सत्यवती से शादी करके शांतनु यह सन्देश दे रहे थे कि मानव क्लोनिंग की बजाय वे प्राकृतिक तरीके से पैदा हुई संतान पसंद करते हैं !
इससे पहले की पोस्ट मैं आपको यह बताया गया है कि महामुनि पराशर ने सत्यवती से, सिर्फ संतान पाने हेतु विवाह करा, तथा सत्यवती से उन्हें सकुशल संतान जब हो गयी, तो समझोते के तहत दोनों शादी को निरस्त करके अलग हो गए; पढ़ें: महामुनि पाराशर ने संतान हेतु सत्यवती से विवाह करा
इससे पहले की पोस्ट मैं आपको यह बताया गया है कि महामुनि पराशर ने सत्यवती से, सिर्फ संतान पाने हेतु विवाह करा, तथा सत्यवती से उन्हें सकुशल संतान जब हो गयी, तो समझोते के तहत दोनों शादी को निरस्त करके अलग हो गए; पढ़ें: महामुनि पाराशर ने संतान हेतु सत्यवती से विवाह करा
उधर दूसरी तरफ महाराज शांतनु एक ऐसी स्त्री/कन्या की खोज मैं थे, जो उन्हें प्राकृतिक तरीके से संतान दे सके| शांतनु पूरी तरह से मानव क्लोनिंग के विरुद्ध थे, और उन्होंने मजबूरी मैं मानव क्लोनिंग द्वारा देवव्रत को अपनी संतान के रूप मैं पाया(ऑपरेशन गंगा- एक गंभीर प्रयास महाराज शांतनु द्वारा संतान पाने के लिए), परन्तु इस बात का विशेष ध्यान रखा कि मानव क्लोनिंग के समय, देवव्रत पूरी तरह से उनके आज्ञाकारी पुत्र रहें, और उन्हें ऐसा प्रतीत होता था कि उसमें उन्हें सफलता भी मिली थी|
अब वे इसका प्रयोग भविष्य मैं मानव क्लोनिंग के विरुद्ध अभियान मैं करना चाहते थे| शांतनु की इस सोच का कोइ विरोध भी नहीं करा जा सकता कि अगर राज सिंघासन पर, प्राकृतिक तरीके से उत्पन्न हुई संतान राज्य कर रही हो, तो इस अभियान को भविष्य मैं बल मिल सकता है|
सत्य यह भी है कि यह सिर्फ अनुमान है, बिना तथ्यों के समर्थन के, चुकी इतिहास यह बताता है कि सत्यवती के पिता ने यह शर्त रखी थी, कि सत्यवती की संतान ही सिंघासन की वारिस होगी | परन्तु जैसा कि पिछली पोस्ट ‘महामुनि पाराशर ने संतान हेतु सत्यवती से विवाह करा’ मैं बताया गया है , सत्यवती सुंदर नहीं थी, एक संतान भी उनकी हो चुकी थी , और यह आप पूरे विश्वास से कह सकते हैं कि शांतनु को यह बात मालूम थी, इसलिए ‘प्रेम के वश मैं वे पूरी तरह से अपने होश खो बैठे थे’ यह बात समझ मैं नहीं आती |
हाँ यह अवश्य हो सकता है कि भावनात्मक तरीके से अपने आज्ञाकारी पुत्र देवव्रत को यह सन्देश देने का प्रयास हो, कि वोह इस समस्या का समाधान, पितृ भक्ति को सामने रख कर, ढूँढने मैं पहल करे| और ऐसा हुआ भी|
सत्य यह भी है कि यह सिर्फ अनुमान है, बिना तथ्यों के समर्थन के, चुकी इतिहास यह बताता है कि सत्यवती के पिता ने यह शर्त रखी थी, कि सत्यवती की संतान ही सिंघासन की वारिस होगी | परन्तु जैसा कि पिछली पोस्ट ‘महामुनि पाराशर ने संतान हेतु सत्यवती से विवाह करा’ मैं बताया गया है , सत्यवती सुंदर नहीं थी, एक संतान भी उनकी हो चुकी थी , और यह आप पूरे विश्वास से कह सकते हैं कि शांतनु को यह बात मालूम थी, इसलिए ‘प्रेम के वश मैं वे पूरी तरह से अपने होश खो बैठे थे’ यह बात समझ मैं नहीं आती |
हाँ यह अवश्य हो सकता है कि भावनात्मक तरीके से अपने आज्ञाकारी पुत्र देवव्रत को यह सन्देश देने का प्रयास हो, कि वोह इस समस्या का समाधान, पितृ भक्ति को सामने रख कर, ढूँढने मैं पहल करे| और ऐसा हुआ भी|
जब देवव्रत को यह पता पडा कि उनके पिता महाराज शांतनु को किसी स्त्री से प्यार हो गया है, तथा उस स्त्री के परिवार ने कुछ ऐसी शर्त रखी है, जिसे महाराज शांतनु स्वीकार नहीं कर पा रहे हैं, तो उन्होंने अपने सूत्रों से इसके बारे मैं पूरी जानकारी ली, और फिर वे सत्यवती के पिता से मिलने पहुचे| वहां उन्हें पता पडा कि महाराज, सत्यवती से शादी करना चाहते थे, परन्तु वे सत्यवती के पिता की यह शर्त स्वीकार नहीं कर पाय कि सत्यवती से उत्पन्न हुई संतान ही राज सिंघासन की अधिकारी होगी|
आज्ञाकारी पुत्र देवव्रत ने तुरंत यह प्रतिज्ञा कर डाली कि सत्यवती की संतान ही राज सिंघासन पर बैठेगी| परन्तु इतने से सत्यवती के पिता संतुष्ट नहीं हुए, बोले, “मैं आपकी प्रतिज्ञा का सम्मान करता हूँ, परन्तु सत्यवती की संतान की संतान को यह प्रतिज्ञा सिंघासन का अधिकार दिलाने के लिए सक्षम नहीं है, चुकी आपकी संतान की संतान भी, वरिष्ट पुत्र की संतान होने के नाते ज्यादा अधिकारी होगी”|
आज्ञाकारी पुत्र देवव्रत ने तुरंत यह प्रतिज्ञा कर डाली कि सत्यवती की संतान ही राज सिंघासन पर बैठेगी| परन्तु इतने से सत्यवती के पिता संतुष्ट नहीं हुए, बोले, “मैं आपकी प्रतिज्ञा का सम्मान करता हूँ, परन्तु सत्यवती की संतान की संतान को यह प्रतिज्ञा सिंघासन का अधिकार दिलाने के लिए सक्षम नहीं है, चुकी आपकी संतान की संतान भी, वरिष्ट पुत्र की संतान होने के नाते ज्यादा अधिकारी होगी”|
देवव्रत ने तुरंत इस समस्या का समाधान भी करा, उन्होंने यह भीष्म प्रतिज्ञा ले ली कि वे अजीवन ब्रह्मचर्य का पालन करेंगे, तथा वे राज सिंघासन पर जो भी बैठा होगा, उसमें अपने पिता की छबी देखेंगे, और आज्ञाकारी पुत्र की तरह, पिता की आज्ञा समझ क्रर उसका पालन करेंगे| ऐसी भीष्म प्रतिज्ञा किसी ने सुनी नहीं थी, एक क्षण मैं देवव्रत ने सबकुछ त्याग दिया| सत्यवती के पिता ने बिना विलम्ब सत्यवती को देवव्रत को सौंप दिया, ताकी वे उसे अपने पिता के पास ले जा सकें|
शांतनु को जब इसका पता पडा, तो तबतक कुछ करने को बचा नहीं था, देवव्रत अजीवन ब्रह्मचर्य पालन की प्रतिज्ञा ले चुके थे, तथा वे सत्यवती को अपने पिता के लिए स्वंम ले आये थे| उन्होंने देवव्रत को इच्छा-मृत्यु का वरदान दिया| चुकी यह ब्लॉग चमत्कारिक शक्तियों पर विश्वास नहीं रखता, इसलिए इसका अर्थ यह हुआ की तब देवव्रत को उनके लंबे जीवन सम्बंधित विशेष योगता से अवगत कराया गया जो की उन्हें जेनेटिक इंजीनियरिंग और मानव क्लोनिंग से मिली थी|
कहना न होगा, ऐसी भीष्म प्रतिज्ञा के पश्यात, समाज देवव्रत को भीष्म के नाम से जानने लगा|
कृप्या यह भी पढ़ें:
No comments:
Post a Comment