Friday, February 10, 2012

गीता और वंदे मातरम

जब अर्जुन ने युद्ध न करने की ठान ली, तो श्री कृष्ण को गीता के प्रेरणा भरे सोत्र से उनको युद्ध के लीये प्रेरित करना पड़ा !
गीता के अनुवाद से वह प्रेरणा क्यूँ नहीं मिल पा रही ?'वंदे मातरम्' ;
श्री बंकिमचंद्र चट्टोपाध्याय द्वारा रचित दो शब्द ; जिन्होंने अंग्रेजो की नींद उड़ा दी...!

गीता समस्त धर्म की जड़ है, वह सब धर्म का सोत्र है, यदी धर्म की भी उत्पत्ति होई है, तो गीता समस्त धर्म की माँ है !

धर्म, समाज और समाज में रह रहे प्रत्येक व्यक्ति के लीये नियम और मार्गदर्शन करता है , इसलिए गीता धर्म ही है, परन्तु समस्त धार्मिक पुस्तकों, या उपदेशो से अलग ! गीता सिर्फ प्रेरणा है ; प्रेरणा की एक ऐसी नदी, जिसके पास आप पहुँच जाएं, तो जीवन प्रेरणा से भर जाएगा !

क्या कारण है, हम इतने कर्महीन क्यूँ हैं, तथा हमारे मन में यह विचार भी नहीं आ पा रहा है कि यदि दो शब्द 'वंदे मातरम्' से इतनी प्रेरणा मिल सकी कि हम आजादी कि लड़ाई जीत सके ; तो या तो हमारी नियत में खोट है, या हमें जान बूझ कर गीता से ज्यादा गीता के अनुवाद करने वाले लोगो को महत्त्व दिलाने की चेष्ठा करी जा रही है !

प्रश्न सिर्फ इतना है कि क्या युद्ध के आरम्भ में भगवान कृष्ण ने धर्म या ज्ञान का उपदेश दिया था, या, प्रेरणा रूपी सोत्र से अर्जुन को अपने कर्म पर चलने के लीये प्ररित करा ?

वैसे किसी से भी यदि यह प्रश्न पुछा जाएगा तो वह प्रश्न पूछने वाले को मुर्ख बताएगा या यह समझ लेगा की उसका उद्देश नेक नहीं है ! क्यूँकी युद्ध के आरम्भ में प्रेरणा भरे सोत्र कहे जाते हैं, न की धर्म का उपदेश ! धर्म का उपदेश युद्ध में उस व्यक्ति को दिया जाता है जो गंभीर रूप से घायल हो, मृत्युशय्या पर पहुँच गया हो !

अर्जुन से ज्यादा, पूरे इतिहास में, कोइ भी व्यक्ति कठोर प्रकृति का नहीं हुआ ! जब अर्जुन ने युद्ध न करने की ठान ली, तो श्री कृष्ण को गीता के प्रेरणा भरे सोत्र से उनको युद्ध के लिये प्रेरित करना पड़ा !
गीता के अनुवाद से वह प्रेरणा क्यूँ नहीं मिल पा रही ?

कोइ बात नहीं, नहीं मिल पा रही; लेकिन इस बात को स्वीकार तो करो कि यहाँ अनुवादक गीता के साथ पूरा न्याय नहीं कर पा रहे हैं !.

उपयुक्त रहेगा हाल के कारगिल युद्ध को याद करना, जहां उचाई पर शत्रु सेना के ठिकानों को, पहाड़ पर चढ कर अत्यंत विपरीत स्तिथी में भारतीय जवानो ने, बलिदान दे कर अपने कब्जे में करें ! आज भी कारगिल युद्ध, विश्व में, सैनिको को कैसे प्रेरित करा जाता है, उसकी मिसाल है! वह बात अलग है कि भारतीय सेना के जवान की वीरता, जग प्रसिद्ध है !

एक और उद्धरण::
श्री बंकिमचंद्र चट्टोपाध्याय द्वारा रचित दो शब्ग; जिन्होंने अंग्रेजो की नींद उड़ा दी: आजादी से पूर्व, आ़जादी चाहने वाले भारत के बच्चे-बच्चे के होठों पर एक ही मंत्र था 'वंदे मातरम्' ! 

इन शब्दों की शक्ति तो देखो: 'वंदे मातरम्' ; मात्र दो शब्द, छह अक्षर । अनंत शक्ति का सोत्र रहे थे यह दो शब्द ! अंग्रेजो के सिपाहियों की बन्दूक की गोली जब भारतीय की छाती पर लगती, तो जमीन पर गिरते समय एक ही आवाज़ निकलती थी 'वंदे मातरम्' ! कितने ही क्रांतिकारियों ने 'वंदे मातरम्' का नारा लगाते हुए गोलियां खायीं, फांसी के फंदे को गले लगा लिया। इन दो शब्द की प्रेरणा के बारे में और क्या बोला जाय कि अंग्रेजो की नीद मात्र इन दो शब्दों ने उड़ा दी ! सुभाषचंद्र बसु की 'आजाद हिंद फौज' के सिपाही 'वंदे मातरम्' का नारा लगाते हुए ही शहीद होते थे।

और कहाँ गीता ?
प्रेरणा से भरा सोत्र, जिसका न आर है न पार ! लेकिन क्या करा अनुवादकों ने ? कहाँ गायब हो गया श्री कृष्ण का जादू ? यदी मात्र दो शब्द 'वंदे मातरम्' से इतनी प्रेरणा मिल गई कि भारत गुलामी की जंगीर तोड़ सका तो गीता से कितनी प्रेरणा मिलती ?

में गीता के समस्त अनुवादकों का सम्मान करता है, और इस बात को भी स्वीकार करता हूं कि उनके अनुवाद के कारण ही गीता आज मैंनेजेमेंट के छात्रों को पढाई जा रही है !

लेकिन गीता से प्रेरणा जो मिलनी चाहीये, वोह लाभ हिंदू समाज को नहीं मिल पा रहा है ! इस सचाई को हिंदू समाज को बताने में धार्मिक गुरु व् इनके समर्थक इतना विरोध क्यूँ करते हैं ?

क्या धर्म का इतना व्यावसायीकरण हो गया है कि नैतिकता पूर्ण रूप से समाप्त हो गई है ? क्या व्यावसायीकरण के लाभ के लीये कोइ यह भी नहीं बता पा रहा है कि गीता का अनुवाद पर्याप्त व् संतोषजनक नहीं हो पाया है ! उल्टा जो अनुवाद की आलोचना करता है, उसे धार्मिक गुरुजन व् उनसे जुड़े लोग यह कह कर झूटी आलोचना करते हैं कि “देखो यह तो गीता तक की आलोचना कर रहे हैं , यह इंसान हिंदुओं का शत्रु है “ ! 

लेकिन आम हिन्दुस्तानी इतना कर्महीन क्यूँ हैं? वोह इसका विरोध क्यूँ नहीं कर पा रहा है ! आज सूचना युग में जब एनेक माध्यम है अपना आक्रोश व्यक्त करने का या अपनी बात कहने का आप अपने विचार तो व्यक्त कीजिये !

क्या हमें गलत धर्म सिखाया जा रहा है ? कैसे यह सुनिश्चित होगा के हमें सही या गलत धर्म सिखाया जा रहा है ? 
साधरण प्रश्न है और छोटा सा उत्तर ! 

प्रमाणित आकडे यह दर्शाते हैं कि आजादी के बाद धर्म सम्बंधित वय हिंदुओं का अत्यधिक बढा है, परन्तु आजादी के बाद हिंदू समाज में गरीबी बढ़ी है ! उधर आजादी के बाद धर्मगुरुजनों की आर्थिक स्थिती में जबरदस्त सुधार हुआ है , और वह जब, जब अधिकाँश गुरुजन पैसे को हाथ नहीं लगाते हैं, संन्यास की घोषणा कर चुके हैं , तथा संसारिक सुख त्याग चुके हैं ! स्पष्ट है कि गलत धर्म बताया जा रहा है; हिंदू समाज को गुलामी की तरफ ले जाया जा रहा है !

हमें गीता से प्रेरणा चाहीये , तभी हिंदू समाज और हिन्दुस्तान का उद्धार होगा ; वंदे मातरम् !!!
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