सुचारू रूप से चलती है |
यह अपने आप मैं एक विज्ञानिक विचारधारा को सनातन धर्म के साथ जोड़ रही है, कि पृथ्वी का विकास सृजन(CREATION) नहीं क्रमागत उन्नति(EVOLUTION) है | सृजन के लिए आदि शक्ति को बार बार सति नहीं होना पड़ता , क्यूँकी सृजन मैं गलतीयां तो हो ही नहीं सकती |
फिर से अच्छे तरह से समझ लें: सृजन के लिए आदि शक्ति को बार बार सति नहीं होना पड़ता , क्यूँकी सृजन मैं गलतीयां तो हो ही नहीं सकती |
सनातन धर्म मैं रामायण, महाभारत और पुराणों को कोडित इतिहास कहा गया है, और जब आप यह समझ लें और विश्वास कर लें की यह धर्म मानव को इश्वर ने ही दिया है, तो आपको यह भी विश्वास हो जाता है कि सबकुछ बहुत आसान होगा | स्वाभाविक है कि इस कोड को जानने के लिए आपको कहीं जाना नहीं है, आज के सूचना और ज्ञान के अनुसार आपको कथा समझनी है, बस; और सही दिशा मैं जा रहे हैं कि नहीं, इसका पुष्टिकरण वर्तमान ज्ञान और सूचना ही करेगी|
सति जैसा की नाम का अर्थ है, उसको कहते है जो अपना जीवन स्वंम समाप्त कर दे;
तथा
पार्वती छोटी पहाडी को कह सकते हैं तथा संकेत यह है कि माता पार्वती की पृथ्वीलोक पर जीवन की प्रगति सकारात्मक होनी है, क्यूँकी वोह हिमालय की पुत्री है और विज्ञानिक ही बता रहे हैं, की हिमालय बढ़ रहे हैं | हालाकि आस्था के अनुसार पार्वती पहाड़ पूना मैं है, और वहां पर पार्वती जी का मंदिर भी है, परन्तु ऐसा मंदिर बर्मुल्ला कश्मीर मैं भी है जो की शैलपुत्री मंदिर के नाम से जाना जाता है, और वैष्णो देवी भी है, तथा अन्य देवी पीठ भी हैं जैसे ज्वाला देवी, तो इस पोस्ट मैं आस्था से हट कर सूचना और विज्ञान के परिपेक्ष मैं सब समझा जाए|
फिर से : सति उसको कहते है जो अपना जीवन स्वंम समाप्त कर दे; तथा पार्वती छोटी पहाडी को| माता पार्वती की पृथ्वीलोक पर जीवन की प्रगति सकारात्मक होनी है, क्यूँकी वोह हिमालय की पुत्री है और हिमालय बढ़ रहे हैं
‘हिमालय बढ़ रहे हैं’, यह विज्ञानिक तथ्य है, हलाकि यह बढ़त बहुत ही मंद है, तथा और मंद होती जा रही है, परतु यह अपने आप मैं एक सकारात्मक दृष्टिकोण अवश्य प्रस्तुत करता है | संशिप्त मैं हिमालय का इतिहास जानना भी आवश्यक है |
हिमालय ४५ करोड़ साल पहले बने थे, लकिन उनकी उछाई बहुत कम थी| विज्ञानिको की माने तो कम उच्चाई के कारण तब हिमालय श्रृष्टि का पोषण करने मैं असमर्थ थे, तथा अनेक कारणों से जीवमंडल मैं व्यावारिक स्थिरता नहीं हो पाती थी और श्रृष्टि का स्वंम पतन हो जाता था, ‘सति’ हो जाती थी|
इसी परिपेक्ष मैं दक्ष का श्रृष्टि यज्ञ जिसमें शिव का भाग नहीं होना था, अथार्त शिव क्यूँकी संघार के देवता हैं, इसलिए श्रृष्टि का विनाश ना हो सके, समझ मैं आता है|
फिर पांच से छह करोड़ वर्ष पूर्व पृथ्वी इस बार, एक अभूतपूर्व ढंग से असुरो के वश मैं हो गयी, यानी की सारे सामंजस्य बिगड़ गए, पृत्वी मैं अनेक बदलाव आए | मेरे लिए इसका उचित आकलन संभव नहीं है की क्या कारण था इस प्राकृतिक भयावह आपदाओं का, और संषेप मैं आप यह समझ सकते हैं की पृथ्वी का स्वाभाविक विकास, जिसको इश्वर का आशीर्वाद प्राप्त था वोह भविष्य की श्रृष्टि को स्थिरता और चक्रिये बनाने का प्रयास कर रहा था |
इन प्राकृतिक भयावह आपदाओं के कारण और फल स्वरुप, विज्ञानिको का मत है, की भारत जो उस समय ऑस्ट्रेलिया के पास था, खिसकने लगा और एशिया से टकराया, तथा इस टकराव के कारण हिमालय की उचाई बढ़ने लगी | बढ़ने के बाद आज हिमालय ७५% विश्व का सीधे तौर पर पोषण कर रहे हैं और बाकी का अप्रत्यक्ष रूप से|
पुराणों ने सति के स्थान पर पार्वती को अब शिव की अर्धागिनी माना, तथा अब श्रृष्टि ‘सति’ नहीं हो रही थी| माता पार्वती के आने के बाद श्रृष्टि मानव की गलतियों और स्वार्थपूर्ण व्यवाहर के कारण ही पतन की और बढ़ती है|
अब श्रृष्टि चक्रिये है |
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