महाभारत मैं एक और विशेष बात है, श्री कृष्ण की गीता!
क्या है गीता? क्या गीता धार्मिक उपदेश है?
नहीं, बिलकुल नहीं, क्यूँकी गीता की रचना युद्ध-भूमी पर करी गयी है, और युद्ध-भूमी पर धार्मिक उपदेश उसको दिया जाता है, जो मृत्युपूर्व की घायल और गंभीर अवस्था मैं हो, युद्ध आरम्भ के समय प्रेरणा रूपी उपदेश दिया जाता है, और गीता प्रेरणा रूपी उपदेश ही है, जो स्वंम श्री कृष्ण ने अर्जुन को दिया है, और जिसके लिए भीष्म पितामह की सिर्फ इतनी ही टिप्पणी थी की इसकी एक लाइन भी उनके कान मैं पड़ जाय तो उनका जीवन सवर जाए|
और यहाँ पर एक से एक संस्कृत के ज्ञाता, गीता का संस्कृत से, अलग अलग भाषाओ मैं अनुवाद कर रहे हैं, और ताकी उनके अनुवाद को मान्यता मिले और उचित मूल पर बीक सके, यह भी कह रहे हैं की गीता सर्श्रेष्ट धार्मिक उपदेश है|
गीता सर्वश्रेष्ट प्रेरणा रूपी सोत्र है, जिसकी एक लाइन समझ मैं आ जाए तो जीवन सवर जाएगा, हिन्दू समाज कर्मठ हो जाएगा, सशक्त हो जाएगा| यही कारण है की गीता अत्यंत विशेष धार्मिक स्तोत्र है| बस समस्या इतनी है की गीता के अनुवाद से अनेक ज्ञान हमें मिलते हैं, जिसपर हमें गर्व है, लकिन प्रेरणा नहीं मिलती| अगर प्रेरणा मिलती तो कम से कम हिन्दुस्तान से भ्रष्टाचार समाप्त हो जाता| सबसे विनर्म अनुरोध है, की कमसे कम यह बात तो समाज को बताओ की गीता के अनुवाद से प्रेरणा जो मिलनी चाहिए वोह नहीं मिल रही है|
इसका सीधा अर्थ यह भी हुआ की कोइ भी अनुवाद गीता के प्रमुख उद्देश को पूरा नहीं कर पाया है, जो है समाज को प्रेरणा देना | कष्ट की बात तो यह है की कोइ भी गीता का अनुवाद समाज को तो क्या, धर्म गुरु को भी प्रेरणा दे नहीं पाया की वे शोषण का मार्ग छोड़ कर समाज हित मैं सोचना शुरू करदें|
समस्या यह है कि हर विषय पर धार्मिक व्यक्तियों की सोच नकारात्मक हो गयी है, और उन्होंने यह मान लिया है, की गलत बात का भी स्पष्टीकरण दे दो, और बात समाप्त ! उन्हें यह समझना होगा की भौतिक मापदंड ही निर्णायक है, भावनात्मक नहीं|
समस्या यह है कि हर विषय पर धार्मिक व्यक्तियों की सोच नकारात्मक हो गयी है, और उन्होंने यह मान लिया है, की गलत बात का भी स्पष्टीकरण दे दो, और बात समाप्त ! उन्हें यह समझना होगा की भौतिक मापदंड ही निर्णायक है, भावनात्मक नहीं|
अब वापस विशेष कोड़ पर; क्या है विशेष कोड?
फिर से दोहरा देते हैं, बाकी सब ग्रन्थ को समझने के लिए मात्र निम्लिखित कोड पर्याप्त है:
1. अलोकिक शक्ति हटाना ही पर्याप्त है, और उस समय के इतिहास का निर्माण उस समय की स्तिथी तथा भूगोलिक स्तिथी के अनुकूल करना होगा,2. ध्यान रहे इतिहास की प्रस्तुति सदेव वर्तमान समाज के हित मैं रख कर ही करनी होती है, और आवश्यकता हो, तो व्याख्या और अंतर्वेषण(INTERPRETATION and INTERPOLATION) का प्रयोग करा जा सकता है|3. महाभारत मैं इसके अतिरिक्त और भी कुछ करना होगा|
विशेष कोड:
महाभारत को समझने के लिए एक बात अवश्य ध्यान मैं रखनी है; पूरे ग्रन्थ को आप पढ़ लें, आपको ‘संतोष-जनक’ उत्तर इस बात का नहीं मिलेगा की क्या धर्म था, जिसके लिए महाभारत युद्ध लड़ा गया? और यही विशेष कोड है| चुकी महाभारत युद्ध विश्व युद्ध था, इसलिए धर्म आपको वर्तमान विश्व मैं निकट भविष्य मैं क्या अत्यंत गंभीर समस्या संभावित है, उसको सोच कर स्वंम निर्धारित करना है| तथा कोड की सुन्दरता यह है कि जब उस संभावित विश्व समस्या के समाधान को धर्म मान कर आप महाभारत समझेंगे, तो पूरी महाभारत आपको समझ मैं आयेगी, इससे पहले आप महाभारत नहीं समझ सकते|
इस विशेष कोड के लिए केंद्र-बिंदु वर्तमान विश्व है, न की जैसा बाकी सब पोस्टो मैं कहा गया है वतमान हिन्दू समाज|
यह भी समझ लीजिये, और मान लीजिये कि आगे कुछ हज़ार वर्षो बाद, कोइ और गंभीर समस्या आयेगी, विश्व के सामने, उस समय तब का धर्म भी महाभारत को उस समय के समाज को समझाने के लिए होगा|
क्या अब भी आप नहीं मानते की सनातन धर्म स्वंम इश्वर ने मानव को दिया है ?
महाभारत एक व्यापक नरसंघार का इतिहास है, जो स्वम श्री विष्णु अवतार श्री कृष्ण के संरक्षण मैं हुआ, और अवतरित भगवान्, पूरा प्रयास करके भी इस नरसंघार को नहीं रोक पाए, और अंत मैं यह इश्वर अवतार श्री कृष्ण का ही निर्णय था की इस नरसंघार के अतिरिक्त श्रृष्टि के पास कोइ विकल्प नहीं है, आगे बढ़ने का| और इसका सबसे बड़ा प्रमाण है, श्री कृष्ण ने प्रतिज्ञा ली युद्ध-भूमी मैं अस्त्र नहीं उठाएंगे, और अपनी पूरी सेना कौरव को देदी; संकेत स्पष्ट है, नरसंघार के बाद ही युद्ध जीता जाएगा, और अस्त्र न उठाने का अर्थ था की पूरी श्रिष्टी का संघार नहीं होना है |राधे राधे, जय श्री कृष्ण !
महाभारत मैं धर्म युद्ध मैं क्या धर्म था, जानने के लिए पढीये:
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