Thursday, March 7, 2013

क्या लक्ष्मी का अवतरित स्वरुप संघारकारणी का होता है ?

माता लक्ष्मी, सबकुछ दे सकती हैं, लकिन वे केवल उसी पर कृपा करती हैं, जो श्रृष्टि और प्रकृति की प्रगती मैं रुचिकर है| 
आप सब भी इस बात का ध्यान रखियेगा |
यह पोस्ट इसलिए आवश्यक हो गयी कि अनेक जिज्ञासु यह जानना चाहते हैं, कि क्या माता लक्ष्मी जब पृथ्वी पर अवतरित होती हैं, तो उनका स्वरुप संघारकारणी का होता है? 
स्वंम महाऋषि वाल्मिकी ने अद्भुत रामायण मैं सीता को महाकाली का अवतार बताया है| यह भी सत्य है कि तुलसीदास जी ने माता सीता की वंदना इस श्लोक से करी :
उद्भवस्थिति संहारकारिणीं क्लेशहारिणीम्।सर्वश्रेयस्करीं सीतां नतोऽहं रामवल्लभाम्।।
लोगो का प्रश्न यह भी है कि श्री श्री राधा रानी ने श्री कृष्ण से विवाह क्यूँ नहीं करा ? यह भी सत्य है कि कुछ पुस्तकों मैं राधा कृष्ण के विवाह का उल्लेख है लकिन अधिक पुस्तकों मैं, तथा मुख्य पुस्तकों में ऐसा कुछ नहीं है | महाभारत जो अवतरित प्रभु श्री कृष्ण का इतिहास है, उसमें श्री कृष्ण का विवाह रुकमनी और सत्यभामा से हुआ, ऐसा उल्लेख है, लकिन राधा का नाम तक नहीं है | इतनी सूचना अवश्य मिलती है कि बाल-अवस्था मैं गोपाल कृष्ण की प्रिये एक सखी थी, लकिन नाम का खुलासा नहीं है|

इस चर्चा मैं हम यह स्वीकार करके ही आगे बढ़ रहे हैं, कि माता लक्ष्मी की अवतार, श्री श्री राधा का विवाह श्री कृष्ण से नहीं हुआ |

सबसे पहले हमें यह समझना होगा की इश्वर पृथ्वी पर अवतरित क्यूँ होते हैं| अनेक गलत धारणा है इस विषय पर, और हमें उन सबसे बाहर आना होगा| 

इश्वर पृथ्वी पर इसलिए तो अवतरित होते नहीं की उन्हे भक्तो को दर्शन देना है, ना ही इसलिए अवतरित होते हैं, की उन्होंने किसी को आशीर्वाद दिया है| 

नहीं, यह सब अतरिक्त कारण तो हो सकते हैं, लकिन प्रमुख कारण नहीं| 

प्रमुख कारण सदा होता की श्रिष्टी नकारात्मक दिशा मैं जा रही है, विनाश की और अग्रसर है, और इश्वर के पास इसकी दिशा परिवर्तन का और कोइ विकल्प नहीं है|

स्पष्ट है की ऐसे समय मैं अधिकाँश शक्तिशाली लोग दोष मुक्त नहीं होते | 

जहाँ तक श्रृष्टि-पालनकर्ता श्री विष्णु को ऐसे समय मैं हर संभव प्रयास करके(यहाँ तक की समझोते करके) श्रिष्टी को प्रगतिशील बनाना होता है, माता लक्ष्मी के उपर ऐसा कोइ उत्तरदईत्व नहीं है|

माता लक्ष्मी, सत्य है की, सबकुछ दे सकती हैं, लकिन वे केवल उसी पर कृपा करती हैं, जो श्रृष्टि और प्रकृति की प्रगती मैं रुचिकर है| वोह श्री विष्णु की तरह इस विषय पर कोइ समझोता नहीं करती, वोह श्रृष्टि, प्रकृति विरोधी लोगो का संघार करने के लिए भी तैयार हैं| जैसा की ऊपर कहा गया है स्वंम महाऋषि वाल्मिकी ने अद्भुत रामायण मैं सीता को महाकाली का अवतार बताया है|

क्या यह कारण तो नहीं था, माता सीता का अयोध्या त्यागने का? की वे अपनी सुसराल की जनता को दण्डित नहीं करना चाहती थी, और समझोता कर नहीं सकती थी?

मेरे पास से इसका उत्तर आपको नहीं मिलेगा, उत्तर आपको स्वंम खोजना होगा|
लकिन यह भी सत्य है की अयोध्या, जहाँ श्री राम ने जन्म लिया, और जहाँ की महारानी लक्ष्मी अवतार माता सीता थी, वोह आज तक, आर्थिक और अन्य मापदंडो मैं ,आजभी, बहुत पिछड़ा हुआ है| 

मथुरा का और भी बुरा हाल है, और उसका कारण है की श्री कृष्ण के समय मथुरा जेनेटिक इंजीनियरिंग और मानव क्लोनिंग का प्रमुख केंद्र था|

श्री कृष्ण के लिए भी उसकी दिशा परिवर्तन संभव नहीं हो रहा था, इसलिए वे द्वारका चले गए, लकिन श्री श्री राधा जी ने मथुरा छेत्र नहीं छोड़ा|

संभवता अवतरित होने के उनके उत्तरदईत्व श्रृष्टि-पालनकरता से उस जन्म मैं अलग रहने के लिए विवश कर रहे थे| श्रृष्टि विरोधी और प्रकृति विरोधी लोगो को दण्डित करने का उद्देश श्री कृष्ण के साथ रह कर पूरा होता नहीं नज़र आ रहा था|

यह भी समझ लें, की राधा रानी ब्रिजवासनी हैं, और श्री कृष्ण भी | यदि विवाह हुआ होता तो उनको भी अयोध्या की तरह ब्रज छोड़ना पड़ता, और शायद आत्महत्या माता सीता की तरह करनी पड़ती | क्युकी सनातन धर्म ससुराल के संघार की अनुमति तो बहू को देता नहीं है |

स्पष्ट है की महाऋषि वाल्मिकी तो गलत हो नहीं सकते, माता लक्ष्मी के संघारकारणी रूप मैं श्री श्री राधा जी की जो जिम्मेदारियां थी, वे श्री कृष्ण से विवाह करके पूरी नहीं हो सकती थी|

आप सब भी इस बात का ध्यान रखियेगा, की माता लक्ष्मी, उसी पर केवल कृपा करती हैं, जो श्रृष्टि और प्रकृति के विकास मैं रुचिकर हो|
अब एक दुसरे कारण पर भी आते हैं|
सीता का त्याग श्री राम ने इसलिए करा था क्यूंकि माता सीता, यह आरोप लगने के बाद कि वे स्वेच्छा से रावण के साथ गए थी, 
एक भी प्रमाण , अग्नि परीक्षा के अतिरिक्त न्याय पीठ को नहीं दे पाई, 
कि वे स्वेच्छा से रावण के साथ पंचवटी से नहीं गयी थी |

श्री राम और माता सीता दोनों ने आपसी सहमती के बाद ही यह निर्णय लिया होगा कि अग्नि परीक्षा जैसे क्रूर धर्म को अधर्म कैसे घोषित करा जाय |

दोनों ने घोर भावनात्मक कष्ट सहे, परन्तु माता सीता ने घोर भौतिक कष्ट भी सहे; वन में अयोध्या के दो राजकुमारो को जन्म दिया, पाला |

लकिन वोह था त्रेता युग, जिसका सन्देश और धर्म द्वापर युग में पंहुचा |

और द्वापर युग में माँ लक्ष्मी की अवतार श्री श्री राधा रानी यह धर्म नहीं स्थापित करना चाहती थी..भविष्य के लिए ..
कि...
किसी अच्छे काम के लिए, भावनात्मक कष्ट तो दोनों सहे, मर्द और औरत, 
तथा,
भौतिक कष्ट सिर्फ औरत सहे , और यही सूचना वे कलयुग की महिलाओं. पुरुष को देना चाहती थी |
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