Saturday, September 21, 2013

ईश्वर स्वर्ग मैं बैठकर बिना अवतार लिए हिन्दू समाज की मदद नहीं कर सकते

कृपया ध्यान से सुने :

९८% लोग भ्रष्ट नहीं है, और मात्र २% लोग भ्रष्ट हैं, और वोह भी जनता के सामने भ्रष्टाचार समाप्त करने के लिए दोहाई देते हैं 
फिर 
भगवान् हमारी सहायता क्यूँ नहीं कर रहा है , हमको तो यह बताया गया है ईश्वर सत्य और सही के सदैव साथ रहता है !
क्या यह सत्य नहीं है की सनातन धर्म पृथ्वी के विकास का कारण सृजन नहीं क्रमागत उन्नति मानता है, और इसी लिये कम से कम सनातन धर्म के धर्म गुरु-जानो से यह उम्मीद करी जाती है, की आजादी के बाद तो हिन्दू समाज को सत्य बताते, की भगवान् स्वर्ग मैं बैठे समाज की मदद नहीं करते , यह कार्य तो समाज के हर व्यक्ती को खुद, मिलजुल कर करना होगा |
पढ़ें: पृथ्वी का विकास.. सृजन या क्रमागत उन्नति 

और यह बात समाज को न बता कर समाज का कितना नुक्सान धर्म गुरु कर रहे हैं, क्या इसका अनुमान है?

यदी व्यवस्था/सरकार बहुमत हिन्दू समाज की अपेक्षा कर रहा हो, और ध्रुवीकरण के उद्देश से प्रेरित नीतिया समाज मैं लारहे हैं, तो कर्महीन हिन्दू समाज इसका कैसे विरोध करेगा; वोह तो ईश्वर का इंतज़ार करेगा, की प्राथना कर ली है, भक्ती मैं आस्था है, अब ईश्वर ही इसका मार्ग निकालेगा|

और स्वंम अपने नागरिक होने के दाइत्व को सोशल साइट्स पर, या, अपने सोफे पर बैठ कर आलोचना करके, पूरा करेगा, और पूर्ण रूप से संतुष्ट भी हो जाएगा|

फिर जब व्यवस्था मैं परिवर्तन नहीं होगा(क्यूँकी व्यवस्था मैं परिवर्तन तो तभी होगा कब सब मिलजुल कर जनता की शक्ती का प्रदर्शन, प्रजातंत्र मैं जो मार्ग उपलब्ध हैं, उनका प्रयोग कर, कर्मठ बन कर करें, ना की मंदिरों की घंटी बजा कर), तो और कटु आलोचना करके अपने को संतुष्ट करलेगा, और इसी तरह धीरे धीरे दुबारा गुलामी की और हिन्दू समाज बढ़ जाएगा|

गुलामी के समय संतो ने ही हिन्दू धर्म का भावनात्मक भाग पूरी तरह बढ़ा दिया था, और कार्मिक भाग करीब करीब नहीं के बराबर कर दिया था| उद्देश यह था की कर्महीन समाज सर झुका कर ही सही, लकिन धर्म परिवर्तन से बच पायेगा|पढ़ें: हिंदुओं का भौतिक धर्म गुलामी के समय कैसे घटाया गया 

आजादी के बाद धर्मगुरु, जो अपने को भगवान् की तरह पुजवाने मैं जरा भी संकोच नहीं करते(उल्टा प्रोहित्साहित करते हैं), ने इस भावनात्मक भाग को और बढ़ा दिया, और बचा हुआ कर्म भाग और समाप्त कर दिया| समाज पूरी तरह कर्महीन हो गया, जिन्दा लाश की तरह|

सत्य तो यह है की धन और शक्ती के लोभ मैं जितने भी धर्म गुरु हैं, उन्होंने सनातन धर्म का पूरा गलत स्वरुप आजादी के बाद के हिन्दू समाज को दिया, ताकी वे सत्ता और शक्ती का आनंद ले सके|
ध्यान दें पहले से ही(गुलामी के कारण) भावनात्मक भाग पूरी तरह से बढ़ा हुआ था, उससे अधिक नहीं बढ़ाया जा सकता था, 
तो...>>> 
आज़ाद हिन्दुस्तान मैं सनातन धर्म का भावनात्मक भाग जो बढ़ाया गया है, वोह किसी संगीन अपराध से कम नहीं है |
सनातन धर्म पृथ्वी के विकास का कारण सृजन नहीं क्रमागत उन्नति मानता है | 
धर्म गुरु-जानो को हिन्दू समाज को सत्य बताना था कि भगवान् समाज की मदद नहीं करते, समाज के हर व्यक्ती को खुद, मिलजुल कर करना होता है !

सनातन धर्म का एक अटूट नियम :
[जो विद्वान और धर्मगुरु बताते नहीं , नहीं तो शोषण समाप्त हो जाएगा ]
व्यक्तिगत समस्या के लिए ::>>ईश्वर है, सहायता भी करता है !सामाजिक समस्या ::>> मानव ही सहायता कर सकता है, ईश्वर नहीं !
इसीलिये जब सामाजिक समस्या अधिक हो जाती है, तो ईश्वर मानव रूप में अवतरित होते हैं,
और 
बिना अलोकिक शक्ति का प्रयोग करके ....
  • धर्म स्थापित करते है....यानी की समाज में जीने का ज्ञान देते हैं !
  • वेद , जो समाज में जीने का ज्ञान है....सिर्फ उद्धारण से समझाते हैं....!
लकिन इसको समझने के लिए रामायण, महाभारत को वास्तविक इतिहास अपने प्रभु का मानना होगा,.....
ना कि कथा....
जिसको अलोकिक/चमत्कारिक शक्ति से लाद दिया है...!

2 comments :

omiyk said...

वाह, बहुत सुंदर आंकलन, पहली बार समस्या के मूल पर सार्थक विचार पढ़ने को मिले।

बधाई

राजीव कुमार झा said...

नई पोस्ट : अद्भुत कला है : बातिक

ABOUT ME:

A Consulting Engineer, operating from Mumbai, involved in financial and project consultancy; also involved in revival of sick establishments.

ABOUT MY BLOG: One has to accept that Hindus, though, highly religious, are not getting desired result as a society. Female feticide, lack of education for girls, dowry deaths, suicides among farmers, increase in court cases among relatives, corruption, mistrust and discontent, are all physical parameters to measure the effectiveness or success/failure of RELIGION, in a society. And all this, despite the fact, that spending on religion, by Hindus, has increased drastically after the advent of multiple TV channels. There is serious problem of attitude of every individual which need to be corrected. Revival of Hindu religion, perhaps, is the only way forward.

I am writing how problems, faced by Indian people can be sorted out by revival of Hindu Religion.