रामायण त्रेता युग का इतिहास है, और इसका एक सबूत कि समस्त हिंदू धर्म संस्थानों ने सुप्रीम कोर्ट मैं यह कह रखा है कि राम सेतु, जो कि रामेश्वरम को श्री लंका से जोड़ता है , वह मनुष्य निर्मित है
स्वंम आप अपने दिल से पूछेंगे तो आपको यही उत्तर मिलेगा कि विष्णु अवतार श्री राम त्रेता युग मैं महाराज दसरथ के पुत्र के रूप मैं अवतरित हुए थे , तथा यह वास्तविक घटना है, कोइ कहानी नहीं |खेद इस बात का है कि इतना प्राचीन इतिहास हमें विरासत मैं मिला है , परन्तु हम उसका कोइ लाभ नहीं उठा पा रहे हैं | चमत्कारिक और आलोकिक शक्ति की मिथ्या की चादर के कारण समाज उस युग के विज्ञान का कोइ लाभ नहीं ले पा रहा है |
अनेक पाठकों की ईमेल आरही है , जिसमे ज्यादातर विरोध पोस्ट :
अनेक पाठकों की ईमेल आरही है , जिसमे ज्यादातर विरोध पोस्ट :
से सम्बंधित है | पाठकों को पोस्ट के कथन का विरोध है कि “रामायण त्रेता युग का इतिहास है ! और इतिहास सदैव मनुष्य से सम्बंधित होता है ! उसमें चमत्कारिक और आलोकिक शक्तियों का कोइ स्थान नहीं है !”
कुछ लोगो का विरोध है, तथा कुछ लोग का मत है कि संभवत: धार्मिक इतिहास साधारण इतिहास से हट कर है , तथा उसमें चमत्कारिक और आलोकिक शक्ति हो सकती हैं , तथा कुछ लोग कह रहे हैं कि त्रेता युग मैं लोगो के पास ऐसी शक्तियां थी | विरोध इस बात का है कि पोस्ट उनके इष्ट, प्रभु श्री राम की चमत्कारिक और आलोकिक शक्तियों को चुनौती दे रही है जब की वे भगवान हैं |
समझना आपको यह है कि इतिहास कि परिभाषा क्या है ? तथा क्यूँ रामायण और महाभारत को दूसरा वेद कहा गया है ?
इतिहास की परिभाषा शुरू से यही रही है कि वर्तमान समाज के हित को ध्यान मैं रख कर तथ्यों की प्रस्तुति | इसका जीता जागता उद्धारण है कि एक ही इतिहास हिंदुस्तान, पाकिस्तान और बंगलादेश का है, लकिन तथ्यों की प्रस्तुति ने तीनो देशों मैं इसका स्वरुप अलग कर दिया है |
अब उत्तर आपको देना है | मैंने सारे तथ्य आपके समक्ष रख दिए | ध्यान रहे चमत्कारिक और आलोकिक शक्तियों समाज को भावनात्मक ढंग से रिझाने का तरीका है , जो कि आजादी से पहले खूब प्रयोग मैं लाया गया है , क्यूंकि उस समय हिंदू समाज को बचाने का एक मात्र विकल्प यही था | उस समय हिंदू समाज सर झुका के और कर्महीन हो कर ही अपने समाज को बचा पाया, लकिन आज क्यूँ ?
आज तो इस मिथ्या कि चादर को हटा कर फेकिये ताकि समाज कर्मठ हो कर अपने अधिकार के लिए लड़ सके | यह अत्यंत आवश्यक है कि धर्म का भावनात्मक भाग जो की बहुत अधिक बढा हुआ है , उसे कम करके कर्म भाग धर्म मैं आए ताकि हिंदू समाज कर्महीन से कर्मठ हो सके, और यही उद्देश है रामायण और महाभारत को इतिहास मानने का | विशेषज्ञों का मानना है कि रामायण मैं अनेक प्रसंग जोड़े और हटाए गए हैं, और यह तो सब को मालूम ही है कि हर प्रांत मैं रामायण का अलग स्वरुप है , विदेशो मैं भी अलग अलग रामायण के स्वरुप हैं जो की धार्मिक ग्रन्थ मैं कभी नहीं होता, केवल इतिहास मैं संभव है |
यह बात अत्यंत आवश्यक है समझने के लिए कि धर्म का सीधा सम्बन्ध समाज से होता है | प्रमाणित आकडे बता रहे हैं कि हिंदू समाज गरीबी और बर्बादी की और बढ़ रहा है , जब की धर्म गुरु जानो कि आर्थिक स्थिति मैं जबरदस्त सुधार हुआ है | सीधा अर्थ है समाज का शोषण हो रहा है | फैसला आप करें कि मिथ्या कि चादर हटा कर समाज मैं सुधार आना चाहिए और प्राचीन इतिहास का लाभ समाज को मिलना चाहिए , या समाज का शोषण ऐसे ही होते रहना चाहिए |
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