Thursday, October 17, 2013

कृष्ण ने कौरवो को सेना और बिना अस्त्र पांडवो का साथ युद्ध मैं क्यूँ दिया?

कष्ट की बात है, लकिन सत्य है, 
कि 
हिन्दू समाज को इतना कर्महीन बना दिया गया है कि वोह भौतिक स्तर पर इतिहास के उत्तर भी नहीं पूछता| 
और
धर्मगुरु भी यही चाहते हैं, की समाज पूरी तरह से भावनात्मक बना रहे, ताकी शोषण आसानी के साथ हो सके|आप ही उत्तर दीजिये, क्या आपने उपरोक्त प्रश्न कभी किसी धर्म गुरु से पुछा, और यदी पुछा तो क्या आपको इतिहास के परिपेक्ष मैं भौतिक आधार पर किसी ने उत्तर दिया?

यहाँ, इस ब्लॉग मैं आपको सारे उत्तर भौतिक आधार पर ही मिलेंगे~~
लकिन यहाँ के पाठक अपनी कर्महीनता से लड़ रहे हैं, और यह प्रश्न भी पाठको से आया की ‘धर्म युद्ध तो जीतना अनिवार्य था, तो श्री कृष्ण ने इसमें मुश्किले क्यूँ बढाई, आपनी सेना कौरवो को देकर और स्वंम इस वचनबद्धता के साथ युद्ध मैं उतरे की वे शास्त्र नहीं ग्रहण करेंगे’?

प्रश्न इसलिए महत्वपूर्ण है की भावनात्मक उत्तर तो आपको मिले हैं, की सब ईश्वर लीला है, और बहुत कुछ, लकिन भौतिक नहीं जिससे समाज सुधर सके, कर्मठ हो सके, विश्व प्रतिष्टित हिन्दू समाज हो सके| यह सारे प्रश्न पीछे की पोस्ट बलराम जिनको हलधर भी कहते हैं, एक सुसज्जित मानव खेती विशेषज्ञ’ के सम्बन्ध मैं आ रहे हैं; यह पोस्ट मुख्य पोस्ट से जुडी होई है|

सबसे पहले यह समझ लें की जब तक बहुत विशेष कारण नहीं होता, श्री विष्णु अवतार, श्री कृष्ण, जो की अवतार होने के कारण, उद्धारण से धर्म स्थापित कर सकते थे, वे ऐसा विशेष प्रबंध कभी न करते| यह एकदम सत्य है, की धर्मयुद्ध जीतना अनिवार्य था, और यह भी सत्य है की युद्ध विजय का लक्ष दिमाग मैं रख कर हर तरह की गलत, तथा विवाद्स्प्रध कार्य भी करने पड़ते हैं, 
तो श्री कृष्ण का नाम ले कर, बिना भावनात्मक हुए, इस विषय पर चर्चा करते हैं|

उस समय यदु(यादव) वंश जेनेटिक इंजीनियरिंग और मानव क्लोनिंग मैं निपुर्णता हासिल करे हुए था, और इस कारण उनको आर्थिक लाभ और समृद्ध समाज भी माना जाता था| स्वंम बड़े भ्राता, बलराम, एक सुसज्जित मानव खेती विशेषज्ञ थे, और इसी लिए वे कौरव का साथ देते थे|

आर्थिक लाभ और सामाजिक सुरक्षा सदा नीती निर्धारण मैं प्रमुख्य भूमिका और महत्वत्ता का विषय है, उसे ध्यान मैं रख कर ही नीती का निर्धारण होता है, और इस राज्य धर्म को श्री कृष्ण ने स्थापित करा; क्षमा करें, मेरे कहने का अभिप्राय यह है की राज्य धर्म तो श्री कृष्ण स्थापित कर चुके हैं, जो अत्यंत महत्वपूर्ण है, लकिन आपका शोषण हो सके इसलिए आपको बताया नहीं गया था| 

श्री कृष्ण यह समझ चुके थे, की यादव समाज कभी भी पांडव की तरफ से युद्ध के लिए सहमत नहीं होगा, कोइ समाज अपने पैर पर कुल्हाड़ी क्यूँ मारे? धन और प्रथिष्टा दोनों कौरव के साथ रहने मैं थी, तो यादव वंश अपना विनाश क्यूँ करेगा?

कुछ यही समस्या बलराम की भी थी, परन्तु वे अपनी प्रिये बहन सुभद्रा, जो की अर्जुन की पत्नी थी, उसे भी दुखी नहीं करना चाहते थे, इसलिए वे यह कह चुके थे, की वे चाहते हैं दुर्योधन का साथ, लकिन सुभद्रा के कारण वे स्वंम युद्ध नहीं लड़ेंगे, और तीर्थ यात्रा पर जायेंगे| यादव समाज भी चाहता था, की राजघराने की प्रिये बेटी के लिए द्वारका कुछ करे, लकिन युद्ध मैं यादव कौरव का ही साथ देना चाहते थे|

ऐसे मैं श्री कृष्ण का निर्णय की सेना तो दुर्योधन को मिलेगी, और राज्यघराने की प्रिये बेटी सुभद्रा, और उनके पुत्र को स्नेह सन्देश देने के लिए श्री कृष्ण पांडव का साथ देंगे, लेकिन इस वचन के साथ की अस्त्र नहीं उठाएंगे, अनेक विवादों को समाप्त करने के उद्देश से सही निर्णय था|
राधे, राधे, जय श्री कृष्ण !!!

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