मित्रो, अनुरोध है कि इतना कमेंट अवश्य करीये ...>>>
कि.....इसमें कौन सी बात गैर-पुराणिक है, या पुराण विरोधी है....!
सारा पुराणिक इतिहास यह बताता है कि सतयुग सबसे कष्टदायक युग था मानव के लिए,
लकिन वाह रे ..
संस्कृत विद्वान और धर्मगुरुजनों की ठगाई की जोड़ी,
जो पुराणिक इतिहास और समाज सुधार के लिए समय समय पर जो कथाए होती हैं, और जिनसे पुराण भरा पड़ा है, उनमें और पुराणिक इतिहास के अंतर को समझ नहीं पाए |
यह कहना तो संस्कृत विद्वानों का अपमान होगा कि ‘समझ नहीं पाए’, क्यूँकी वे वास्तव मैं विद्वान हैं और समाज के शोषण मैं ‘कम पढ़े लिखे और कम बुद्धीवाले’ धर्मगुरुओ का साथ दे रहे हैं |
वैसे इस विषय पर विस्तृत जानकारी के लिए ब्लॉग मैं पोस्ट उपलब्ध हैं , जो लिंक समेत नीचे दी होई हैं , लकिन फिर भी कुछ आवश्यक जानकारी यहाँ दी जा रही है | ध्यान रहे यह सारी सूचना पुराणों से ही ली गयी है , और आप सबके पास भी व्यक्तिगत जानकारी में यह सूचना उपलब्ध है |
- सतयुग नए महायुग का आरम्भ है...इसमें तो कोइ विरोधाभास नहीं है; कि आप चाहे तो महायुग कह लीजिये या कल्प कह लीजिये, सतयुग इसका आरम्भ करता है | सतयुग के आरम्भ से पूर्व, पूरी पृथ्वी जलमग्न होती है, यह पुराण ही बताते हैं, और आज का विज्ञान इसका अन्मोदन भी कर रहा है |
- मनु पिछले युग से बचे हुए मानवो को पृथ्वी पर उतारते हैं, इन मानवो में विभाजन है......जो लोग समुन्द्र मैं रहते हुए, मानव का मॉस खाने लगे उनको राक्षस कहा जाता था, और क्यूँकी मानव यह मानते थे की राक्षस हर सोच मैं सामान्य मानव से उलटे हैं...तो उन्होंने अपने को ‘रा’ का उल्टा आर्य कहना शुरू कर दिया..
- सतयुग के आरम्भ में, समुन्द्र मंथन के बाद, यानी की समुन्द्र मैं लहरे फिर से आरम्भ होने के बाद(जो की एक खगोलिक घटना/बिंदु है), समुन्द्र का छेत्र धीरे धीरे कम होने लगता है....और पृथ्वी जो की अब तक सीमित थी सिर्फ पहाडो की चोटी तक, उसका विस्तार होता है | नई श्रृष्टि फलने फूलने लगती है... पहले पेड पौधे, फिर पशु पक्षी, जल मैं मछली और अन्य जानवर | और विज्ञान और पुराण दोनों इस बात को मानते हैं कि नई श्रृष्टि मैं प्राकृतिक विकास बहुत तेजी से होता है...और कुछ बहुत विशाल पशु पक्षी भी उत्पन्न होते हैं , इस नए युग मैं जिसे हम सतयुग कहते हैं |
- इन विशाल पशु पक्षी के लिए भोजन की समस्या सदा बनी रहती है, वे मानव , राक्षस , अन्य पशु पक्षी और स्वंम की प्रजाति को भी आहार बना लेते हैं, लकिन फिर भी वो कभी पर्याप्त नहीं होता| ऐसे विशाल पशु, पक्षी और समुन्द्र मैं भी जल-जानवर पूरी श्रृष्टि का संतुलन बिगाड़ देते हैं, जीना मुश्किल हो जाता है | त्रेता युग आते आते वे आपस मैं लड़ मर कर समाप्त होने लगते हैं ; स्वंम रामायण मैं विशाल जल मछली का उल्लेख है, और जटायु और सम्पाती जैसे विशाल पक्षी का, जो तब समाप्त हो रहे होते हैं|
- इन सबके बीच मानव की नई प्रजाति ‘वानर’ वन मैं प्राकृतिक विकास से उत्पन्न होती है,...और मनु जी जो मानवो का दल लेकर आये थे, वे नई प्रजाति, ‘वानर’ को मानव तक मानने से इनकार कर देती है, उसका शिकार करती है, जानवरों की तरह से उसका इस्तेमाल भी करती है, और जानवरों की तरह उनपर जुल्म भी पुराने मानव(आर्य और राक्षस) करते हैं |
- इधर राक्षस चाहते थे कि मानव यदि जीवित रहना चाहता है तो उसका दास बन कर रहे , और सतयुग यदि किसी का था तो विशाल पशु पक्षी और राक्षसों का | स्वम् पुराण बताते है कि कम से कम दो बार तो पूरी पृथ्वी पर राक्षसों का राज्य स्थापित हुआ था, इस युग मैं | एक बार हिर्नाकश्यप ने तो एक बार बाली ने |
अब आप मुझे बताएं कि सतयुग किस तरह से मानवो के लिए अत्यंत अच्छा युग था :-
1. नई श्रृष्टि में उत्पन्न मानव, जिसे वानर कहते हैं, उसको पुरानी श्रृष्टि ने मानव तक नहीं माना ;
2. पुराने मानव जो मनु के साथ आए थे, उसमें राक्षस ने तो कुछ सुख भोग, लकिन मानव को दास बना कर |
3. विशाल पशु पक्षी पूरी श्रृष्टि के लिए एक संघर्ष था, खतरा था, जिसका कोइ भी समाधान नहीं था |
4. हाँ धर्मगुरु और शक्तिशाली(जो क्षत्रिये कहलाने लगे थे) लोग जो हर राज्य मैं थे, उनको कुछ औरतो और महिलाओं का सुख धर्म मैं हेरा फेरी करके अवश्य मिल रहा था , जिसके अनेक वृतान्तो से पुराण भरे पड़े हैं | उनको भी त्रेता युग मैं एक के बाद दुसरे अवतार को आना पड़ा इसमें सुधार के लिए |
स्पष्ट है, आज के संस्कृत विद्वान यह सब जानते हुए भी समाज का शोषण हो सके इसके लिए सबकुछ गलत बता रहे हैं |
उपयुक्त पोस्ट और लिंक:
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