यहाँ इस विषय पर चर्चा करेंगे कि परशुराम अवतार के तुरंत बाद इश्वर को दुबारा पृथ्वी पर क्यूँ अवतरित होना पड़ा ! कष्ट इस बात का है कि कोइ इन विषयों पर भी इमानदारी से चर्चा के लिए तैयार नहीं है !
आजादी के ६५ वर्ष बाद भी हिंदू समाज को कोइ स्पष्ट शब्दों मैं यह नहीं बताना चाहता कि इश्वर अवतार के रूप मैं क्यूँ अवतरित होते हैं ! क्यूंकि सत्य बताने से धर्म का भावनात्मक भाग कम करके कर्म का भाग बढ़ाना पड़ेगा, परन्तु शोषण तो भावनात्मक भाग बढाने से ही संभव है !
कष्ट इस बात का भी है कि, ताकि समाज का शोषण हो सके, मनुष्य रूप मैं इश्वर अवतार कि कोइ परिभाषा तक नहीं बताई जा रही है ! इसपर भी आप समाज मैं अपना मत रखिये !
ध्यान रहे समाज कि नकारात्मक प्रगति के जो कारण होते हैं, वही कारण मनुष्य रूप मैं इश्वर अवतार के होते हैं , अंतर केबल इतना है कि इश्वर अवतार से पूर्व नकारात्मक स्थिति इतनी भीषण हो चुकी होती है कि इश्वर मनुष्य रूप मैं आ कर उसे उचित दिशा देता है !
समाज मैं नकारात्मक प्रगति के कारण हम सब को मालूम हैं क्यूंकि हम आज उससे गुजर रहें हैं ! वे इस प्रकार हैं :
1. कमजोर और गरीब वर्ग का शोषण , 2. स्त्री के साथ दुर्व्यवाहर, जिसमें प्रत्यक्ष या अनदेखी करके धर्म गुरुजनों का भी योगदान होता है , 3. सत्ता के दुरुपयोग, जिसमें विधिवत धार्मिक नेताओं का अप्रत्यक्ष, या प्रत्यक्ष आशीर्वाद प्राप्त हो या उससे हिंदू समाज का शोषण हो रहा हो !
मनुष्य रूप मैं इश्वर क्यूँ अवतरित होते हैं, ऊपर दिए हुए कारण ही प्रमुख कारण होते हैं !
अब प्रश्न यह है कि इतनी जटिल समस्या क्या थी कि एक के बाद एक अवतार किस कारण हुए ? किसी ने इस और ध्यान तक आकर्षित क्यूँ नहीं करा? यह सोचने के विषय हैं, कि हमारी मानसिकता को क्या होगया है !
"परशुराम ने मित्र राज्यों की सहायता से शिव धनुष(प्रलय स्वरूपि, विनाशकारी...Weapon of Mass Destruction) का निर्माण करवाया , तथा इस बात को भी सर्वविदित करा कि वे उसका प्रयोग उस राज्य पर निसंकोच करेंगे, जो की वानर तथा स्त्रिओं के साथ दूरव्यवहार कर रहा है !
"अंत में कम से कम उन राज्यों ने जिनके राजा क्षत्रिय थे, ने संगठित हो कर यह निर्णय लिया कि वे वानरों से किसी प्रकार का संबंध, अच्छा या बुरा नहीं रखेंगे, तथा स्त्रिओं के साथ व्यवहार धर्म अनुसार करेंगे (ध्यान दे;"धर्म अनुसार") ! क्षत्रिय जो उपद्रव कर रहे थे, वोह समाप्त हो गया | भगवान परशुराम ने शिव धनुष जनकपुरी में महाराज जनक जो एक क्षत्रिय राजा थे के पास रखवा दिया|
"कुछ समस्याओं का समाधान हुआ, वानर को मनुष्य का सम्मान तो नहीं दिला पाए, लेकिन दूरव्यवहार कम हो गया; उसी तरह स्र्त्रिओं के साथ शोषण तभी संभव था जब धर्म उसे उत्साहित करे, और अग्नि परीक्षा को धार्मिक मान्यता प्राप्तथी! परन्तु वह एक अलग विषय था जिस पर अंकुश परशुराम नहीं लगा पाए! यही मनुष्य रूप मैं अवतार की सीमाएं दर्शाता है, जिसको की अवतरित इश्वर को भी मानना पड़ता है |
"जैसा की विदित है, अग्नि परीक्षा एक ऐसा ही श्रोषण था जिसे धर्म से मान्यता प्राप्त थी! वानरों की भी समस्या समाप्त नहीं कर पाए; मात्र क्षत्रिय राजा ही परशुराम की बात मान रहे थे | रावण जो ब्राह्मण था और लंका के राजा थे वे, और उनके आदमी वानरों का खुले आम शिकार कर रहे थे, और अन्य राज्य मैं उसका व्यापार भी कर रहे थे| लकिन उस शोषण को और स्त्रियों पर शोषण को परशुराम रोक नहीं पाय | स्वंम उनके पिता ने अपनी संतान से अपनी माता को मारने को कहा | और ऋषि गौतम ने अपनी पत्नी को मार कर समाधि बनवा दि थी |
"नई श्रृष्टि में अनेक प्रकार के श्रोषण होते हैं, विशेष कर जब, अलग अलग प्रजाति के मनुष्य हों , जैसे कि तब था; आर्य, राक्षस और वानर ! इसके अतिरिक्त समाज जातियों मैं भी बटा हुआ था |
"अगले विष्णु अवतार श्री राम को सारे दुराचार समाप्त करने के लीये और रामराज्य की स्थापना के लीये जल्दी ही अवतरित होना पड़ा !"
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"नारी का सम्मान पूरी तरह से नष्ट हो गया था ! उसे भोग की वस्तु बना दिया गया था ! धार्मिक गुरु भी चुपचाप उसे सहे कर रहे थे ! स्वंम परशुराम के पिता ने अपने पुत्रो को अद्देश दिया था कि वह अपनी माता कि हत्या कर दे ! और भी अनेक उद्धारण हैं पुराणों में जिससे यह ज्ञात होता है कि धार्मिक गुरु स्त्रियों के साथ कैसा दुर्व्यवहार कर रहे थे"
इससे साफ़ जानकारी मिल रही है कि स्त्रियुओं , और वानरों के शोषण कि समस्या इतनी गंभीर हो गयी थी कि एक अवतार पर्याप्त नहीं था उसको समाप्त करने के लिए ! कुछ शोषण को धार्मिक मान्यता भी प्राप्त थी , जिसका निदान परशुराम नहीं कर पाय, जैसे कि स्त्री का शोषण, जैसे अग्नि परीक्षा ! इसके अतिरिक्त रावण जैसे राक्षस परन्तु ब्राह्मण राजा परशुराम के क्षत्रियों के समझोते से बाहर थे, और संभवता: चुकी ब्राह्मणों से परशुराम ने क्षत्रियों के विरुद्ध सहायता ली थी, इसलिए वे इस विषय मैं कुछ कर नहीं पा रहे थे |
स्त्रियुओं, वानरों के शोषण कि समस्या गंभीर थी कि एक अवतार पर्याप्त नहीं था| स्त्री के शोषण को धार्मिक मान्यता भी प्राप्त थी| श्रृष्टि को प्रगतिशील बनाने केलिए तत्पश्यात श्री राम को अवतरित होना पड़ा !
ऐसे मैं श्रृष्टि को प्रगति के मार्ग पर ले जाने के लिए तत्पश्यात श्री राम को अवतरित होना पड़ा !
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