मनु, मानव, मेंन, मादा, मनिटो, आदि
अनेक शब्द विभिन् भाषा में प्रयोग करे जाते है, मनुष्य के लिय| चुकी विश्व भर से समुन्द्री जहाज़ निकले थे तो इससे उत्तम कुछ नहीं था, कि जहाज़ के बेडे का नायक मनु था !
कलयुग के अंत में इस महायुग/कल्प के अंत का समय भी आयेगा.| अंत के प्रारम्भ होते ही पहले, मनुष्य द्वारा जो विपदा उत्पन्न करी गयी हैं, उससे विनाश होगा, फिर प्रकृति उस विनाश में सहायक होगी, और अंत में पृथ्वी जलमग्न होने लगेगी !
उस समय जितने भी शक्तिशाली लोग हैं पूरे विश्व में, अर्थात जो सत्ता और सत्ता के निकट हैं, उनको यह अवसर मिलेगा कि वे समुन्द्री जहाजों में बैठ कर जल से होने वाली विपदा समाप्त होने का इंतज़ार करें!
ऐसे अनेक जहाज पूरे विश्व से निकलेगें ; लेकिन उन्हे यह नहीं मालूम होगा कि यह एक लंबा सफर है, और उनके आने वाली सैंकडो, हज़ारो पीढीयाँ अब जीवित रहने का संघर्ष करती रहेंगी!
इसका उल्लेख प्राचीन ग्रंथो में भी है, जहां मनु को यह आभास हो जाता है कि पृथ्वी जलमग्न होने वाली है !
यह पोस्ट इसलिये भी आवश्यक है कि आप समझ सकें कि मनु शब्द का प्रयोग क्यूँ करा गया है ! मनु, मानव, मेंन, मादा, मनिटो, आदि अनेक शब्द विभिन् भाषा में प्रयोग करे जाते है, मनुष्य के लिये ! चुकी विश्व भर से समुन्द्री जहाज़ निकले थे तो हर युग के वासियों को समझाने के लिये इससे उत्तम और कुछ नहीं था, कि जहाज़ के बेडे का नायक मनु था !
जरा देखें:
पृथ्वी के जलमग्न होने के बाद कुछ पर्वत की चोटी ही बची थी ! धीरे धीरे सब कुछ स्थिर सा होता जा रहा था ! यहाँ तक कि समुन्द्र भी अब शांत हो गया ! लहरे अब समुन्द्र में नहीं उठ रही थी ! विज्ञानिक दृष्टी से इसका अर्थ होआ कि राहू और केतु समाप्त हो गए! अर्थात राहू और केतु, जो कि चन्द्र के कक्षीय नोड्स हैं वोह अब स्थिर हैं या यूँ कहीये कि चन्द्रमा अपनी धूरी सूर्य के संधर्भ में नहीं बदल रहा है !
समुन्द्री जीवन भी धीरे धीरे लुब्ध होता जारहा था! पहले जितनी मछलीयाँ दिख रही थी, वोह धीरे धीरे कम होती जा रही थी, अब आसानी से मछली उपलब्ध नहीं थी ! भोजन की समस्या हो चली थी !
धीरे धीरे आधुनिक तकनीक से बनाए होए पानी के जहाज़ संसाधन और इंधन के अभाव से तोड़ फोड कर पुराने ढाचे के कर दिये गये! अब हर मनुष्य को काम करना पड़ रहा था ! यह सही था कि वोह पहाड़ियों कि चोटी जो अब टापू कहलाने लगे थे, पर जा कर रहने का प्रयास कर सकते थे, लेकिन वहाँ पर लूट मार कि वजह से वोह असुरक्षित थे !
अब कुछ लोग भोजन के आभाव में मनुष्यों को मार कर उनका मांस खाने लगे थे! उनको राक्षस कहा जाने लगा ! उनसे भी बचने का एक ही विकल्प था कि समुन्द्र में ही रहा जाय !समुन्द्र में अन्य मित्र जहाजों के साथ वोह ज्यादा सुरक्षित थे !
[राक्षस>> वोह मानव जो कलयुग और सतयुग के अंतराल में भोजन के आभाव में मनुष्य को मार कर उसका मॉस खाने लगा | फिर बाद में उसका आदि हो गया , और यह प्रजाति इसी अंतराल मैं पनपती है, भोजन के आभाव के कारण |]
इश्वर की कृपया कहीये, या प्रकृति का स्वरुप, भारत उपमहाद्वीप जो कि अब जल मग्न था, सिर्फ वहीं पर मछली उपलब्ध थी ! सारे समुन्द्री जहाज़ वहीं पर विचर रहे थे!
इसी संधर्भ में मत्स्य अवतार का अर्थ समझ में आता है !
यह सिर्फ वास्तविक स्तिथि का आकलन है,
मत्स्य अवतार का अर्थ आप अपने निजी विश्वास से समझें या वास्तविक स्तिथी से, यह आप पर निर्भर है! सूचना युग में हिंदुओं के पास पूर्ण सूचना होना आवश्यक है ! इस संधर्भ में आप यह भी जान ले कि कलयुग के अंत से अगले सत्य युग का समय संधि काल कहलाता है, जो कि पुराणों के अनुसार ७,२०,००० वर्ष का है ! इस लंबे समय में मत्स्य अवतार ने मनुष्य का मार्ग दर्शन एवम जीवित रहने में सहायता कैसे करी होगी वोह आपको सुचना के आधार पर, या किसी अन्य तथ्य के आधार पर करना है, इसका निर्णय आप स्वंम करें !
इतने लंबे समय कठोर परिस्थीतिओं में जीवित रहने के लिये नियम भी बनाए गए ! कठोर परिस्थीतिओं में जीवित रहने के लिये नियम और सामाजिक न्याय के परिपेक्ष में जो नियम बनते हैं उनमें अंतर होता है !
समुन्द्र में रहते होए कुछ लोग अपराध करते होए पकडे जाते थे, उन्हे मारने या कोइ अन्य दंड देने से अच्छा था कि जो काम कोइ नहीं करता था, दंड स्वरुप वोह कार्य इन दण्डित लोगो से करवाया जाय ! उनको शुद्र कहा जाने लगा !
इन्ही कठोर परिस्थीतिओं ने अन्य जाती भी उत्पन करी, तथा इन्ही कठोर परिस्थीतिओं के कारण यह जाती जन्म जाती भी बन गयी ! इसी परिपेक्ष में मनु स्मृति समझ में आती है !
वास्तव में मनु स्मृति उस लंबे और कठोर परिस्थीतिओं में जीवित रहने के लिये बनाए गए नियम थे ! उनका आज के सामाजिक न्याय के जीवन में कोइ अर्थ नहीं है !
वैसे भी स्मृति का अर्थ होता है LOG BOOK.;
समुन्द्र में रहने के लिये बनाए गए नियमों को LOG BOOK ही कहा जाता है, अथार्त स्मृति, ना कि धार्मिक ग्रन्थ! विशेष परिस्तिथी समाप्त होने पर स्मृति अर्थहीन होजानी चाहीये थी, लेकिन हमें यह भी समझना होगा कि इस कठोर यात्रा के सफल यात्री में अन्य गुण के अतरिक्त अवसरवादी होना भी आवश्यक था ! ऐसी यात्रा वही सफलता पूर्वक कर सकता था जिसमें हर स्तिथि में जीवित रहने के गुण हों ! इसलिये संभवतः निजी स्वार्थ हेतु, जाती और मनुस्मृति समाप्त नहीं हो पाई!
[नया महायुग सत्ययुग नाम से क्यूँ शुरू हुआ? मानव ने अपने को आर्य कहना क्यूँ शुरू करा?]
अब पृथ्वी का क्षेत्र बड़ा प्रतीत होने लगा ! संभवत: जलस्तर कुछ कम हो गया होगा! इसका अर्थ था की अब पृथ्वी पर भी रहा जा सकता था, और इस सत्य से भी इनकार नहीं करा जा सकता था, कि इतने लम्बे समय समुन्द्र के उपर रहने के पश्च्यात, भी मनुष्य की यह सोच थी की वोह पृथ्वी पर ज्यादा आसानी से रह सकता है| उसे बार बार, पीडी दर पीढी यही बताया गया था, की एक वक़्त ऐसा आएगा, जब मनुष्य वापस पृथ्वी पर रह सकता है; सबकुछ सही हो जाएगा, और यही सत्य है| इसी सत्य पर विश्वास और आस्था रख कर वे जीते आ रहे थे, और सत्ययुग आ गया|मनुष्य वापस पृथ्वी पर रहने लगा ! निसंकोच और हर्ष-उल्लास के साथ उसका नाम सतयुग रखा गया |
परन्तु एक समस्या थी ! राक्षस भी अब पृथ्वी पर रह रहे थे ! अत: इन मनुष्यों ने अपनी अलग पहचान बनाने के लिये अपने को आर्य कहना शुरू कर दिया ! क्युकी उस समय के मनुष्य का राक्षस परम शत्रु था, और उस समय के मनुष्य राक्षस से हर तरह से घृणा करते थे और अपने आदर्शो से विपरीत समझते थे, इसलिये उन्होंने अपनी पहचान राक्षस के ‘रा’ को उल्टा कर के 'आर्य' नाम से कर लिया!
आर्य नाम का अर्थ उनके अनुसार शुद्ध या पवित्र, अथार्त जो मानव मांस नहीं खाता ! आज भी आर्य का अर्थ यही है, हाँ समाज, विषय और संधर्भ बदल गए हैं, इसलिये इस शब्द का अनुचित प्रयोग भी हो रहा है!
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