Sunday, June 9, 2013

हिंदू समाज मैं जाति समीकरण सतयुग से ही प्रारंभ था

कठोर परिस्थीतिओं और सामाजिक न्याय के नियमों में अंतर होताहै; समुन्द्र में रहते होए लोग अपराध करते पकडे जाते, उनसे दंड स्वरुप वोह कार्य करवाया जाता जो कोइ नहीं करता था| यहीं से जाति प्रथा आरम्भ होई
कलयुग के अंत मैं मानव द्वारा संसाधन का अंधाधुन्द, अविचारपूर्ण, और विवेकहीन उपयोग से ऐसा समय आएगा, जब पृथ्वी धीरे धीरे जलमग्न होने लगेगी| इसमें कुछ प्राकृतिक विपदा भी सहायक होंगी| उस समय पूरे विश्व से, जिनकी क्षमता है, या जो पानी के जहाज के मालिकों के नज़दीक है, या सत्ता के नज़दीक हैं, यह सोच कर की कुछ समय की समस्या है, पानी के जहाज़ मैं सुरक्षा हेतु चले जायेंगे| 

लकिन उन्हे यह नहीं मालूम होगा की यह इस महायुग और अगले महायुग के अंतराल का संधिकाल है, जो की लाखों वर्ष का है, और अब वे, और उनके अनेक, अनेक पीढ़ी, समुद्र मैं सतयुग की प्रतीक्षा करेंगे| विस्तार के लिए पढ़ें : कलयुग का अंत..एक नए कल्प का प्रारम्भ और मत्स्य अवतार 
अब सीधे उपरोक्त पोस्ट से उद्धत कर रहा हूँ : 
'इसका उल्लेख प्राचीन ग्रंथो में भी है, जहां मनु को यह आभास हो जाता है कि पृथ्वी जलमग्न होने वाली है| यह पोस्ट इसलिये भी आवश्यक है कि आप समझ सकें कि मनु शब्द का प्रयोग क्यूँ करा गया है! मनु, मानव, मेंन, मादा, मनिटो, आदि अनेक शब्द विभिन् भाषा में प्रयोग करे जाते है, मनुष्य के लिये ! चुकी विश्व भर से समुन्द्री जहाज़ निकले थे तो हर युग के वासियों को समझाने के लिये इससे उत्तम और कुछ नहीं था, कि जहाज़ के बेडे का नायक मनु था !

जरा देखें: पृथ्वी के जलमग्न होने के बाद कुछ पर्वत की चोटी ही बची थी ! धीरे धीरे सब कुछ स्थिर सा होता जा रहा था ! यहाँ तक कि समुन्द्र भी अब शांत हो गया ! लहरे अब समुन्द्र में नहीं उठ रही थी ! विज्ञानिक दृष्टी से इसका अर्थ होआ कि राहू और केतु समाप्त हो गए! अर्थार्थ राहू और केतु, जो कि चन्द्र के कक्षीय नोड्स हैं वोह अब स्थिर हैं या यूँ कहीये कि चन्द्रमा अपनी धूरी सूर्य के संधर्भ में नहीं बदल रहा है ! समुन्द्री जीवन भी धीरे धीरे लुब्ध होता जारहा था! पहले जितनी मछलीयाँ दिख रही थी, वोह धीरे धीरे कम होती जा रही थी, अब आसानी से मछली उपलब्ध नहीं थी ! भोजन की समस्या हो चली थी !

धीरे धीरे आधुनिक तकनीक से बनाए होए पानी के जहाज़ संसाधन और इंधन के अभाव से तोड़ फोड कर पुराने ढाचे के कर दिये गये! अब हर मनुष्य को काम करना पड़ रहा था ! यह सही था कि वोह पहाड़ियों कि चोटी जो अब टापू कहलाने लगे थे, पर जा कर रहने का प्रयास कर सकते थे, लेकिन वहाँ पर लूट मार कि वजह से वोह असुरक्षित थे !

अब कुछ लोग भोजन के आभाव में मनुष्यों को मार कर उनका मांस खाने लगे थे! उनको राक्षस कहा जाने लगा ! उनसे भी बचने का एक ही विकल्प था कि समुन्द्र में ही रहा जाय| समुन्द्र में अन्य मित्र जहाजों के साथ वोह ज्यादा सुरक्षित थे ! इश्वर की कृपया कहीये, या प्रकृति का स्वरुप, भारत उपमहाद्वीप जो कि अब जल मग्न था, सिर्फ वहीं पर मछली उपलब्ध थी ! सारे समुन्द्री जहाज़ वहीं पर विचर रहे थे!
इसी संधर्भ में मत्स्य अवतार का अर्थ समझ में आता है|

अब इसी पोस्ट मैं थोडा नीचे से:

'इतने लंबे समय कठोर परिस्थीतिओं में जीवित रहने के लिये नियम भी बनाए गए| कठोर परिस्थीतिओं में जीवित रहने के लिये नियम और सामाजिक न्याय के परिपेक्ष में जो नियम बनते हैं उनमें अंतर होता है !

समुन्द्र में रहते होए कुछ लोग अपराध करते होए पकडे जाते थे, उन्हे मारने या कोइ अन्य दंड देने से अच्छा था कि जो काम कोइ नहीं करता था, दंड स्वरुप वोह कार्य इन दण्डित लोगो से करवाया जाय ! उनको शुद्र कहा जाने लगा ! 

इन्ही कठोर परिस्थीतिओं ने अन्य जाती भी उत्पन करी, तथा इन्ही कठोर परिस्थीतिओं के कारण यह जाती जन्म जाती भी बन गयी ! इसी परिपेक्ष में मनु स्मृति समझ में आती है !

वास्तव में मनु स्मृति उस लंबे और कठोर परिस्थीतिओं में जीवित रहने के लिये बनाए गए नियम थे ! उनका आज के सामाजिक न्याय के जीवन में कोइ अर्थ नहीं है ! वैसे भी स्मृति का अर्थ होता है LOG BOOK.; समुन्द्र में रहने के लिये बनाए गए नियमों को LOG BOOK ही कहा जाता है, अर्थार्थ स्मृति, ना कि धार्मिक ग्रन्थ! विशेष परिस्तिथी समाप्त होने पर स्मृति अर्थहीन होजानी चाहीये थी, लेकिन हमें यह भी समझना होगा कि इस कठोर यात्रा के सफल यात्री में अन्य गुण के अतरिक्त अवसरवादी होना भी आवश्यक था ! 

ऐसी यात्रा वही सफलता पूर्वक कर सकता था जिसमें हर स्तिथि में जीवित रहने के गुण हों ! इसलिये संभवतः निजी स्वार्थ हेतु, जाती और मनुस्मृति समाप्त नहीं हो पाई!’

तो यह है मनु स्मृति जो उस समय के शक्तिशाली लोगो के कारण समुद्र का सफर समाप्त होने के बाद भी जीवित रह गयी| कितनी कष्टदायक बात है, और इससे भी ज्यादा कष्ट की बात यह है कि हिंदू समाज के धर्म-गुरु, आज के सूचना युग मैं पूरी मेहनत कर रहे हैं की इस विषय पर पर्दा पड़ा रहे| केवल दिखावे के लिए कभी कभी जाति समीकरण के विरुद्ध ब्यान दे देते हैं|

ध्यान रहे हर युग की भौतिक सच्चाई पर पर्दा ना पड़ सके, इसलिए पुराण हैं| चुकी रामायण और महाभारत का उल्लेख भी पुराणों मैं है, तो वर्तमान हिंदू समाज को धर्म जो मिलेंगे, वे मात्र श्री विष्णु अवतार श्री राम और श्री कृष्ण के जीवन काल के उद्धारण से मिलेंगे, लकिन वोह हमारे धर्मगुरु और संस्कृत विद्वान नहीं चाहते, ... चाहते नहीं, वे रामायण और महाभारत से अलोकिक और चमत्कारिक शक्ति की मिथ्या की चादर हटाना नहीं चाहते |

जाति की उत्पत्ति कैसे होई, अब आपको मालूम पड़ गया, समाज के अंदर बदलाव कैसे लाना है, यह आपको सोचना है| धर्म-गुरु केवल धन और शक्ति मैं रुचि रखते हैं, इसलिए वे कुछ करेंगे नहीं, हमसब साधारण हिंदुओं को ही कुछ करना होगा|

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