Monday, January 2, 2012

हिंदू इतिहास ...सत्ययुग में इश्वर अवतार

जब जब पृथ्वी पर श्रृष्टि कि प्रगति संकट में होती है तो भगवान पृथ्वी पर अवतरित होते है; 
और
जब जब धर्म कि हानि होती है तो भगवन मनुष्य रूप में अवतरित होते हैं !
सत्ययुग में विभिन्न अवतार क्यूँ प्रकट होए इस पर चर्चा होगी !
इससे पहले आप को यह जानना आवश्यक है कि सत्ययुग के प्रारम्भ में स्तिथि क्या थी ! 
पिछले कलयुग और नये महायुग/कल्प के बीच में लाखो वर्ष का संधि काल होता है, तथा उसमें पृथ्वी पुन: उत्साहित और उर्जावान होती है ! सत्ययुग नई श्रृष्टि का प्रारम्भ है, इसलिये अत्यंत धीमी गति से श्रृष्टि का विकास होता है ! परन्तु पिछले युग के कुछ मनुष्य इस श्रृष्टि का अंग भी बनते हैं, वो आर्य तथा राक्षस कहलाते हैं(विस्तृत जानकारी के लिये पढे : कलयुग का अंत..एक नए कल्प का प्रारम्भ और मत्स्य अवतार )

प्रारम्भ में समुन्द्र स्तर बढ़ा हुआ था, पृथ्वी कम दिखाई पड़ती थी जो वन से सुशोभित होती जा रही थी ! चुकि राक्षस मनुष्य का मांस खाते थे, मनुष्य के लिये सबसे बड़ा ख़तरा राक्षस थे | राक्षस क्रूरता तथा छल से मनुष्य का अपहरण कर रहे थे ! पृथ्वी का क्षेत्र कम होने के कारण मनुष्य का उत्तरजीविता संकटमय थी ! सिर्फ इश्वर का भरोसा था ! राक्षस धीरे धीरे मनुष्य य आर्य को समाप्त करता जा रहा था; अत: यह भय वास्तविक था कि भविष्य में पृथ्वी पर केवल राक्षस ही रह जाय !

तभी एक अज्ञात घटना ने सब बदल दिया| समुन्द्र में जैसे मंथन शुरू हो गया था !
ऊँची ऊँची लहरें समुन्द्र में उठने लगी तथा पृथ्वी का क्षेत्र थोडा और बड गया, साथ में उन्हे कुर्म य कछुआ के भी दर्शन होने लगे जो कि समुन्द्र से निकलता, थोड़ी देर पृथ्वी पर रहता, फिर वापस समुन्द्र में चला जाता ! उन्होंने उसे इश्वर अवतार मान लिया ! उसी के कारण समुन्द्र में लहरे उठने लगी तथा पृथ्वी का क्षेत्र बढ़ने से मनुष्य अपने को थोडा और सुरक्षित अनुभव करने लगा ! कुर्म अवतार इस महायुग के, तथा सतयुग के पहले अवतार हैं !

विज्ञानिक दृष्टि से राहू और केतु, जो कि चन्द्र के कक्षीय नोड्स हैं वोह अब स्थिर नहीं रहे, या यूँ कहीये कि चन्द्रमा ने अपनी धूरी सूर्य के संधर्भ में बदलनी शुरू कर दी, जिससे समुन्द्र मंथन का आभास होने लगा , और समुन्द्र मैं लहरे उठने लगी!

अभी भी मनुष्य भय का जीवन व्यतीत कर रहा था, परन्तु इश्वर पर विश्वास उसका बढ़ गया था ! उसे लगने लगा था कि संभवत: इश्वर आगे भी उसकी रक्षा करेगा ! प्रकृति का विकास य इश्वर, जो भी आप मान ले, ने निराश भी नहीं करा ! कुछ सदियों बाद जब राक्षस कुर्म अवतार के उपरान्त वाली स्तिथि पर भी मनुष्य पर हावी होने लगा तो फिर एक अज्ञात घटना ने पृथ्वी का क्षेत्र फल काफी बढ़ा दिया ! अब वोह सुरक्षा दृष्टि से स्थान का चुनाव कर सकते थे, ताकि राक्षसों से बच सके ! इन मनुष्यों को बार बार वराह दिखाई पड़ता था जो कि वन से निकलता मनुष्यों को देखता और वन में वापस चला जाता; वोह समुन्द्र में नहीं जा रह था ! उन्होंने उसे इश्वर का अवतार मान लिया !वाराह के दर्शन उपरान्त पृथ्वी के क्षेत्रफल का अत्यधिक विस्तार हूआ !

सदियाँ बीतती गयी लेकिन राक्षस का अंत नहीं हो पा रहा था, इसके विपरीत राक्षस और शक्तिशाली होते जा रहे थे ! अब राक्षस मनुष्य से ज्यादा संगठित थे ! यूँ तो वो पूरी पृथ्वी पर फैले हूऐ थे लेकिन अब उनपर अत्यंत शक्तिशाली राक्षस हिरणकश्यप राज कर रहा था ! जिस तरह से मनुष्य यह सुनिश्चित करता है कि घरेलो पशुओं का विकास कितना होगा , हिरणकश्यप का भी यही प्रयास था ! शक्तिशाली राक्षस अब यह चाहते थे कि मनुष्य उनके अधीन रह कर ही जीवित रहे ! मनुष्य के सामने एक ही विकल्प था, संघटित हो कर अंतिम युद्ध; परिणाम चाहे कुछ भी हो !
संकट में मनुष्य कि कुशलता बढ़ जाति है ! मनुष्य जानते थे कि वन में एक नई प्रजाति विकसित हो रही है, जिसे अभी तक मनुष्य वानर कहते थे तथा उसे पशु समझ कर ही व्यवाहर करते थे! वानर दो पेरो से चलते थे, मनुष्य से मनुष्य कि भाषा में बात करते थे, तथा व्यवाहर अत्यंत ही निर्मल था ! मनुष्य ने वानर को भी इस बात के लिये मना लिया कि राक्षस पर एक साथ हमला करा जाय ! चुकि वानर भी राक्षस के व्यवाहर से त्रस्त थे तो वोह सहेज ही मान गए ! मिल कर उन्होंने आकस्मिक आक्रमण हिरनकश्यप के भवन पर करा, जिसके लिये वोह तैयार भी नहीं था ! हिरणकश्यप का वध नरसिंह नामक वानर ने किया ! नरसिंह का मुख सिंह जैसा था ! आज भी हम नरसिंह को विष्णु अवतार मानते है !
हिरणकश्यप के वध उपरान्त मनुष्य को कुछ राहत मिली ! परन्तु मनुष्य ने वानरों को उचित स्थान समाज में नहीं दिया न ही उन्हे मनुष्य होने कि मान्यता दी ! वानरों के साथ मनुष्य का दुर्व्यवाहर वैसा ही रहा ! मनुष्य अलग अलग राज्य स्थापित करके रहने लगे !

इधर राक्षस एक बार फिर संगठित होए, इस बार उनका राजा बाली था जिसके बारे में यह प्रसिद्ध था कि वोह कभी भी अपने वचन से पीछे नहीं हटता ! उसने मनुष्य को अपने आधीन कर लिया !

प्राचीन काल से हिंदू जनों कि यह धारणा रही है कि पृथ्वी को विकास हेतु तीन भाग में देखना है : पृथ्वी, जल(समुन्द्र) और पातळ लोक ! बाली तीनो लोको का राजा था ! इस बार मनुष्य ने राक्षसों पर छल से विजय पाई ! एक अत्यन छोटे स्थर के ब्राह्मण ने बाली से तीन वचन पूर्ण करने कि प्रतिज्ञा ले ली ! ऐसी भी बात प्रचलित है कि छोटे कद के ब्राह्मण ने बाली से तीन पग जमीन रहने के लिये दान में माँगी ! इसका निर्णय आप करें ! बाली से उसने तीन वचन में तीनो लोक मांग लिये ! बाली अब मनुष्य द्वारा दान दिये होए पातळ लोक में निवास कर सकता था ! मनुष्य एक बार फिर से पृथ्वी का स्वामी बन गया ! उस छोटे स्तर के ब्राह्मण को आज भी हम वामन अवतार के नाम से भगवान विष्णु का अवतार मान कर पूजते हैं !

सत्ययुग के इतिहास से एक बात तो स्पष्ट है ; मनुष्य का जीवन उस समय अत्यंत कष्टदायक था ! हर संभव प्रयास करके मनुष्य केवल जीवित रह पा रहा था ! परन्तु वो जीवन किसी भी परिभाषा में स्वाभिमान का जीवन नहीं कहला सकता था ! उधर मनुष्य कि नई प्रजाति वानर के साथ स्वंम मनुष्य का अमानवीय व्यवाहर सत्ययुग के मनुष्य को लज्जापूर्ण जीवन से अधिक दर्जा नहीं दे सकता !
आप इसपर चर्चा भी कर सकते हैं ...जो कुछ ऊपर कहा गया है, वोह सब हिंदू मान्यता और धर्म ग्रन्थ, और पुराणों से ही लिया गया है , बात बस इतनी सी है कि १००० वर्ष की गुलामी के कारण समाज को भावनात्मक आधार पर कष्ट से निबटने के लिए, यह विश्वास दिलाया गया था, कि कलयुग सबसे कष्टदायक युग है, इसलिए कष्ट तो सहने पड़ेंगे |
सत्ययुग में मनुष्य का जीवन अत्यंत कष्टदायक था | उधर मनुष्य कि नई प्रजाति वानर के साथ स्वंम मनुष्य का अमानवीय व्यवाहर सत्ययुग के मनुष्य को लज्जापूर्ण जीवन से अधिक दर्जा नहीं दे सकता

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ABOUT ME:

A Consulting Engineer, operating from Mumbai, involved in financial and project consultancy; also involved in revival of sick establishments.

ABOUT MY BLOG: One has to accept that Hindus, though, highly religious, are not getting desired result as a society. Female feticide, lack of education for girls, dowry deaths, suicides among farmers, increase in court cases among relatives, corruption, mistrust and discontent, are all physical parameters to measure the effectiveness or success/failure of RELIGION, in a society. And all this, despite the fact, that spending on religion, by Hindus, has increased drastically after the advent of multiple TV channels. There is serious problem of attitude of every individual which need to be corrected. Revival of Hindu religion, perhaps, is the only way forward.

I am writing how problems, faced by Indian people can be sorted out by revival of Hindu Religion.