Sunday, September 8, 2013

गणेश जी ने, कुछ शर्तो के साथ महाभारत लिखने की स्वीकृति देदी

महाऋषि व्यास मैं ज्ञान प्राप्ति पश्च्यात, प्रबल इच्छा जागृत होई की उन्हें महाभारत, भविष्य के मानव के हित के लिए लिखनी है| 
समस्या थी तो मात्र इतनी की इतने महान, और विशाल ग्रन्थ की परिकल्पना तो करी जा सकती है, क्या लिखना है, यह भी सोचा जा सकता है, बोला भी जा सकता है, बस समस्या थी कि साथ ही साथ लिखा भी जाना चाहिए| लिखने का काम करने मैं वे अपने आपको असमर्थ पा रहे थे|
अपने तप से उन्होंने परम इश्वर ब्रह्माजी से बात करी और अपनी यह समस्या बताई, और उनके सुझाव पर उन्होंने गणेश जी को अपने तप से प्रसन्न करा, और अनुरोध करा की वे महाभारत लिखने मैं उनकी सहायता करें|

“मुझे लिखना स्वीकार है, बस यह सुनिश्चित करना होगा की मेरी लेखनी रुके नहीं”, गणेश जी ने कहा| 
व्यास जी ने कुछ सोच कर उत्तर दिया कि उन्हें यह स्वीकार है, और अनुरोध करा की गणेश जी बिना समझे कुछ न लिखे, जिसके लिए गणेश जी तैयार हो गए|
तत्पश्चात महाकाव्य जिसे हमसब महाभारत के नाम से भी जानते हैं, वोह लिखी गयी|
आगे महाभारत पर विस्तृत चर्चा होगी, और इस संवाद को ध्यान मैं रख कर ही चर्चा हो सकती है| पहले तो यह अच्छी तरह से समझना होगा की किसी भी व्यक्ती के पास, इतिहास मैं, अलोकिक और चमत्कारिक शक्ती नहीं हो सकती| फिर गणेश-व्यास संवाद की महत्वता क्या है?
गणेश जी की प्रथम पूजा होती है, वे समस्त विग्न, बाधा का नाश करते है, और यदी अलोकिक शक्ती के बिना सब समझना हैं, तो इस संवाद का क्या महत्त्व है? इससे कुछ सन्देश तो अवश्य मिल रहे हैं, जिन्हें स्वीकार करे बिना आप इस महाकाव्य का पूरा लाभ नहीं ले सकते| एक सन्देश तो एकदम स्पष्ट है, की आपको इसे समझने मैं विग्न बाधा आयेगी| ध्यान रहे, माता सरस्वती की जगह, स्थान गणेश जी को दिया गया है, और यह मैं इसलिए कह रहा हूँ, की विद्या की देवी माता सरस्वती हैं, और यहाँ यह तो स्पष्ट है की समझने मैं विग्न बाधा आयेगी, अर्थात भाषा का अद्भुत ज्ञान ही पर्याप्त नहीं है, इसलिए गणेश जी से आशीर्वाद माँगा गया है, और वोह भी, समझने की बात है कि “बिना समझे कुछ न लिखे”, यानी की अगर गणेश जी को समझने मैं समय लग सकता है, तो साधारण मानव के लिए तो इसे समझने मैं पर्याप्त विग्न बाधा हैं|
गणेश-व्यास संवाद से इस बात को बल मिलता है की सनातन धर्म के समस्त ग्रन्थ कोडित हैं, और जैसा, बहुत से बुद्धिजीवो का मत है, ‘स्तोत्र’ का अर्थ होता है, “कोडित भाषा”|

ध्यान रहे, अवतार से सम्बंधित कथा, मात्र एक ऐसी ढोस व्यवस्था है जिससे धर्म के स्वरुप मैं सकारात्मक बदलाव लाया जा सकता है, इसके अतरिक्त साधू संतो का प्रवचन तो एक स्थाई मीडियम है, जो की हिन्दू समाज को उपलब्ध है| सनातन धर्म मै यह असाधारण व्यवस्था है की धर्म मैं भावना और कर्म के अनुपात को बढ़ाया, घटाया जा सकता है, समाज की स्तिथी के अनुसार| जब समाज अशिक्षित था, सूचना का अभाव था, तो भावना के अनुपात को बढ़ने के लिए अवतार की कथा को अलोकिक शक्ती के साथ जोड़ दिया जाता है, और जब गुलाम हो गया था, जैसा की पिछले १००० वर्ष मैं था, तो साधू संतो ने, कर्म के भाग को करीब करीब समाप्त ही कर दिया था|

वैसे इसे कोइ स्वर्ण नियम ना समझलें, क्यूँकी सनातन धर्म अस्तव्यस्तता मैं विश्वास रखता है, पूर्णता मैं नहीं, और साधू संत या नियंत्रण समिती समाज की स्तिथी अनुसार निर्णय लेती है|
तभी एक बार फिर से सनातन धरम मैं जो आवश्यक व्यवस्था है, उसका उल्लेख फिर से कर रहा हूँ:
सनातन धर्म मैं अवतार का स्वरुप, कम विकसित और अशिक्षित समाज के लिए, अलोकिक शक्ती की चादर के साथ होता था, जैसा की आजादी से पहले था |

और

विकसित , शिक्षित समाज के लिए, बिना अलोकिक शक्ती और चमत्कारिक शक्ती के , जैसा की आजादी के बाद के समाज के साथ होना था, परन्तु नहीं हुआ| 
उद्धारण:यदी आप रामायण बिना बिना अलोकिक और चमत्कारिक शक्ति के समझेंगे तो आप पायेंगे की श्री विष्णु का राम अवतार का उद्देश इस प्रकार था ::
1. स्त्रियों पर विभिन् प्रकार के अत्याचारों को समाप्त करना, तथा अग्नि परीक्षा जैसा असामाजिक शोषण, जिसको धार्मिक मान्यता भी प्राप्त थी उसे अधर्म घोषित करना!

2. कमजोर वर्ग को सामान्य अधिकार समाज में दिलाना! वानर नई प्रजाति थी जो सतयुग में प्राकर्तिक विकास से उत्पन्न होई थी, और जिनके पूँछ थी ! वानर जाती को मनुष्य समाज ने तथा समस्त राज्यों ने मनुष्य मानने तक से इनकार कर रखा था, और उनके साथ जानवर जैसा दुर्व्यवहार होता था !

3. एक ऐसे राज्य की स्थापना करना जिसमें किसी तरह का अत्याचार न हो, समाज में धन, जाती, या उत्पत्ति के नाम पर कोइ भेद भाव न हो, तथा निष्पक्ष न्याय हो! इसी राज्य को हमसब राम राज्य के नाम से भी जानते हैं
ध्यान रहे आप प्रमुख्य उद्देश बिना अलोकिक और चमत्कारिक शक्ति के ही समझ सकते हैं|

अब यह तो होगयी समान्य बात, जिसको समझने के बाद ही गणेश-व्यास संवाद को समझने का प्रयास कर सकते है|

अगली पोस्ट मैं आप से चर्चा करेंगे : “महाभारत मैं विशेष कोड जिसे समझ करही गीता और ग्रन्थ का पूर्ण लाभ मिल सकता है
इससे पहले महाभारत के अतिरिक्त बाकी सब ग्रन्थ मैं क्या कोड है, वोह एक बार फिर से समझ लें:

1. अलोकिक शक्ति हटाना ही पर्याप्त है, और उस समय के इतिहास का निर्माण उस समय की स्तिथी तथा भूगोलिक स्तिथी के अनुकूल करना होगा,

2. ध्यान रहे इतिहास की प्रस्तुति सदेव वर्तमान समाज के हित मैं रख कर ही करनी होती है, और आवश्यकता हो, तो  व्याख्या और अंतर्वेषण(INTERPRETATION and INTERPOLATION)  का प्रयोग करा जा सकता है|

3. महाभारत मैं इसके अतिरिक्त और भी कुछ करना होगा|

राधे राधे, जय श्री कृष्ण !!!

1 comment :

Mohan Srivastav poet said...

सुंदर प्रस्तुति,आप को गणेश चतुर्थी पर मेरी हार्दिक शुभकामनायें ,श्री गणेश भगवान से मेरी प्रार्थना है कि वे आप के सम्पुर्ण दु;खों का नाश करें,और अपनी कृपा सदा आप पर बनाये रहें...

ABOUT ME:

A Consulting Engineer, operating from Mumbai, involved in financial and project consultancy; also involved in revival of sick establishments.

ABOUT MY BLOG: One has to accept that Hindus, though, highly religious, are not getting desired result as a society. Female feticide, lack of education for girls, dowry deaths, suicides among farmers, increase in court cases among relatives, corruption, mistrust and discontent, are all physical parameters to measure the effectiveness or success/failure of RELIGION, in a society. And all this, despite the fact, that spending on religion, by Hindus, has increased drastically after the advent of multiple TV channels. There is serious problem of attitude of every individual which need to be corrected. Revival of Hindu religion, perhaps, is the only way forward.

I am writing how problems, faced by Indian people can be sorted out by revival of Hindu Religion.