बलराम या संकर्षण,
श्री कृष्ण के बड़े भ्राता हैं, तथा वे देवकी की सातवी संतान हैं, जिन्हें गर्भ अवस्था मैं ही रोहिणी के गर्भ से बदल दिया गया | उनको शेषनाग का अवतार माना जाता है, तथा कुछ पुराणों के अनुसार वे श्री विष्णु के अवतार भी माने गए हैं |
बलभद्र या बलराम, हलधर, हलायुध, संकर्षण आदि इनके अनेक नाम हैं|
बलभद्र के सगे सात भाई और एक बहन सुभद्रा थी |
इनका ब्याह रेवत की कन्या रेवती से हुआ था...!
बलराम और श्री कृष्ण ने अनेक समाजिक विषयों पर बालपन मैं अपने विचार समाज के सामने रखे और उसपर सकारात्मक कार्य भी करा; आप चाहे तो यह भी कह सकते हैं की यह एक प्रमाण है की वे अवतरित पुरुष थे, लकिन उस पर चर्चा के लिए कुछ और समय दीजिये| अभी हमलोग बलराम पर ही केन्द्रित रहते हैं|
बलराम ज़ेनिटिक इंजीनियरिंग और मानव खेती के विशेषज्ञ थे, उनकी पत्नी बहुत लम्बी थी, जिसका उपचार इन्होने स्वंम करा था| हलधर की उपाधी भी इनको मानव खेती के विशेषज्ञ होने के कारण ही मिली थी |
बलराम एक शिक्षित जेनेटिक इंजीनियरिंग विशेषज्ञ थे और उन्होंने यह शिक्षा कंस वध के पश्च्यात प्राप्त करी थी| उस समय मथुरा छेत्र जेनेटिक इंजीनियरिंग का केंद्र था, और मानव क्लोनिंग पर भी विशेष कार्य हो रहा था, जिसका आर्थिक लाभ सबको प्राप्त हो रहा था, बस दो समस्या थी :
१. कन्याओं का अपहरण और फिर हमेशा के लिए लापता;
२. यमुना इतनी ज्यादा प्रदूषित की यमुना का जल जहर माना जाने लगा था
श्री कृष्ण और बलराम की उपलब्धी यह थी की वे सफलतापूर्वक जनता को यह बताने मैं सफल हो गए की गोवर्धन मैं जो प्रयोगशाला है जहाँ किसी का भी जाना वर्जित था, उसमें ही सब औरते लेजाई जाती है, जहाँ उनके शरीर पर अनेक तरह के प्रयोग मानव खेती को ले कर होते हैं जिनके कारण औरते मर जाती हैं, और उन्ही औरतो के शरीर को रसायन मैं गला कर यमुना मैं छोड़ दिया जाता है, जिससे यमुना प्रदूषित है| जबरदस्त विद्रोह हुआ, गोवर्धन प्रयोगशाला पर जनता ने कब्ज़ा कर लिया, उपद्रव बढता गया, और कंस का वध हो गया|
गोवर्धन की प्रयोगशाला बंद कर दी गयी, और उसे पूरी तरह से ढक दिया गया| इसके बाद वोह गोवर्धन पहाड़ कहलाने लगा, जिसकी परिक्रमा हिन्दू करते हैं, लकिन वहां से मट्टी, कंकड़ का टुकड़ा उठाना आज तक वर्जित है | गोवर्धन परिक्रमा हिन्दू समाज मैं अत्यंत लोक प्रिये है|
प्रयोगशाला बंद हो गयी, और बहुत से लोगो का सामान इस प्रयोगशाला मैं प्रयोग मैं आता था, जिससे समाज सुखी था| अब लोगो ने कंस का वध तो कर दिया, लकिन आर्थिक क्षति का समाधान भी तो ढूँढना था|
यमुना की सफाई मैं बलराम और श्री कृष्ण ने प्रमुख भूमिका निभाई, परन्तु अधिकाँश यादव लोगो को आर्थिक लाभ जेनेटिक इंजीनियरिंग से होरहे विकास से होरहा था, और उस समय मैं यदु वंश इस विषय पर बाकी सबसे अधिक निपुर्णता भी रखता था, तो वे जेनेटिक इंजीनियरिंग और मानव खेती का विरोध नहीं करना चाहते थे, और श्री कृष्ण को यह निर्णय लेना पड़ा की वे सीमित लोगो के साथ मथुरा छोड़ेंगे, और बलराम को भी उन्होंने मना लिया|
यह भी निर्णय हुआ कि प्रयोगशाला तो जेनेटिक इंजीनियरिंग के विकास के लिए अवश्य चाहीये, लकिन स्त्रियों पर प्रयोग वापस ना हो पाय, इसलिए द्वारिका में अंतराष्ट्रिये देख-रेख में वोह प्रयोगशाला चलेगी | सारे निर्णय यदुवंश के विकास के हित में थे, इसलिए सबकी सहमती भी होगई !
प्रत्यक्ष बात यह बताई गयी की भविष्य में प्रदुषण से यमुना जैसी प्रमुख नदी को प्रदूषित ना करा जाय, और समुन्द्र से घिरे हुए द्वारिका से इस कार्य को बिना समाज विरोध के करा जा सकता है | यही प्रमुख कारण है की कृष्ण और बलराम बिना अपने निकट सम्बन्धियों के द्वारिका चले आए|
श्री बलराम ने हमेशा मानव खेती को मानव समाज के लिए उपयुक्त माना और इसीलिये कौरव और दुर्योधन उन्हें प्रिये थे| यह श्री कृष्ण की कुशलता थी की वे अपने भ्राताश्री को उनके परस्पर विरुद्ध विचार के उपरान्त भी सदैव यह आभास दिलाते रहे कि सबकुछ उनके आदेश अनुसार ही हो रहा है| बलराम सुभद्रा का विवाह दुर्योधन से करना चाहते थे, और महाभारत युद्ध मैं वे कौरव के पक्ष मैं थे, क्यूँकी उनके अनुसार जेनेटिक इंजीनियरिंग और मानव खेती मानव हित मैं थी!
जैसा की उपर भी कहा गया है, यदु वंश को विशेष आर्थिक लाभ भी था, और महाभारत युद्ध से पहले, कृष्ण के सामने धर्म संकट आ गया कि वे इस समस्या का निवारण कैसे करें|
भ्राताश्री बलराम चाहते थे, कौरव का पक्ष लिया जाय, जनता को विशेष आर्थिक लाभ था, जेनेटिक इंजीनियरिंग, और मानव खेती से| स्वंम बलराम भी कौरव का साथ देना चाहते थे, लकिन कुछ इस तरह की प्रिये बहन सुभद्रा जो अर्जुन की पत्नी थी, और अभिमन्यु, जो मामा के साथ ही अब तक रहे थे, उनको भी स्नेह सन्देश दिया जा सके|
पांडव का महाभारत युद्ध मैं श्री कृष्ण का साथ, परन्तु इस वचन के साथ कि अस्त्र नहीं उठाएंगे, तथा सेना का प्रमुख अंश दुर्योधन को देना, बलराम को तीर्थ यात्रा पर भेजना, श्री कृष्ण का अपने भ्राताश्री, और जनता की और कुशल व्यवाहर की उपलब्धी ही है|
राधे राधे, जय श्री कृष्ण !
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