FLYING MACHINES, SCIENTIFIC GROWTH OF TRETA YUG~~त्रेता युग विज्ञान और विमान का युग था| यह बात भारत का प्राचीन इतिहास बताता है; रामायण बताती है|
खेद हम इसको अपनी विश्वविध्यालय तक आजादी केबाद नहीं पंहुचा पाए, नाही इसका लाभ हिंदू युवा छात्रों को देपाए !
ध्यान रहे अगर हमारे धार्मिक गुरुजनों ने आजादी के बाद सिर्फ इतना कर दिया होता, कि रामायण को इतिहास मान लिया होता, तो आज हिंदू समाज की प्रतिष्ठा विश्व मैं उच्त्तम होती ! हम कर्महीन नहीं होते और कम से कम अपने ही देश मैं द्वित्य श्रेणी के नागरिक नहीं होते! लेकिन ऐसा नहीं हो पाया!
हमारे धार्मिक गुरु जनों ने, जो की अपने को भगवान की तरह पुजवाना चाहते हैं और उसके लिये हर आधुनिक तंत्र का प्रयोग हिंदुओं को लुभाने के लिये करते हैं, ने मिथ्या कि चादर रामायण पर, जो पहले से लिपटी होई थी, और कस कर लपेट दी !
वोह इसलिये भी जरूरी था, क्यूँकी सिर्फ कर्महीन समाज मैं यह संभव है कि धर्म गुरु अत्यंत धनवान तथा शक्तिशाली हों! खेद, परन्तु सत्य; जिस समाज मैं इन धर्म गुरुओं ने धर्म के प्रचार का बीडा उठा रखा है, वोह पिछले ६४ वर्ष मैं और गरीब हो गया है !
अब आगे इस समस्या का क्या समाधान ढूँढना है आप लोग सोचिये ! हर युवा पीढ़ी को यह अधिकार है कि पुरानी पीढ़ी उसे बहतर वातावरण प्रगती के लिये दे ! लेकिन ऐसा नहीं हो पाया आजादी के बाद...लेकिन क्या आगे और भी बुरा होगा? क्या हम आने वाली पीढ़ी को दुबारा गुलामी की तरफ धकेल रहे हैं ?
कृप्या इतनी कर्महीनता भी मत दिखाईये कि इन प्रश्नों, और समस्याओं की चर्चा आप अपने समाज मैं नहीं कर पाएं, और जन चेतना के बारे मैं भी न सोंच पायें !
वापस मुख्य विषय पर: रामायण इतिहास है यह पूरा हिंदू समाज मानता है, और उसके पीछे धार्मिक वजह नहीं है ! भौतिक ज्ञान हमें यह बताता है कि रामायण त्रेता युग का इतिहास है ! और इतिहास सदैव मनुष्य से सम्बंधित होता है| उसमें चमत्कारिक और आलोकिक शक्तियों का कोइ स्थान नहीं है! धार्मिक गुरु यह भी जानते हैं कि रामायण के चरित्रों की व्याख्या चमत्कारिक और आलोकिक शक्तियों के साथ करने से मिथ्या की चादर और मजबूत हो जाती है! ऐसा करने से विज्ञान के लिये रामायण पर शोघ की संभवता समाप्त सी हो जाती है !
मैं इन वाक्यओं को दुबारा जोर दे कर कहना चाहता हूं : धार्मिक गुरु यह भी जानते हैं कि रामायण के चरित्रों की व्याख्या चमत्कारिक और आलोकिक शक्तियों के साथ करने से मिथ्या की चादर और मजबूत हो जाती है! ऐसा करने से विज्ञान के लिये रामायण पर शोघ की संभवता समाप्त सी हो जाती है !
लेकिन निगी स्वार्थ के लिये तो हिदू समाज पर पिछले ६४ वर्षों मैं क्या कुछ अत्याचार नहीं होएं ---हमें अपने धर्म गुरुओं के कारण त्रेता युग के विज्ञान का लाभ नहीं मिल पा रहा, न सही ; लेकिन आगे हमें ऐसी नीती अवश्य बनानी होगी कि आगे आने वाली पीडी को इसका लाभ मिल सके !
सुचना युग मैं यह बात हर किसी को मालूम है कि विमान प्रथम श्रेणी का विज्ञानिक विकास नहीं है! विज्ञान मैं बहुरूपी तथा बहु-श्रेणी विकास के बाद ही विमान का विकास संभव है!
क्या स्वरुप था उस विकास का? क्या उसके कुछ स्पस्ट संकेत रामायण मैं मिलते हैं ?
इसके लिये अगली पोस्ट पढीये : त्रेता युग के विमान, विज्ञानिक प्रगती और रामायण
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