इस पोस्ट को यह भी कह सकते हैं कि सनातन धर्म की सोच और आस्था को विज्ञान और प्रमाणिकता के आधार पर स्थापित करने का प्रयास है, और चुकी सनातन धर्म क्रमागत उन्नति(EVOLUTION) मैं आस्था रखता है, तथा अन्य धर्म/मजहब सृजन(CREATION) मैं, तो यह पोस्ट इस विषय पर विचार प्रस्तुत करेगी |
सृजन, इश्वर को श्रृष्टि और पृथ्वी के विकास का मुख्य कारण मानता है , जबकी क्रमागत उन्नत्ति पृथ्वी के स्वाभाविक विकास को स्वीकार करता है |
यहाँ पर यह भी स्पष्ट कर देते हैं की विज्ञानिक जगत भी क्रमागत उन्नति(EVOLUTION) को पृथ्वी का विकास का कारण मानता है |
इस पोस्ट पर कुछ भौतिक प्रमाण दिए जायेंगे जो आस्था पर नहीं आधारित हैं, विज्ञान और पृथ्वी के भूगोलिक और खुगोलिक विकास पर आधारित है:
1. कामदेव को पुरस्कृत करते हुए इश्वर शिव का उसको शारीरिक बंधन से मुक्त करना, और द्वापर युग मैं वापस शारीरिक बंधन देना :
नई श्रृष्टि का प्रारंभ सतयुग मैं होता है, और सतयुग के प्रारंभ मैं इश्वर शिव, प्रसन्न मुद्रा मैं, कामदेव को शारीरिक रूपी सीमाओं से मुक्त करदेते हैं, ताकी श्रृष्टि का अभूतपूर्ण विकास हो सके; और ऐसा होता भी है| एनेक विशाल काय जीव पृथ्वी पर उत्पन्न होते हैं, चारो तरफ वन का फैलाव हो जाता है, और उसके प्रमाण भी हैं!
ताकि किसी तरह से हिन्दू समाज इसका लाभ ना उठा पाए, और धर्मगुरुजनों का गुलाम रहे, संस्कृत विद्वान सदा ‘परम योगी, पूर्ण वैरागी, इश्वर शिव’ को क्रोधित दिखाते हैं, ताकी समाज भ्रह्मित रहे, भावनात्मक गुलामी मैं जकड़ा रहे| पढ़ें: कामदेव के भस्म होने का अर्थ…एक विज्ञानिक खुगोलिक दृष्टिकोण
चार हाथीदांत वाले हाथी त्रेता युग मैं थे, विशाल पशु, पक्षी भी थे, जो धीरे धीरे समाप्त हो गए, और विज्ञान भी इसे स्वीकार करता है | ‘जटायु’ एक विशाल पक्षी त्रेता युग मैं था, जिसकी प्रजाति के मात्र दो पक्षी बचे थे, ऐसा रामायण मैं उल्लेख है|
सनातन धर्म मानता है की श्रृष्टि चक्रिये है, और उसके लिए वे युग का स्वरुप भी प्रस्तुत करते हैं | समस्या यह आ रही है कि विश्व के विज्ञानिक भी अब धीरे धीरे यह समझने लगे हैं कि श्रृष्टि चक्रीये है, लकिन ईसाईयों के बोलबाले के कारण यह कह नहीं पा रहे, और हमारे संस्कृत विद्वानों ने कभी दावा प्रस्तुत करा नहीं है !
महायुग, का प्रमाण खगोलिक बिंदु के रूप मैं प्रस्तुत विज्ञान कोही करना होगा, और सनातन धर्म को इसमें सहायता करनी होगी, जो की अभी तक नहीं हुई, क्यूंकि हमारे संस्कृत विद्वान अपना कार्य ना करके हिन्दू समाज के शोषण मैं धर्मगुरुजनों की सहायता मैं लगे हुए हैं | विश्वास करीये आगे अवश्य धर्म सहायता करेगा!
2. सति और फिर पार्वती; श्रृष्टि पहले सति हो जाती थी, अब चक्रिये है|
इसमें तो कही भी विरोध नहीं होना चाहीये | विज्ञान यह स्वीकार करता है कि जब हिमालय, अत्यंत प्राचीन काल मैं इतने ऊचे नहीं थे, तब श्रृष्टि ‘सति’ होती थी, यानी की स्वंम नष्ट होती थी, चक्रिए नहीं थी | पढीये: शिव की अर्धागिनी, सति फिर पार्वती, क्या श्रृष्टि पहले चक्रिये नहीं थी?
3. पृथ्वी GLOBAL WARMING के कारण आगे जलमग्न हो सकती है, यह आज के विज्ञानिक बताते हैं,
और पुराण भी यही बताते हैं | पढ़ें: कलयुग का अंत..एक नए कल्प का प्रारम्भ और मत्स्य अवतार
4. सत्य युग के आरम्भ मैं समुन्द्र मंथन,. बताता है कि पृथ्वी पर श्रृष्टि का विकास कैसे होता है..
सनातन धर्म कुछ खुगोलिक बिन्दुओं का उल्लेख कथा के द्वारा करता है, ताकि साधारण जन भी समझ सके कि पृथ्वी पर श्रृष्टि का विकास कैसे होता है, जिसमें राहू, केतु की उत्पत्ती की कथा लोकप्रिय है | वास्तव मैं जलमग्न रहने के पश्च्यात पृथ्वी पुन: उत्साहित होती है, और सामान्य स्तिथी की और अग्रसर होती है, जलस्तर गिरने लगता है, और शांत समुन्द्र मैं फिर से लहरे उठने लगती है; आभास होता है, जैसे समुन्द्र का मंथन हो रहा हो |
विज्ञानिक दृष्टि से राहू और केतु, जो कि चन्द्र के कक्षीय नोड्स हैं वोह अब स्थिर नहीं रहे, या यूँ कहीये कि चन्द्रमा ने अपनी धूरी सूर्य के संधर्भ में बदलनी शुरू कर दी, जिससे समुन्द्र मंथन का आभास होने लगा , और समुन्द्र मैं लहरे उठने लगी! यह भी एक खगोलिक बिंदु है, जिसपर शोघ होना आवश्यक है|
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