Friday, May 3, 2013

युग युगान्तर से वही समस्या, समाधान भी मालूम है, पर कोइ लाभ नहीं

धर्म नाश मैं धर्मगुरु पतन की और बढते हैं, फिर समाज पतन की और जाता है| इसलिए धर्मगुरु-जनो पर नियंत्रण और संतुलन समाज का रहता था, नहीं तो स्वंम और समाज को डुबो देते हैं| आज भी समाज पतन की और बढ़ रहा है
जी हाँ, असली समस्या यही है; समस्याओं मैं कभी कोइ बदलाव नहीं आता, चाहे वे समस्या सतयुग की हों, चाहे त्रेता युग की, और चाहे वर्तमान समाज की| समस्या वही होती हैं; समाधान भी हम सबको मालूम होता है, परन्तु सफलता नहीं मिलती| इसे आप क्या कहेंगे? इश्वर की लीला, या समाज के शक्तिशाली मनुष्यों का विशेष लोभ, जो की बार बार समाज को नकारात्मक दिशा मैं ले जाता है|

पूरा इतिहास उठा कर देख लीजिए; लोगो ने वर्तमान धर्म छोड कर नए धर्म बनाएँ, लकिन कोइ लाभ नहीं है| होगा भी कैसे; समाज को यह समझा दिया जाता है की इस बदलाव के बाद समाज की दिशा सही हो जायेगी, लकिन जब शक्तिशाली व्यक्ति निजी स्वार्थ को ध्यान मैं रख कर ही सारे निर्णय होने देते हैं, तो समाज सकारात्मक दिशा मैं कैसे जा सकता है? इश्वर को अवतरित होना पड़ता है|


“ध्यान रहे समाज कि नकारात्मक प्रगति के जो कारण होते हैं, वही कारण मनुष्य रूप मैं इश्वर अवतार के होते हैं, अंतर केबल इतना है कि इश्वर अवतार से पूर्व नकारात्मक स्थिति इतनी भीषण हो चुकी होती है कि इश्वर मनुष्य रूप मैं आ कर उसे उचित दिशा देता है !

समाज मैं नकारात्मक प्रगति के कारण हम सब को मालूम हैं क्यूंकि हम आज उससे गुजर रहें हैं ! वे इस प्रकार हैं :
  1. कमजोर और गरीब वर्ग का शोषण , 
  2. स्त्री के साथ दुर्व्यवाहर, जिसमें प्रत्यक्ष या अनदेखी करके धर्म गुरुजनों का भी योगदान होता है , 
  3. सत्ता के दुरुपयोग, जिसमें विधिवत धार्मिक नेताओं का अप्रत्यक्ष, या प्रत्यक्ष आशीर्वाद प्राप्त हो या उससे हिंदू समाज का शोषण हो रहा हो ! 
मनुष्य रूप मैं इश्वर क्यूँ अवतरित होते हैं, ऊपर दिए हुए कारण ही प्रमुख कारण होते हैं|”

उपरोक्त उद्धरण का उद्देश आपसब को यह बताना था, की समस्या आज की हो, या सतयुग की हो, या त्रेतायुग की; समस्या नहीं बदलती, बदलता है तो समस्या के समाधान करने का स्वरुप, कभी सफल होता है, कभी असफल| 
स्वाभाविक है की जब समाज उपरोक्त कारणों से अधर्म की और बढ़ रहा हो, तो इश्वर को अवतरित होना पड़ता है, और दिशा परिवर्तन करके समाज को प्रगति की और ले जाया जाता है|
इन सामान्य कारणों के अतरिक्त हर समय विशेष कारण भी होते हैं, जो की स्वाभाविक है| उद्धारण के लिए श्री राम के समय राक्षस एक समस्या थी जो की सतयुग मैं कम से कम दो बार पूरे मानव समाज को गुलाम बना चुकी थी| राक्षस का अर्थ होता है, वोह मनुष्य जो मानव मॉस खाते हों| ठीक उसी तरह श्री कृष्ण के समय जेनेटिक इंजीनियरिंग और मानव क्लोनिंग एक समस्या थी|
इस पोस्ट को लिखने का मुख्य उद्देश यह है की हमें समस्या भी मालूम है, समाधान भी मालूम है, फिर क्या कारण है कि यही समस्या लौट लौट कर , एक बार नहीं बार बार, लाखो करौडो साल मैं आई है| स्वंम इश्वर अवतार ने इसका समाधान निकाला, लकिन फिर भी यह बार बार लौट कर आती है | 
स्पष्ट है, धर्म के नाश मैं सबसे पहले धर्मगुरु पतन की और बढते हैं, फिर बाद मैं समाज पतन की जाता है| और यह स्वाभाविक भी है, जिसके पास जितनी शक्ति होगी, उसके भ्रष्ट होने की संभावना उतनी ही ज्यादा होगी|
इसलिए धर्मगुरु-जनो पर सदेव नियंत्रण और संतुलन समाज का रहता था, तभी यह समाज को सही दिशा मैं ले जाते हैं, नहीं तो स्वंम तो डूबते ही हैं, समाज को भी डुबो देते हैं| 

हाल की १००० वर्ष की गुलामी इस बात का प्रमाण है| आज भी हिंदू समाज पतन की और बढ़ रहा है, धर्मगुरु-जनों का पतन हो चूका है, कोइ भी धर्मगुरु १००० करोड से कम की सम्पत्ती का मालिक नहीं है; और यदी नियंत्रण और संतुलन इनपर जल्दी नहीं आया तो समाज फिर गुलाम हो जाएगा|

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