Tuesday, September 3, 2013

सनातन श्रेष्ट सिद्ध धर्म है क्यूँकी सुर असुर के सामंजस्य को स्वीकारता है

पोस्ट सनातन धर्म पूर्णता मैं नहीं अस्तव्यस्तता मैं विशवास करता है’ 
को लेकर अनेक टिप्पणी आ रही हैं, और लोग इसपर और प्रमाण चाहते है की यह कैसे कहा जा रहा है, कि ‘पूर्णता मैं नहीं अस्तव्यस्तता मैं विशवास करता है’|
सत्य यह है की सनातन धर्म उत्तम और सिद्ध धर्म इसलिए है की वोह ‘पूर्णता मैं नहीं अस्तव्यस्तता मैं विश्वास करता है’|
अंग्रेज़ी मैं भी कह देता हूँ, की ‘Sanatan Dharm is Perfect, Impeccable, Surpassing, because it believes in Chaos, and NOT in Perfection’
अंग्रेज़ी मैं भी इसपर विरोध हो रहा है, की ‘How can one say that Sanatan Dharm is not PERFECT and believes in Chaos’. इसी को हिंदी मैं कहा जाय तो ‘Perfect’ की जगह ‘उत्तम’ हो जाएगा, और यह तो कहीं बात हो नहीं रही की सनातन धर्म उत्तम और सिद्ध धर्म नहीं है, फिर से सुन लीजिये यह कहीं नहीं कहा गया है|
फिर क्या अंतर है उन धर्म/Religion मैं जो ‘पूर्णता’ मैं विश्वास करते हैं, और उनमें जो अस्तव्यस्तता मैं विश्वास रखते हैं?

कारण क्या है कि ‘धर्म अस्तव्यस्तता मैं विश्वास रखता है’, इसे स्वीकार करना मुश्किल है? पहले तो आप यह समझ लें की क्यूँकी धर्म का स्वरुप इश्वर के बराबर माना गया है, और इश्वर तो पूर्ण है, इतना पूर्ण है की परिभाषित भी नहीं हो सकते, तो उनका बनाया हुआ धर्म पूर्ण क्यूँ नहीं होगा| सबसे पहले हर व्यक्ति के मन मैं यह सोच आती है|

अब मैं यहाँ पर सिर्फ चर्चा मैं दो और धर्म/Religion की बात करुंगा, वे हैं, इसाई और इस्लाम| यह दोनों धर्म/Religion एक ही सिद्धांत को लेकर बने की इश्वर ने दुनिया की रक्षा के लिए यह धर्म/Religion निर्धारित करा है, और ईसाई पहले आए, तो उन्होंने कहा की ईसा इश्वर के पुत्र थे, जो यह सन्देश ले कर आए, और इस्लाम बाद मैं आया तो उन्होंने कहा कि पैगम्बर मुहम्मद अल्लाह के पैगंबर थे, और दोनों ही नियमवध धर्म बन गए|

सख्त नियम बने, और पहले ईसाईयों ने जोर जबरदस्ती करी अपनी धर्म/Religion का विस्तार करने के लिए और इस्लाम आने के बाद कुछ और क्रूर अंदाज़ से जोर जबरदस्ती हुई| इसका एक और परिणाम है की जब से यह दोनों मजहब आए हैं, परस्पर आपस मैं लड़ रहे है, और इसका साक्षी लिखा हुआ इतिहास है !

ध्यान रहे कि जब इश्वर पूर्ण है, तो उनका बनाया हुआ मजहब कैसे पूर्ण नहीं होगा, इसी सोच से यह दोनों मजहब बने हैं|

सनातन धर्म, इश्वर पूर्ण है, यह अवश्य मानता है, लकिन यह भी स्वीकार करता है , की जहाँ हर व्यक्ति कर्मो को भोगते भोगते, मोक्ष की और बढ़ जाता है, वहां उसी व्यक्ति से बना हुआ समाज अच्छे और बुरे मैं सामंजस्य न बना पाने के कारण प्रलय की और बढ़ता है|
यह पोस्ट सीधे मुख्य पोस्ट ‘सनातन धर्म पूर्णता मैं नहीं अस्तव्यस्तता मैं विशवास करता है’, जिस पर जिज्ञासा व्यक्त करी जा रही है, उससे जुडी हुई है, यानी की आपको दोनों पोस्ट साथ मैं पढनी होगी तभी प्रश्नों का उत्तर मिल पायेगा|
जैसे की मुख्य पोस्ट मैं कहा गया है, सनातन धर्म, सुर और असुर के सामंजस्य को स्वीकारता है, और इसी कारण अलग है| जहाँ सब मजहब उत्तम, निष्कलंक, दोषहीन स्तिथी लाने का वायदा करते हैं, सनातन धर्म सुर और असुर मैं सामंजस्य की बात करता है| सामंजस्य बिगड़ा, वहां अस्तव्यस्तता आ जाती है| यही स्तिथी समाज मैं है, जहाँ असुर का स्थान शक्तिशाली लोगो का स्वार्थ ले लेता है, और सामंजस्य बिगड़ने पर अस्तव्यस्तता आ जाती है| और पुराण जो की वास्तव मैं प्राचीन मानव इतिहास है, वोह ऐसे अनेक व्र्तान्तो से भरा पड़ा है| स्वंम श्री विष्णु को अवतार लेने पड़े क्यूँकी इस अस्तव्यस्तता के कारण श्रृष्टि विनास की और चल दी , और समाधान नहीं हो पा रहा था |

पूर्णता मैं आवश्यक है नियम प्रधान धर्म/Religion जो की इसाईयों/मुसलमानों मैं है, लकिन सनातन धर्म मैं कोइ नियम नहीं है| वोह वर्तमान समाज को केंद्र-बिंदु मान कर आगे बढ़ता है, ऐसे मैं धर्म अगर गलत हाथो मैं आ जाय, तो श्रृष्टि विनाश की और बढ़ जाती है| अभी हाल की १००० वर्ष की गुलामी भी इसका उद्धारण है, जब चाणक्य का उद्धारण सामने होते हुए भी छोटे छोटे राज्य, तथा उनके राज-गुरु एक जुट नहीं हो पाय, और विदेशी हमलावरों ने भारत पर अधिकार जमा लिया| जबरदस्त ज़ुल्म हुए, लकिन यह भी निश्चित है की ज़ुल्म उतने भी नहीं हुए जितने त्रेता युग और द्वापर युग मैं हुए थे, क्यूँकी इश्वर को अवतार नहीं लेना पड़ा|

अस्तव्यस्तता के कारण समय समय पर बदलते रहते हैं, अगर त्रेता युग मैं मनुष्य की नई प्रजाती वानरों के और महिलाओ के साथ दुर्व्यवाहर प्रमुख कारण थे, तो द्वापर युग मैं मानव क्लोनिंग| ऐसे मैं नियम प्रधान धर्म कैसे सफल हो सकता है| इस समय विश्व पर प्रदुषण के कारण गंभीर संकट है, कल कोइ और समस्या हो सकती है| सनातन धर्म इस अस्तव्यस्तता को स्वीकार करता है, और वर्तमान को केंद्र-बिंदु मान कर आगे बढ़ता है|
राधे राधे...जय श्री कृष्ण !!!

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