सभ्यताएं नष्ट होने पर भावनात्मक प्रचार करा गयाकी धीरज रखो, कलयुग है| कलयुग बुरा है ऐसे श्लोक भी पुराणोंमें उपलब्ध हैं| गुलामी मैं धर्म परिवर्तन से बचने केलिए धर्म का भावनात्मक भाग और बढ़ा दिया गया~~वैसे सत्य यह हैकी सनातन धर्म के अनुसार सबसे श्रेष्ट युग कलयुग, तथा मानव समाज केलिए पूरी तरह से बेकार युग था सतयुग| है न चौकाने वाली बात !
इस समस्या का समाधान आपके हाथ मैं है| समस्या विश्वास की है, की हम कह तो देते हैं की सनातन धर्म, जब समय का जन्म हुआ, उसके पश्चात, या साथ साथ ही उत्पन्न हुआ था, लकिन इस पर विश्वास नहीं करते|
आपसब युग और युग के इतिहास का उल्लेख करते है, कैसे समझेंगे आप युग, युग परिवर्तन को, सत्ययुग और त्रेता युग के इतिहास को, जब आप सनातन धर्म मैं दिए गए मापदंडो का प्रयोग कर के, और पुराणोंमें जो संकेत दिए हैं , उनका प्रयोग करके आपने कभी भी उन युगों की भूगोलिक और सामाजिक स्थिति का आकलन नहीं करा और ना ही निर्माण करा |
महाभारत युद्ध के पश्चात, संघार के कारण, सभ्यताएं नष्ट हो गयी, आज के विज्ञान को, महाभारत के समय के परमाणु विस्फोट के भी अवशेष मिले हैं|
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1. सभ्यताएं नष्ट होने सम्बंधित
हरप्पा और मोहन-जू-दारो की खुदाई मैं यह स्पष्ट पाया गया की पुरानी सभ्यताएं ज्यादा विकसित थी, और उनके उपरान्त जब नई सभ्यताएं आई वे कम विकसित थी|पुरानी सभ्यताएं क्यूँ समाप्त हो गयी इसके बारे मैं किसी ठोस निष्कर्ष पर नहीं पहुचे है विज्ञानिक| स्पष्ट है की युधिष्टिर का वंश महाराज परीक्षित के बाद एक या दो पीढ़ी ही चल पाया| Indus Valley Civilization
2. महाभारत मैं परमाणु विस्फोट सम्बंधित : ANCIENT CITY FOUND, IRRADIATED FROM ATOMIC BLAST
उस समय तो धर्म पाखंडियों के हाथ मैं था नहीं; धर्म तब सुलझे और शिक्षित धर्म गुरजानो और ब्रह्मणों के हाथ मैं था| सत्य तो यह है की पाखंडियों के हाथ मैं धर्म सिर्फ पिछले ६५ वर्षों से ही आया है|
सभ्यताओं के नष्ट होने के पश्च्यात सान्तवना देने के लिए यह भावनात्मक प्रचार करा गया की धीरज रखो, कलयुग है, घोर युग है, इसलिए यह सब हो रहा है| इस उद्देश से अनेक श्लोक भी पुराणोंमें उपलब्ध हैं| इसके बाद हिन्दुस्तान गुलामी की चपेट मैं आ गया और धर्म परिवर्तन से बचने के लिए धर्म का भावनात्मक भाग और बढ़ा दिया गया, और संतो ने इसमें सरहानीय कार्य करा| स्वंम गोस्वामी तुलसीदास जी ने कुछ धर्म प्रचारकों के विरोध के होते हुए भी, भक्ति रस मैं डुबो कर रामचरितमानस की रचना करी| चुकी यह १००० वर्ष का गुलामी का समय अभी हाल ही का है, तो इतिहास और बर्बरता सबको मालूम है | ऐसे मैं भावनात्मक सांत्वना देने के लिए कलयुग को और बुरा बना दिया गया और सब युगों को अच्छा| यह भी समझा दिया गया की सत्ययुग मैं धर्म के चारों चरण उपलब्ध थे, त्रेता मैं तीन, द्वापर मैं दो, और कलयुग मैं मात्र एक|
जबकी सत्य आपको तब पता पड़ेगा जब सनातन धर्म मैं जो मापदंड दिए हैं, उनका प्रयोग करके आप भूगोलिक और सामाजिक युगों का निर्माण करें| ध्यान रहे, सनातन धर्म के अतिरिक्त न तो कोइ इन युगों को मानता और ना ही कही मापदंड उपलब्ध हैं| वैसे सत्य यह है की सनातन धर्म के अनुसार सबसे श्रेष्ट युग कलयुग, तथा मानव समाज के लिए पूरी तरह से बेकार युग था सतयुग| है न चौकाने वाली बात|
ध्यान रहे अभी तक आपको युगों का निर्माण इस पोस्ट से सिर्फ २ प्रकार से करने को कहा गया है, भूगोलिक और सामाजिक| इसके अतिरिक्त खगोलिक निर्माण भी आवश्यक है क्यूँकी महाऋषि वाल्मिकी ने श्री राम के जन्म के खगोलिक संकेत ही दिए हैं ओर युगों का स्वरुप भौतिक होता है, और खगोलिक शास्त्र के परिपेक्ष मैं ही इनकी भौतिक परिभाषा होनी आवश्यक है | आजादी से पहले यह संभव नहीं था, और आजादी के बाद हमारे धर्म गुरुजानो को न तो इतना ज्ञान है, न समय और न ही धार्मिक संस्थाओं ने यह प्रश्न उठाया|
समय परिवर्तन देखा जाए तो हिन्दुस्तान के आज़ाद होने के पश्चात ही आया है| आज हिंदू समाज विकास की और अग्रसर है, समाज मैं क्षमता है की इन सब विषयों पर सूचनाके आधार पर आगे शोघ करे| हमारे पास पूरे विश्व का प्राचीन इतिहास धरोहर के रूप मैं है, लकिन न तो हम स्वंम उसका लाभ ले सके, ना ही विश्व को इससे अवगत करा सके |
आवश्यकता है, बिना विलम्ब आवश्यकता है, एक केन्द्रिय सनातन धर्म नियंत्रण समिति(सप्त ऋषि समिति) की जो उचित दिशा निर्देश दे|
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