Thursday, June 13, 2013

आजादी के बाद के कर्महीन हिंदू समाज की मानसिकता कैसे बदली जाए ?

अवतार का स्वरुप, अशिक्षित, कम विकसित समाज केलिए, अलोकिक शक्ती की चादर के साथ होता है, और आजादी सेपहले था और विकसित, शिक्षित समाज के लिए, बिना अलोकिक शक्ती के, जो आजादी केबाद होना था, परन्तु नहीं हुआ !
सबसे पहले तो हमें यह समझना होगा कि हिंदू समाज कर्महीन क्यूँ है? यदि इतिहास उठा कर देखे तो हिंदू समाज पिछले २००० वर्ष मैं, कभी भी अच्छे समय से नहीं गुजरा| छोटे छोटे राज्य थे, कुछ अच्छे, कुछ बुरे, और कुछ बहुत बुरे| धर्म ने कभी भी राष्ट्रीयता का आवाहन नहीं करा, और राष्ट्र और राष्ट्रीयता क्या है कभी भी किसी राजा ने, न धर्मगुरु ने समझाने का प्रयत्न नहीं करा| चाणक्य का प्रयास अंतिम प्रयास था, राष्ट्रीयता को समझने का और समझाने का जो की इसा-पूर्व सन ३०० मैं समाप्त हो गया|
हिमालय के उस पार से, कमजोर होने पर और छोटे छोटे असंगठित राज्य होने पर, आक्रमण बढते गए, और करीब १२०० वर्ष पूर्व, उस समय का एक नया धर्म(मजहब) इस्लाम के अनुदाई जो की गैर-इस्लामिक लोगो पर जुल्म करने पर कोइ संकोच नहीं करते थे, ने आकर लूट-मार, और हर तरह की बर्बरता का प्रदर्शन करा| कुछ लोग और कस्बो ने इससे बचने के लिए इस्लाम मजहब भी कबूल कर लिया, लकिन बर्बरता समाप्त नहीं हुई| सर झुका के जीनेके कारण हिंदू समाज कर्महीन बनगया| स्वंम संतो ने धर्म का कर्म-भाग घटा कर भक्ति-भाग बढ़ा दिया था, यह सोच कर की जब अच्छा समय आएगा तो उस समय के धर्मगुरु इसे ठीक कर देंगे|
खेद परन्तु आजादी के पश्चात ऐसा कुछ नहीं हुआ| उल्टा समाज को और भावनात्मक बना दिया गया, और हिंदू समाज और कर्महीन हो गया|
कुछ बहुत ज्यादा बदलाव करने की आवश्यकता भी नहीं थी धार्मिक प्रवचन मै, सनातन धर्म मैं इसके लिए अवतार का इतिहास उपलब्ध है, जिसको बुरे समय मैं अलोकिक और चमत्कारिक शक्ति के साथ समाज को बताया जाता है, और अच्छे समय मैं बिना अलोकिक और चमत्कारिक शक्ति के साथ| सिर्फ इतना करने से हिंदू समाज की मानसिकता बदल जायेगी, लोगो की भगवान श्री राम और श्री कृष्ण मैं आस्था भी बढ़ जायेगी, लकिन ऐसा नहीं हुआ|
क्या कारण थे या हैं, वोह अभी चर्चा नहीं करना चाहता; संषेप मैं, ज्ञान का अभाव, और धर्म गुरुजनों को स्वंम को भगवान की तरह पुजवाना तभी संभव है जब समाज कर्महीन हो| ‘कारणों’ की जब चर्चा होगी तो अनेक संकेत सामने आयेंगे, जिससे आजादी के बाद के, धर्म गुरुजनों के शर्मनाक और घृणापूर्ण व्यवाहार पर प्रकाश पड़ेगा| संशिप्त मैं यह भी समझ लें की पहले धर्म का संचालन संत और सुलझे हुए ब्राह्मण करते थे, और आजादी के बाद वी.आई.पी धर्मगुरु जिसमें से अधिकाँश का इतिहास आप सबको मालूम है|
१००० वर्ष की गुलामी ने हमें कर्महीन बना दिया है, कि हम गलत को सही कह सकते हैं, लकिन सत्य के लिए लड़ नहीं सकते; और इसी लिए भ्रष्टाचार और अनेक अत्याचार बढ़ रहे हैं|
हमें भावनात्मक बाते ही पसंद आती हैं; क्यूँकी उसमें दुसरे की बुराई करके संतुष्टि मिल जाती है| अपने को बदलने का अर्थ है यह स्वीकार करना कि सारी कमियां स्वंम से शुरू होती हैं; यह तो हमसबको १००० वर्ष की गुलामी के संस्कार से नहीं मिला|

प्रश्न सिर्फ इतना है कि दुबारा गुलाम बनाना है, या हिंदू समाज को कर्मठ बनाना है?
और कर्मठ बनाने का अभियान, स्वंम से शुरू होता है !
इस विषय पर ध्यान दे और चर्चा करें >>>
कर्महीनहिंदू समाज को जब तक  हम कर्मठ हिंदू समाज नहीं बना पायेंगे कुछ हासिल नहीं होगा!
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कृप्या फिर से समझ लें:
सनातन धर्म मैं अवतार का स्वरुप, कम विकसित और अशिक्षित समाज के लिए, अलोकिक शक्ती की चादर के साथ होता था, जैसा की आजादी से पहले था 

और... 

विकसित , शिक्षित समाज के लिए, बिना अलोकिक शक्ती और चमत्कारिक शक्ती के, जैसा की आजादी के बाद के समाज के साथ होना था, परन्तु नहीं हुआ|
एक उद्धरण उपयुक्त रहेगा:
एक अबोध बालक, या नवजात शिशु को संभालने के लिए मात्र भावनात्मक बातो और व्यवाहर का प्रयोग करा जाता है...
जैसा की हिंदू समाज जब गुलाम था, तो उस समय के हमारे धर्म गुरुजनों ने धर्म से कर्म भाग घटा कर, समाज को पूरी तरह से भावनात्मक बना कर दिया,......... 
ताकि सर झुका कर ही सही, पूरा हिंदू समाज धर्म परिवर्तन से तो बच सके.......
इस बात के सारे प्रमाण उपलब्ध हैं....
स्वंम कर्मवीर श्री कृष्ण को गोपियों के साथ रास रचाते हुए दिखा दिया...
परन्तु,
एक पढ़े लिखे युवक को कर्म की शिक्षा दी जाती है, और उसे प्ररित करा जाता है की वोह भावनात्मक सोच से कोइ निर्णय ना लें ...

ठीक उसी तरह से भक्ति और कर्म का उचित अनुपात आजादी के बाद होना था, जो की नहीं हुआ..
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2 comments :

Unknown said...

I am a BHARATIA.My culture is BHARATIA.MY religion is HINDU.My profession is DOCTOR.My age is 27. I think my generation has an anomaly which is an acquired one and completely curable and which is ignorance and illiteracy towards our own culture and true religious essence.I don't hold anybody responsible for it. But somebody has to take the responsibility to make it right and who else better than the specialists in this field.I feel Hinduism(SANATAN DHARMA) is not only important for people
of Indian subcontinent(AKHANDA BHARAT), but it is important for entire mankind. So i feel it is very important to preserve and
put it in the way it actually happened. I will not do the outrage to teach the GURUs on how to teach , but i will definitely try to tell as a humble student, the problems that i faced or my generation could face while the treatment process.
1. How to differentiate between a real guru and an imposter.

2. Our history (History of BHARAT) the real facts with archeological evidence just to have a present day scientific touch.{I personally had read when I was in 4th standard about Romulus and Romus
a lot than Chandragupta Maurya who was the inventor of AKHANDA BHARAT DREAM under the CHANAKYA his teacher in KALI YUGA at
around 326BC. While Alexander became great, GENGIS KAAN became the wrath for same reasons...BHARATIA heroes lost there identities in the text book of history in their own country.)

3. Some kind of guidance on how to approach to the huge ocean of pure
knowledge.

4. Books on learning SANSKRIT with attractive things.Though it is the most scientific language for computers and also mother of many languages.

5. On a very personal note ...IS there any book or E-site(legitimate) on relations between Hinduism(its philosophy,Gods and true nectar of singular-ism in pluralism) and modern day proven science so to make it more
acceptable to me or to my contemporaries. This statement of mine about the anomaly is based on a survey that i personally made on my own standards between my circle of friends, professionals and family.So it is not my intention to hurt anybody's
sentiments. The present time is not for argument but for discussion on how we can be at any help to our teachers in there quest for the upliftment of our society.

Unknown said...

Shri Koushik Roy,

Thanks for your comments. I’ll try to honestly answer, all I could the queries raised by you.

1) Regarding real Guru and imposter, the difference is simple. Sanatan Dharm being the oldest in the world goes through different periods some good, some bad, some worst. So the real Guru will always be current society centric, and tell you very clearly that if the society is NOT progressing or improving, something is wrong in the content preached.

2) This is not a query.

3) Regarding knowledge…I have no idea what you mean by pure knowledge. If it has to do as to how the current society would progress, using Dharm as a tool, you need to have your own bearings right, find out what parameters to use.

4) Regarding Sanskrit you need to contact a good Sanskrit scholar/teacher. I do not know Sanskrit.

5) Querry 5..my answer, same as 3.

ABOUT ME:

A Consulting Engineer, operating from Mumbai, involved in financial and project consultancy; also involved in revival of sick establishments.

ABOUT MY BLOG: One has to accept that Hindus, though, highly religious, are not getting desired result as a society. Female feticide, lack of education for girls, dowry deaths, suicides among farmers, increase in court cases among relatives, corruption, mistrust and discontent, are all physical parameters to measure the effectiveness or success/failure of RELIGION, in a society. And all this, despite the fact, that spending on religion, by Hindus, has increased drastically after the advent of multiple TV channels. There is serious problem of attitude of every individual which need to be corrected. Revival of Hindu religion, perhaps, is the only way forward.

I am writing how problems, faced by Indian people can be sorted out by revival of Hindu Religion.